अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कृषि अनुसंधान को बढ़ावा देने वाली संस्था सेंटर ऑफ द कंसल्टेटिव ग्रुप ऑन इंटरनेशनल एग्रीकल्चरल रिसर्च (CGIAR) में कुछ ऐसे बदलाव की पहल हो रही है, जो एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के विकासशील देशों के लिए नुकसानदायक हो सकता है। अभी सीजीआईएआर के दुनिया भर में 15 क्षेत्रीय केंद्र हैं, जो स्वतंत्र रूप से कार्य करते हैं। लेकिन इन केंद्रों के ट्रस्टी बोर्ड में पुनर्गठन किया जा रहा है। भोजन के अधिकार पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष प्रतिवेदक माइकल फाखरी का कहना है कि इस पुनर्गठन के गंभीर परिणाम होंगे। फाखरी के अनुसार इस पुनर्गठन से अनेक देशों में खाद्य सुरक्षा और सार्वभौमिकता को खतरा उत्पन्न होगा जाएगा। अफ्रीका और एशिया के देशों में इसका असर अधिक होगा। ये देश पहले ही खाद्य संकट और भारी-भरकम राष्ट्रीय कर्ज का सामना कर रहे हैं। फाखरी ने इस पहल के खिलाफ एक खुला पत्र लिखा है, जिसकी मुख्य बातें इस प्रकार हैं-
सीजीआईएआर के ग्लोबल साउथ केंद्रों (एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के कम और मध्य वर्ग के देश) के पुनर्गठन से हजारों जर्मप्लाज्म कलेक्शन पर लोगों की पहुंच कम हो जाएगी। वन सीजीआईएआर के नाम से जो पुनर्गठन किया जा रहा है उससे सार्वजनिक कृषि एक्सटेंशन और मदद कार्यक्रमों की तुलना में निजी कंपनियों का प्रभुत्व बढ़ेगा। इसके अलावा क्षेत्रीय सीजीआईएआर रिसर्च केंद्रों में भी अनेक देशों का प्रभाव और उनकी भूमिका कम हो जाएगी।
यह पुनर्गठन अनेक देशों, वहां के किसानों तथा अन्य संबंधित पक्षों के साथ समझौते या मशविरे के बगैर किया जा रहा है। वन सीजीआईएआर में जो प्रक्रिया अपनाई जा रही है वह देशों के स्व-निर्णय के अधिकार तथा उनके कृषि अनुसंधान एजेंडा, खाद्य सार्वभौमिकता तथा खाद्य प्रणाली पर स्थानीय समुदायों के नियंत्रण को चुनौती है। यह क्षेत्रीय खाद्य सुरक्षा को भी चुनौती है।
सीजीआईएआर की स्थापना 1971 में हुई थी। दुनिया भर में इसके 15 अनुसंधान केंद्र हैं जो गैर-मुनाफाकारी संस्थान के तौर पर कार्य करते हैं। इन 15 सीजीआईएआर अनुसंधान केंद्रों के पास प्लांट जर्मप्लाज्म, मवेशियों और जलीय जीवों के जर्मप्लाजम का सबसे बड़ा संग्रह है। यह संग्रह खाद्य और पोषण की पर्याप्त आपूर्ति के लिए आवश्यक है। हर अनुसंधान केंद्र अपने आप में स्वतंत्र है और सीजीआईएआर का सदस्य है। ये केंद्र आर्थिक मदद, मूल्यांकन और प्रशासनिक व्यवस्था के लिए सीजीआईएआर पर ही निर्भर हैं। ये केंद्र जिन देशों में हैं वहां की सरकारों के साथ उनका कानूनी समझौता है।
सीजीआईएआर के प्रमुख वित्तीय मददगारों, जिनमें बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन, वर्ल्ड बैंक और कुछ द्विपक्षीय एजेंसियां शामिल हैं, ने 2020 में सीजीआईएआर के अनुसंधान केंद्रों के विलय का प्रस्ताव दिया। इन केंद्रों को गवर्नेंस के नए ढांचे, वन सीजीआईएआर के लिए वोट देने को आमंत्रित किया गया। नए ढांचे में सभी कार्यक्रम, फाइनेंस और प्रशासनिक व्यवस्था फ्रांस के मोंटपेलियर स्थित मुख्यालय में केंद्रित हो जाएंगी। मुख्यालय ही हर केंद्र के बोर्ड ऑफ ट्रस्टी की नियुक्ति करेगा। इससे उन केंद्रों के गवर्नेंस का ढांचा काफी बदल जाएगा और वे वन सीजीआईएआर की सब्सिडियरी बनकर रह जाएंगे। इन केंद्रों के महानिदेशक तथा अन्य वरिष्ठ स्टाफ को मुख्यालय से मिलने वाले फंड से ही वेतन दिया जाएगा, क्योंकि अभी जो फंड का प्रवाह सीधे क्षेत्रीय केंद्रों में होता है वह सीधे मुख्यालय में होने लगेगा। इन केंद्रों के अपने अलग दानकर्ता (डोनर) हैं। केंद्रीकृत व्यवस्था में क्षेत्रीय केंद्रों का स्वतंत्र डोनर आधार खत्म हो सकता है। जिन देशों में यह केंद्र स्थापित हैं उनकी और उस क्षेत्र की भूमिका भी सीमित हो जाएगी।
