गेहूं की बढ़ती कीमतों पर लगाम लगाने के लिए केंद्र सरकार ने पिछले साल इसके निर्यात पर प्रतिबंध लगाया था। प्रतिबंध के करीब 18 माह बीत जाने के बावजूद गेहूं के दाम नीचे नहीं आए हैं। दूसरी तरफ, इस प्रतिबंध के चलते अंतरराष्ट्रीय बाजारों में गेहूं की उपलब्धता पर असर पड़ा। सितंबर 2023 में दाम 8 महीने के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गए थे। वर्ल्ड ग्रेन पत्रिका ने अपने नवंबर अंक में यह बात कही है। इसने अनुमान जताया है कि गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध शायद अगले साल आम चुनाव के बाद ही खत्म होंगे।
इसने लिखा है, 2022 में जब यूक्रेन पर हमले के बाद रूस ने ब्लैक सी यानी काला सागर के बंदरगाहों से यूक्रेन से गेहूं निर्यात रोक दिया था, तब अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं के दाम बढ़ गए थे। उसे समय अंतरराष्ट्रीय बाजार में पैदा हुई गेहूं की किल्लत कुछ हद तक भारत ने पूरी की थी। चीन के बाद भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक है और मार्च 2022 तक 12 महीने में इसने रिकॉर्ड 70 लाख टन गेहूं का निर्यात किया था। यह एक साल पहले के मार्केटिंग वर्ष की तुलना में 250 से प्रतिशत अधिक था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अगले महीने, यानी अप्रैल 2022 में कहा कि भारत के पास अपने लोगों को खिलाने के लिए पर्याप्त भोजन है, बल्कि हमारे किसान दुनिया को खिलाने में सक्षम हो गए हैं। लेकिन उनके इस बयान के कुछ हफ्ते बाद ही भारत ने गेहूं निर्यात पर तत्काल पाबंदी लगा दी। इसका मकसद भारत के घरेलू बाजार में गेहूं की बढ़ती कीमतों पर लगाम लगाना था। हालांकि निर्यात पर प्रतिबंध के बावजूद गेहूं के दाम कम नहीं हुए।
पत्रिका ने रैबो रिसर्च के सीनियर रिसर्च एनालिस्ट ऑस्कर जकरा (Oscar Tjakra) के हवाले से लिखा है कि 2022-23 के मार्केटिंग वर्ष में उम्मीद से कम उत्पादन, बढ़ती महंगाई और न्यूनतम समर्थन मूल्य पर गेहूं की कम खरीद के चलते सरकार ने यह कदम उठाया था। जकरा के अनुसार 2022-23 की फसल फरवरी 2022 तक अच्छी लग रही थी। इससे उम्मीद बनी थी कि लगातार दूसरे साल गेहूं की रिकार्ड उत्पादन होगा। लेकिन मार्च के मध्य में अचानक तापमान बढ़ने से गेहूं के दाने सिकुड़ गए और यील्ड घट गई। तब से लेकर 18 महीने हो गए और गेहूं निर्यात पर पाबंदी जारी है। दूसरी तरफ भारत के साथ बाकी दुनिया भी ऊंची खाद्य महंगाई दर से जूझ रही है। हालांकि विभिन्न एजेंसियां 2023-24 में विश्व स्तर पर रिकॉर्ड गेहूं उत्पादन का अनुमान जता रही हैं।
पत्रिका ने लिखा है कि सरकार ने अपने भंडार से सब्सिडाइज्ड दरों पर बाजार में गेहूं बेचा है। इसके बावजूद यह खाद्य महंगाई को निर्धारित स्तर पर लाने में नाकाम रही है। जकरा के अनुसार सरकार ने अप्रैल 2020 में कोविड-19 लॉकडाउन के समय करोड़ों लोगों को मुफ्त गेहूं का वितरण शुरू किया था। इससे सरकार के भंडार में गेहूं की मात्रा कम हुई। फिर 2022 और 2023 में गेहूं उत्पादन कम रहने से सरकार के भंडार की पूरी भरपाई नहीं हो सकी। 1 सितंबर 2023 को सरकार का गेहूं भंडार पिछले साल से 12 लाख टन ज्यादा, 260.4 लाख टन था लेकिन यह 10 साल के औसत से कम है। जकरा के मुताबिक गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध के बावजूद भारत के घरेलू बाजार में गेहूं के दाम बढ़े। सितंबर 2023 में दाम 8 महीने के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गए थे। जकरा ने अनुमान जताया है कि गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध शायद अगले साल आम चुनाव के बाद ही खत्म होंगे।
भारत के कंज्यूमर प्राइस बास्केट में खाद्य महंगाई का हिस्सा लगभग आधा है और सितंबर में इसमें 6.56 प्रतिशत की वृद्धि हुई। अगस्त में इसमें 9.94 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी। हालांकि गिरावट के बावजूद सितंबर की महंगई रिजर्व बैंक की 6% की ऊपरी सीमा से अधिक है।
जकरा का कहना है कि बीते कुछ वर्षों के दौरान बीज के नए किस्म के प्रयोग से भारतीय गेहूं की क्वालिटी में सुधार आया है। उनका कहना है कि बीज की क्वालिटी, खेती के बेहतर तरीकों और मशीनों के प्रयोग से भारत के गेहूं में प्रोटीन की 12% से 13% मात्रा अब आम हो गई है।
प्रतिबंध से भारत से 70 से 80 लाख टन चावल का निर्यात प्रभावित
विश्व गेहूं व्यापार में भारत कभी बड़ा खिलाड़ी नहीं रहा, लेकिन चावल के निर्यात में यह शीर्ष पर है। हाल तक भारत दुनिया का 40 प्रतिशत चावल निर्यात करता था। लेकिन इसके दामों में वृद्धि के बाद भारत सरकार ने गैर बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया और पारबॉयल्ड चावल के निर्यात पर 20% की ड्यूटी लगा दी। इस प्रतिबंध से भारत से 70 से 80 लाख टन चावल का निर्यात प्रभावित हुआ है। यह विश्व के कुल चावल ट्रेड का लगभग 15% है।
वर्ल्ड क्रेन पत्रिका ने लिखा है कि बांग्लादेश, श्रीलंका, संयुक्त अरब अमीरात, यमन और फिलीपींस जैसे कई देश गेहूं के लिए भारत पर निर्भर रहे हैं। अगस्त में भारत से चावल निर्यात पर प्रतिबंध की घोषणा के बाद विश्व बाजार में इसके दाम बढ़े हैं। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) का राइस प्राइस इंडेक्स सितंबर में अगस्त की तुलना में सितंबर में 0.5% कम हुआ लेकिन सितंबर 2022 की तुलना में यह 28% ज्यादा है।