कृषि क्षेत्र में दुनिया में एक बड़ी ताकत के रूप में अपनी स्थिति को मजबूत करने और निर्यात को बढ़ावा देने के लिए रूस लाखों हेक्टेयर जमीन पर दोबारा खेती करने की योजना बना रहा है। इन जमीनों पर बहुत पहले खेती हुआ करती थी, लेकिन कई दशकों से वहां खेती बंद है। हालांकि, इस महत्वाकांक्षी पहल के लिए सरकार और निजी क्षेत्र से पर्याप्त निवेश की आवश्यकता होगी। रूस की पुतिन सरकार की यह पहल लाभदायक होगी या नहीं, इस पर भी अभी संदेह बना हुआ है। वर्ल्ड ग्रेन पत्रिका ने अपने नवीनतम अंक में एक लेख में यह जानकारी दी है।
गौरतलब है कि अक्टूबर 2023 में रूस और चीन ने 12 साल के लिए एक ऐतिहासिक समझौता किया था। उस समझौते के तहत रूस चीन को सात करोड़ टन अनाज, दालें और तिलहन की आपूर्ति करेगा। यह समझौता 25.8 अरब डॉलर का है। दोनों देशों के बीच खाद्य व्यापार के इतिहास में यह सबसे बड़ा सौदा है। इस सौदे को न्यू लैंड ग्रेन कॉरिडोर (एनएलजीसी) के अंतर्गत रखा गया है। यह कॉरिडोर रूस के सुदूर पूर्व, यूराल पर्वत और साइबेरिया में निर्माणाधीन एक लॉजिस्टिक हब है।
वर्ल्ड ग्रेन के अनुसार रूस के कृषि मंत्रालय ने इसी साल देश के लगभग आधे हिस्से में स्थित 36 क्षेत्रों में कृषि भूमि की संभावनाओं पर अध्ययन पूरा किया है। इस अध्ययन में 1.3 करोड़ हेक्टेयर परित्यक्त भूमि का पता चला। इसमें से 51 लाख हेक्टेयर भूमि को तत्काल खेती के लिए उपयुक्त माना गया है। मंत्रालय का लक्ष्य 2025 तक शेष क्षेत्रों में संभावनाओं का अध्ययन करना है। इन इलाकों में खेती के लिए निवेशकों को विशेष प्रोत्साहन दिए जाएंगे। उनके लिए इन भूखंडों के अधिग्रहण की प्रक्रिया को भी सरल बनाया जाएगा।
इन्सेंटिव देने के अलावा सरकार इस प्रक्रिया को तेज करने के लिए नियामक स्तर पर भी बदलाव कर रही है। फेडरल काउंसिल की कृषि नीति समिति के अध्यक्ष, अलेक्जेंडर द्वोयनिख ने कृषि भूमि निरीक्षण पर लगी रोक को हटाने की वकालत की है। वर्ष 2024 में रूस सरकार इस तरह की भूमि को दोबारा कृषि में इस्तेमाल करने के लिए 47 करोड़ डॉलर आवंटित करने पर विचार कर रही है। अधिकारी आर्कटिक क्षेत्र पर भी नजर गड़ाए हुए हैं, जहां जलवायु परिवर्तन और पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से खेती के नए अवसर उत्पन्न हो रहे हैं।
हालांकि, विशेषज्ञ इस योजना की आर्थिक व्यवहार्यता को लेकर सतर्क हैं। उनका कहना है कि कुछ वर्षों से अनुपयोगी पड़ी भूमि का विकास करना किफायती हो सकता है, लेकिन दशकों तक परित्यक्त भूखंडों को दोबारा खेती के लिए तैयार करना महंगा साबित होगा, क्योंकि इसमें पेड़ हटाने, जल निकासी और भूमि सुधार जैसी महंगी प्रक्रियाएं शामिल होंगी। इन चुनौतियों के बावजूद, रूस की कृषि विस्तार की यह योजना इसके घरेलू और वैश्विक कृषि परिदृश्य को बदलने की दिशा में एक बड़ा कदम हो सकती है।