अभी 15 केंद्रों में से कम से कम 7 के गवर्नेंस का ढांचा भविष्य में क्या होगा इसे लेकर संदेह है। अनेक देश यह चिंता जाहिर कर चुके हैं कि वन सीजीआईएआर उनके साथ हुए समझौते का उल्लंघन है। कई केंद्रों ने इससे जुड़ने से इनकार कर दिया है और उनकी कानूनी स्थिति को लेकर अभी ऊहापोह बना हुआ है।
पुनर्गठन से मानवाधिकार से जुड़े तात्कालिक और लॉन्ग टर्म चिंताएं बढ़ी हैं, खासकर भोजन के अधिकार के संभावित उल्लंघन को लेकर। यह पुनर्गठन खाद्य प्रणाली पर स्थानीय नियंत्रण के लिए खतरा है। इसमें गवर्नेंस का ढांचा एक केंद्रीकृत व्यवस्था में आ जाएगा जिसमें फंड उपलब्ध कराने वालों का प्रभुत्व रहेगा। जबकि मौजूदा ढांचा स्थानीय अनुसंधान केंद्रों के नेटवर्क का है जिसमें क्षेत्रीय जरूरतें प्राथमिकता रखती हैं। इन केंद्रों के विलय से अमीर डोनर का खाद्य प्रणाली पर नियंत्रण हो जाएगा और कृषि एजेंडा तय करने में सरकारों की भूमिका कम हो जाएगी।
नई व्यवस्था में इन क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्रों के अधिकार छिन जाएंगे। खासकर अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका में स्थित केंद्रों के। यह अधिकार मोंटपेलियर मुख्यालय स्थित चंद हाथों तक सीमित होकर रह जाएगा। क्षेत्रीय केंद्रों की आर्थिक और राजनीतिक स्वतंत्रता भी काफी हद तक कम हो जाएगी। अभी यह केंद्र स्थानीय, राष्ट्रीय और क्षेत्रीय जरूरतों के आधार पर कार्य करते हैं, वह भी सीमित हो जाएगा। इसलिए अमीर दानकर्ताओं की भूमिका कम की जानी चाहिए। सीजीआईएआर केंद्र आखिरकार आम लोगों के प्रति जवाबदेह हैं दानकर्ताओं के प्रति नहीं। दानकर्ताओं को ऐसी स्थिति उत्पन्न करने से बचना चाहिए जहां उनकी मदद राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर फैसले लेने की प्रक्रिया को प्रभावित करने लगे।
यह विलय ग्लोबल साउथ में खाद्य उत्पादन के भविष्य के साथ भी खिलवाड़ है तथा इससे भोजन के अधिकार को पूरा करने में देशों की क्षमता प्रभावित होगी। यदि वन सीजीआईएआर को लागू किया जाता है तो अनेक देशों के लिए अपने यहां भूख, अकाल और कुपोषण को दूर करना मुश्किल हो जाएगा। जीन बैंक पर अमीर दानकर्ताओं के नियंत्रण से ना सिर्फ बीज प्रजातियों के लिए खतरा उत्पन्न होगा बल्कि जीवन के अधिकार को भी यह चुनौती देगा।
उदाहरण के लिए अफ्रीका में किसानों और मवेशी पालने वालों ने 11 क्षेत्रीय रिसर्च केंद्रों के अंतर्राष्ट्रीय जीन बैंकों को लाखों ब्रीडिंग की सुविधाएं दी हैं। किसानों ने अफ्रीका के साथ-साथ विश्व की खाद्य सुरक्षा के लिए इसे महत्वपूर्ण माना। यह अमूल्य योगदान साझी जिम्मेदारी के भाव के तहत किया गया था। वन सीजीआईएआर का ढांचा इन जीन बैंकों पर अफ्रीका के अधिकारों को खत्म कर सकता है। इंटरनेशनल ट्रीटी ऑन प्लांट जेनेटिक रिसोर्सेस फॉर फूड एंड एग्रीकल्चर और बायोडायवर्सिटी पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन के नागोया प्रोटोकोल के तहत मुनाफे में हिस्सा लेने में भी इन देशों को परेशानी होगी। वन सीजीआईएआर से अफ्रीका में कृषि के भविष्य पर बाहरी तत्वों का अधिकार बढ़ेगा। यह सार्वजनिक निजी भागीदारी को बढ़ावा देगा और इस तरह अफ्रीका के प्राकृतिक संसाधन बहुराष्ट्रीय एग्रीबिजनेस के हाथों में चले जाएंगे।
