देश से सालाना करीब 50 हजार करोड़ रुपये के निर्यात वाले बासमती चावल पर भौगोलिक अधिकार की राह भारत के लिए मुश्किल हो रही है। बासमती के ज्योग्राफिकल इंडिकेशन (जीआई) यानि भौगोलिक पहचान को लेकर भारत और पाकिस्तान अपना-अपना दावा कर रहे हैं। इसके झगड़े के बीच न्यूजीलैंड ने बासमती के लिए भारत के ट्रेड मार्क आवेदन को खारिज कर दिया है। इसके पहले आस्ट्रेलिया भी ऐसा कर चुका है।
न्यूजीलैंड का कहना है कि फ्रेगरेंस राइस (खुशबू वाला चावल) अन्य देश भी उगाते हैं इसलिए इस पर किसी एक देश के दावे को स्वीकार नहीं किया जा सकता है। इंटलैक्चुअल प्रोपर्टी ऑफिस ऑफ न्यूजीलैंड (आईपीओएनजेड) ने भारत को बासमती के लिए जीआई के समान सर्टिफिकेट देने से इनकार कर दिया है। इसके लिए भारत की ओर से एग्रीकल्चरल एंड प्रोसेस्ड फूड प्रॉडक्ट्स एक्सपोर्ट डेवलपमेंट ऑथरिटी (एपीडा) ने आवेदन किया था।
बासमती को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच कई वर्षों से विवाद चल रहा है। पाकिस्तान ने 2022 में यूरोपीय यूनियन (ईयू) में बासमती के जीआई के लिए आवेदन किया था। जबकि पाकिस्तान के आवेदन पर आपत्ति जताते हुए भारत ने इसे रद्द करने की मांग की। बासमती के जीआई के लिए भारत के आवेदन को ईयू ने 2018 से ठंडे बस्ते में डाल रखा है। पाकिस्तान ने अपने आवेदन में 44 जिलों में बासमती उगाने का दावा किया है। जिनमें बलूचिस्तान जैसे इलाके भी शामिल हैं जहां सामान्य चावल पैदा करना भी मुश्किल है। पाकिस्तान ने इस सूची में पाक अधिकृत कश्मीर के चार जिलों को भी शामिल कर लिया है। पाकिस्तान बासमती का जीआई हासिल कर इस महंगे चावल के वैश्विक बाजार में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाना चाहता है।
बासमती के वैश्विक बाजार के मसले को समझने के लिए हमें थोड़ा पीछे जाने की जरूरत है। साल 2008 में बासमती के जीआई के मुद्दे पर भारत और पाकिस्तान की एक संयुक्त बैठक में एक ग्रुप बनाया गया था। इस पर दोनों देशों के संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारियों ने हस्ताक्षर किये थे। तब तय किया गया था कि बासमती के लिए पाकिस्तान के 14 जिलों को उत्पादन क्षेत्र के रूप में स्वीकार किया जाएगा, वहीं भारत के सात राज्यों पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश. उत्तराखंड, दिल्ली और जम्मू एवं कश्मीर को बासमती उत्पादक क्षेत्र को स्वीकार किया जाएगा। उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक, इस बैठक में तय किया गया था कि दोनों देश संयुक्त रूप से बासमती के जीआई टैग के लिए आवेदन करेंगे। लेकिन दोनों देशों के बीच आपसी संबंधों की बिगड़ती स्थिति के चलते मामला ठंडे बस्ते में चला गया।
इस बीच, भारत ने 2018 में बासमती के जीआई टैग के लिए ईयू में आवेदन किया। लेकिन ईयू ने भारत के आवेदन को ठंडे बस्ते में डाल दिया। जबकि पाकिस्तान ने 2022 में आवेदन किया और ईयू ने उसे फास्ट ट्रैक से आगे बढ़ाया। भौगोलिक पहचान (जीई) के तहत आवेदन की शर्त है कि मूल देश में उत्पाद को जीआई टैग के तहत अधिसूचित होना चाहिए। भारत में जीआई के लिए 1999 में कानून बन गया था। लेकिन पाकिस्तान में इसके लिए कानून ही 2022 में बना। तभी