राबोबैंक की नई राबो रिसर्च रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2025 में वैश्विक उर्वरक कीमतों में लगातार वृद्धि हो रही है। इससे दुनिया भर के किसानों की लागत बढ़ रही है और भविष्य की मांग को लेकर चिंताएं गहराती जा रही हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत वैश्विक उर्वरक बाजार में एक प्रमुख खरीदार बना हुआ है, हालांकि मौसमी मांग में कुछ नरमी आई है और भंडार भी घटते जा रहे हैं। खरीदार अब अधिक सतर्कता बरत रहे हैं और वेट एंड वॉच का नजरिया अपना रहे हैं।
रिपोर्ट के फर्टिलाइजर अफोर्डेबिलिटी इंडेक्स के अनुसार उर्वरकों की सुलभता अपेक्षाकृत कम होती जा रही है। राबो रिसर्च में फार्म इनपुट्स के वरिष्ठ विश्लेषक ब्रूनो फोंसेका ने कहा, "हम उर्वरक चक्र में एक स्पष्ट बदलाव देख रहे हैं, और दुर्भाग्यवश यह प्रवृत्ति घटती सुलभता की ओर बढ़ रही है।" उन्होंने कहा कि यह प्रतिकूल बाजार परिदृश्य पूरे वर्ष बने रहने के आसार हैं। रिपोर्ट के अनुसार भूराजनीतिक तनावों के बावजूद, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अमेरिका, यूरोप और अमेरिका जैसे क्षेत्रों में उर्वरक की मांग स्थिर बनी हुई है।
रिपोर्ट में बताया गया है कि नाइट्रोजन और फॉस्फेट आधारित उर्वरक विशेष रूप से प्रभावित हो रहे हैं। उनके दाम बढ़ने से किसानों की क्रय शक्ति घट रही है। रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि उर्वरक मांग में बड़ी गिरावट तुरंत नहीं होगी, लेकिन घटती सुलभता का रुझान बताता है कि भविष्य में मांग में गिरावट अवश्य आएगी।
विशेष रूप से फॉस्फेट की आपूर्ति में बाधाओं के कारण दबाव और बढ़ गया है। चाइनीज उर्वरक निर्यात पर लगे प्रतिबंधों और बदलती वैश्विक बाजार स्थितियों ने फॉस्फेट और नाइट्रोजन उत्पाद, दोनों की आपूर्ति को कम कर दिया है। फोंसेका का अनुमान है कि चीन 2025 की दूसरी छमाही में घरेलू मांग में कमी आने के बाद ही निर्यात में ढील देगा।
उर्वरक क्षेत्र की ये चुनौतियां ऐसे समय में आ रही हैं जब कृषि जिंसों के बाजार में व्यापक स्तर पर अनिश्चितता बनी हुई है। वैश्विक भंडार की कमी के कारण मक्का बाजार में कीमतों के बढ़ने की संभावना है, जबकि सोयाबीन के दाम दबाव में हैं। इसका कारण ब्राजील में रिकॉर्ड फसल की उम्मीद और चीन को अमेरिकी सोयाबीन निर्यात में गिरावट है।
व्यापार को लेकर संघर्ष और टैरिफ (शुल्क) खतरों ने पिछले दो वर्षों में कृषि जिंसों की कीमतों पर भारी दबाव डाला है। फोंसेका ने कहा, "हमने पहले ही चेतावनी दी थी कि नए टैरिफ से अमेरिकी किसान सबसे अधिक प्रभावित होंगे।" उन्होंने यह भी बताया कि नीतिगत कदमों से उत्पन्न आपूर्ति संकट के चलते अमेरिका में उर्वरकों की कीमतें वैश्विक बाजारों की तुलना में अधिक रही हैं।
बाजार में अस्थिरता के बावजूद मक्का, सोयाबीन और गेहूं की कीमतें अभी 2024 की गर्मियों में निर्धारित दायरे के भीतर कारोबार कर रही हैं। रिपोर्ट के अनुसार, उर्वरक बाजार और कृषि जिंस दोनों ही कठिन परिस्थितियों से गुजर रहे हैं। इनकी सुलभता, आपूर्ति श्रृंखला में बाधाएं और व्यापार नीतियां वर्ष की दिशा तय करेंगी।