सीजीआईएआर के अंतरराष्ट्रीय जीन बैंकों के गवर्नेंस पर अस्पष्टता का असर अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों पर भी होगा। जीन बैंक अगर सीजीआईएआर से बाहर होंगे तो एफएओ के प्रति उनकी जवाबदेही भी कम होगी। सीजीआईएआर के हर जीन बैंक का जर्मनी स्थित ग्लोबल प्राइवेट सिटी ट्रस्ट के साथ समझौता है। यह ट्रस्ट जीन बैंकों को तकनीकी और वित्तीय मदद उपलब्ध कराता है। उपलब्ध जानकारी के अनुसार इस पुनर्गठन प्रक्रिया से पहले ना तो एफएओ के साथ कोई सलाह-मशविरा किया गया और न ही ग्लोबल क्रॉप डायवर्सिटी ट्रस्ट के साथ।
सीजीआईएआर को केंद्रीकृत करने से इसके केंद्रों की अनुसंधान क्षमता भी प्रभावित होगी जो हमारी बदलती खाद्य प्रणाली को देखते हुए आवश्यक है। अधिकतर खाद्य प्रणाली को भोजन के अधिकार के महत्व को समझते हुए यथाशीघ्र बदलना चाहिए। ऐसे अनुसंधान जिनसे वास्तव में भूख को दूर किया जा सकता है, उसके लिए अनुसंधानकर्ताओं को बड़े बिजनेस के बजाए छोटे किसानों, कर्मचारियों, स्थानीय लोगों तथा उपभोक्ताओं के साथ काम करना चाहिए। इसके लिए सार्वजनिक फंडिंग वाले अनुसंधान की आवश्यकता है। जब अनुसंधान मुनाफे अथवा अमीर दानकर्ताओं के प्रभाव से प्रेरित होंगे तो खाद्य सुरक्षा से प्रभावित लोगों से उसकी दूरी बढ़ेगी। उनकी आवश्यकताओं को वे नहीं समझेंगे। स्थानीय समझ और जानकारी दरकिनार कर दी जाएगी और इन सबकी जगह महंगे तकनीकी समाधान उपलब्ध कराए जाएंगे।
समस्याओं के तकनीकी समाधान की बड़ी समस्या यह है कि उनसे असमानता बढ़ती है, ग्रामीण इलाकों में गरीबी में इजाफा होता है और पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुंचता है। मुनाफे से प्रेरित अनुसंधान में अक्सर खाद्य पदार्थों का उत्पादन बढ़ाने अथवा सिस्टम की क्षमता बढ़ाने पर फोकस किया जाता है। इसमें भोजन के प्रति लोगों की सांस्कृतिक, सामाजिक, पारिस्थितिकीय और आध्यात्मिक संबंधों को दरकिनार कर दिया जाता है। सार्वजनिक फंडिंग वाले स्वतंत्र वैज्ञानिक अनुसंधानकर्ताओं की आवश्यकता इसलिए भी है क्योंकि वह पारंपरिक ज्ञान पर आधारित तथा स्थानीय समुदायों की मदद से नए समाधान लेकर आ सकते हैं। वे मानवाधिकार और लोगों की जरूरतों में समन्वय स्थापित करते हुए तकनीकी इनोवेशन भी कर सकते हैं।
वन सीजीआईएआर पहल को रोकने तथा अंतर्राष्ट्रीय सार्वजनिक कृषि अनुसंधान के भविष्य पर विचार में क्षेत्रीय वार्ताओं को शामिल करने की बात कही है। इसका उद्देश्य सरकारों, अनुसंधानकर्ताओं, छोटे किसानों, खेतों में काम करने वालों, स्थानीय लोगों, उपभोक्ताओं तथा अन्य सभी संबंधित पक्षों की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करना है। वे सब मिलकर एक विकल्प तलाशेंगे और बेहतर प्रणाली विकसित करेंगे जिससे सबका भला होगा। क्षेत्रीय केंद्रों को सरकारों के समर्थन के बिना वन सीजीआईएआर मिशन नाकाम हो जाएगा।
(माइकल फाखरी, भोजन के अधिकार पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष प्रतिनिधि हैं। उन्हें मार्च 2020 में मानवाधिकार परिषद ने इस पद पर नियुक्त किया था। फाखरी यूनिवर्सिटी आफ ओरेगॉन में स्कूल आफ लॉ के प्रोफेसर हैं जहां वे मानवाधिकार, खाद्य कानून, विकास और कमर्शियल कानून विषयों पर पढ़ाते हैं। वह एनवायरमेंटल एंड नेचुरल रिसोर्सेज लॉ सेंटर में फूड रेजिलिएंसी प्रोजेक्ट के डायरेक्टर भी हैं)