केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आज नई दिल्ली में किसान संगठनों के प्रतिनिधियों और कृषि अर्थशास्त्रियों के साथ बजट पूर्व बैठक की अध्यक्षता की। हर साल बजट से पहले विभिन्न क्षेत्रों के प्रतिनिधियों के साथ इस तरह की बैठकों का आयोजन होता है। लेकिन कृषि से जुडे मुद्दों पर बैठक में संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) समेत कई प्रमुख किसान संगठनों को नहीं बुलाया गया। इसे लेकर किसान संगठनों ने नाराजगी जाहिर की है।
भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने रूरल वॉयस से बातचीत में कहा कि सरकार बजट से पहले बीजेपी से जुड़े संगठनों से बात करती है जबकि देश के किसानों का असल प्रतिनिधित्व करने वाले किसान संगठनों को बुलाया ही नहीं गया। जो लोग सरकार की हां में हां मिलाते हैं, उन्हें बुलाया गया। इसलिए देश में किसान विरोधी नीतियां बनती है और मजबूरी में किसानों को आंदोलन करने पड़ते हैं। सरकार को सबकी बात सुननी चाहिए।
अखिल भारतीय किसान सभा (एआईकेएस) ने केंद्र सरकार पर बजट पूर्व चर्चा में "किसानों के वास्तविक प्रतिनिधियों" को बाहर रखने का आरोप लगाया। किसान सभा के अध्यक्ष अशोक धवले और महासचिव विजू कृष्णन की ओर से जारी बयान में कहा कि केंद्र सरकार को अपना घमंड छोड़कर संयुक्त किसान मोर्चा से बातचीत करनी चाहिए। देश में किसानों के प्रमुख संगठन अखिल भारतीय किसान सभा को रबी और खरीफ सीजन के लिए एमएसपी तय करने से पहले कृषि लागत और मूल्य आयोग (सीएसीपी) के समक्ष अपना प्रस्ताव रखने के लिए बुलाया जाता था। लेकिन भाजपा की एनडीए सरकार और वित्त मंत्री ने संयुक्त किसान मोर्चा अथवा एआईकेएस के प्रतिनिधियों को बजट पूर्व चर्चा के लिए आमंत्रित नहीं किया।
मिली जानकारी के अनुसार, वित्त मंत्रालय ने बजट से पहले कृषि से जुड़े मुद्दों पर चर्चा के लिए भाजपा और आरएसएस से जुड़े संगठनों के अलावा सरकार की नीतियों का समर्थन करने वाले कॉरपोरेट प्रतिनिधियों और कृषि विशेषज्ञों को बुलाया। जबकि किसानों के मुद्दों पर संघर्ष करने वाले किसान संगठनों को नजरअंदाज किया गया। इनमें संयुक्त किसान मोर्चा में शामिल संगठनों के अलावा एसकेएम से अलग हुए घटक और विभिन्न राज्यों में सक्रिय किसान संगठन शामिल हैं।
हरियाणा और पंजाब में एमएसपी की कानूनी गारंटी के मुद्दे पर आंदोलन कर रहे एसकेएम (गैर-राजनीतिक) और किसान मजदूर मोर्चा से जुड़े किसान संगठनों को भी बजट पूर्व चर्चा में शामिल नहीं किया गया। कुल मिलाकर केंद्र सरकार की नीतियों की आलोचना करने वाले संगठनों से परहेज किया गया। किसानों के साथ आम सहमति नहीं बनाने की यह समस्या तीन कृषि कानूनों के समय भी देखी गई थी, जिसके चलते सरकार को किसान आंदोलन का सामना करना पड़ा और अंतत: तीनों कृषि कानून वापस लेने पड़े थे।
आज हुई बजट पूर्व बैठक में किसानों की आय बढ़ाने, कृषि उत्पादकता में वृद्धि और खेती पर जलवायु परिवर्तन के जोखिम को कम करने के लिए कई सुझाव आए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में तीसरी बार बनी एनडीए सरकार के लिए कृषि और किसानों के मुद्दे काफी महत्वपूर्ण हैं। इस महत्व को दर्शाने के लिए पीएम मोदी ने कार्यभार संभालने ही पीएम किसान सम्मान निधि की फाइल पर साइन किए और पहली कैबिनेट बैठक में खरीफ फसलों के एमएसपी बढ़ाने को मंजूरी दी। लेकिन बजट पूर्व चर्चा में देश के प्रमुख किसान नेताओं और संगठनों को नहीं बुलाने से स्पष्ट है कि सरकार और किसान यूनियनों के बीच दूरी बनी हुई है।