केंद्र सरकार ने गैर-बासमती पारवॉयल्ड राइस (सेला चावल) पर निर्यात शुल्क को घटाकर 10 फीसदी कर दिया है। जबकि बाकी गैर बासमती व्हाइट राइस पर सीमा शुल्क को समाप्त कर दिया गया। इस फैसले के पहले इस पर 20 फीसदी का निर्यात शुल्क लागू था। निर्यात शुल्क में कटौती के लिए वित्त मंत्रालय के राजस्व विभाग ने 27 सितंबर को अधिसूचना जारी की है। इसमें कहा गया है कि यह फैसला तुरंत प्रभाव से लागू हो गया है। केंद्र सरकार ने घरेलू बाजार में चावल की बढ़ती कीमतों पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से पिछले साल सेला चावल पर निर्यात शुल्क लगा दिया था। वहीं इसके कुछ दिन बाद बासमती चावल पर 1200 डॉलर प्रति टन का न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) भी लागू कर दिया था। जिसे बाद में घटाकर 950 डॉलर प्रति टन कर दिया गया था और इसी माह इसे समाप्त करने का फैसला लागू किया गया।
देश में चालू खरीफ सीजन में धान के रिकॉर्ड बुआई क्षेत्रफल के चलते चावल उत्पादन की अच्छी संभावना बनी है क्योंकि मानसून की भी काफी बेहतर रहा है। हालांकि पिछले साल (2023-24) के लिए रिकॉर्ड 13.78 करोड़ टन चावल उत्पादन का अनुमान कुछ दिन पहले ही सरकार ने जारी किया है। निर्यातक लंबे समय से गैर बासमती चावल के निर्यात पर रोक हटाने की मांग कर रहे थे। लेकिन सरकार ने फिलहाल गैर बासमती पारबॉयल्ड चावल पर सीमा शुल्क में ही कटौती की है। सरकार का यह फैसला देश में चावल उत्पादन में अग्रणी राज्य हरियाणा में विधान सभा चुनाव के कुछ दिन पहले ही आया है। हरियाणा में विधान सभा के लिए 5 अक्तूबर को वोट डाले जाएंगे।
इसके पहले सरकार ने बासमती पर एमईपी हटाने, प्याज पर एमईपी हटाने और निर्यात शुल्क को आधा करने का फैसला लिया था। वहीं घरेलू तिलहन उत्पादक किसानों के हितों की सुरक्षा के लिए क्रूड खाद्य तेल और रिफाइंड खाद्य तेल पर सीमा शुल्क में 20 फीसदी की बढ़ोतरी की थी।। इन फैसलों को हरियाणा और महाराष्ट्र में आगामी विधान सभा चुनावों के मद्देनजर देखा जा रहा है।
पिछले साल देश से करीब 170 लाख टन चावल का निर्यात हुआ था। वहीं इसके पहले साल (2022-23) में करीब 210 लाख टन चावल निर्यात के साथ भारत सबसे बड़ा चावल निर्यातक देश बन गया था और उस साल वैश्विक चावल बाजार में भारत की हिस्सेदारी 40 फीसदी पर पहुंच गई थी।
ऑल इंडिया राइस एक्सपोर्ट्स एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष विजय सेतिया ने केंद्र सरकार के इस फैसले का स्वागत किया है। सेतिया ने रूरल वॉयस को बताया कि सरकार के इस फैसले से निर्यात को बढ़ावा मिलेगा। साथ ही किसानों को धान के लिए मिल रही कीमतों में भी सुधार होगा। उन्होंने कहा कि पॉलिसी में धोड़ा सुधार और किया जा सकता था। अगर सरकार चाहती है कि मंहगाई न बढ़े और उपभोक्ताओं पर इसका असर न बढ़े, तो सरकार को प्राइवेट खरीदारों को भी किसानों से खरीद का मौका देना होगा।
इसके पहले, 13 सितंबर को सरकार ने बासमती चावल के निर्यात पर लागू 950 डॉलर प्रति टन की न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) को समाप्त कर दिया था। इस सीमा के चलते बासमती चावल का निर्यात प्रभावित हो रहा था, और इसका फायदा पाकिस्तान को मिल रहा था। वहीं, देश में बासमती धान की कीमतें भी गिरकर 2500-3000 रुपये प्रति कुंतल तक पहुंच गई थीं, जिससे हरियाणा जैसे बासमती उत्पादक राज्यों में किसानों और आढ़तियों में नाराजगी बढ़ गई थी।