पाकिस्तान ने बासमती को जीआई टैग दिया। साथ ही पाकिस्तान ने बासमती के उत्पादक जिलों की संख्या 14 से बढ़ाकर 44 कर दी। इसके अलावा पाक अधिकृत कश्मीर के चार जिले भी जोड़ दिये गये और जिलों की संख्या 48 हो गई। पाकिस्तान में जीआई टैग के लिए आवेदन को पब्लिक करने का प्रावधान नहीं है इसलिए भारत को वास्तविक स्थिति का पता ही नहीं था। लेकिन ईयू में आवेदन के बाद जब पाकिस्तान के आवेदन को आपत्तियों के लिए सार्वजनिक किया गया तो भारत को बासमती पर पाकिस्तान की चाल का पता लगा।
इसके मामले के सामने आने के बाद भारत सरकार हरकत में आई और इस मुद्दे पर वाणिज्य मंत्रालय, कृषि मंत्रालय, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के वैज्ञानिकों के बीच बैठकें हुई हैं। सूत्रों के मुताबिक, वाणिज्य मंत्रालय के कुछ अधिकारियों का मत था कि भारत को भी अपने नये इलाकों को बासमती उत्पादन क्षेत्र में शामिल कर लेना चाहिए। लेकिन उच्च अधिकारी इसके पक्ष में नहीं थे। वहीं, बैठक में शामिल कृषि वैज्ञानिकों ने साफ कर दिया था कि सात राज्यों के अलावा अन्य क्षेत्रों को बासमती उत्पादन क्षेत्र में शामिल करना भारत के हित में नहीं है। जीआई का फायदा तभी है जब हम इसके लिए तय मानदंडों और दावों के आधार पर ही अपना पक्ष रखें। यही देश और किसानों के हित में है। हालांकि, भारत में चावल निर्यातकों की एक लॉबी है मध्य प्रदेश को बासमती उत्पादक क्षेत्र के रूप में शामिल कराना चाहती थी।
सूत्रों के मुताबिक, वाणिज्य मंत्रालय के साथ विदेश मंत्रालय और प्रधानमंत्री कार्यालय के स्तर पर यह तय हुआ कि भारत बासमती पर पाकिस्तान के आवेदन का विरोध करेगा। इसके तहत रणनीति बनाई गयी है कि पाकिस्तान का आवेदन ईयू से निरस्त होने के बाद दोनों देशों के बीच बातचीत का रास्ता शुरू किया जा सकता है। लेकिन इस पर भारत का स्टैंड 2008 के संयुक्त ग्रुप में तय बातों पर ही केंद्रित रहेगा। पाकिस्तान के केवल 14 जिलों को बासमती उत्पादक क्षेत्र माना जाएगा और भारत सात राज्यों के तय उत्पादन क्षेत्रों में ही बासमती उत्पादन करेगा।
दिलचस्प बात यह है कि ईयू में बासमती पर पाकिस्तान के क्लेम के खिलाफ तीन आपत्तियां फाइल हुई हैं। इनमें भारत सरकार, नेपाल सरकार और मध्य प्रदेश की आपत्ति शामिल हैं। भारत में वैज्ञानिकों और अधिकारियों के बड़े वर्ग का कहना है कि भारत पहले से तय अपने सात राज्यों में मौजूदा स्तर से तीन गुना तक बासमती उत्पादन कर सकता है।हमारे देश में बासमती के तहत 60 लाख हैक्टेयर तक का क्षेत्र शामिल किये जाने की संभावना है। मसलन पंजाब में 30 लाख हैक्टेयर में धान होता है जबकि वहां बासमती का क्षेत्रफल केवल छह लाख हैक्टेयर है। इसी तरह हरियाणा में भी करीब छह लाख हैक्टेयर में बासमती होता है जिसे 12 लाख हैक्टेयर तक ले जाया जा सकता है। इसके अलावा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में करीब पांच लाख हैक्टेयर को इसके तहत लाया जा सकता है। रूरल वॉयस के साथ बातचीत में एक वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक ने कहा कि जब हमारे पास पहले से तय राज्यों में तीन गुना ज्यादा बासमती उगाने की संभावना है तो हमें इसी पर टिकना चाहिए। बासमती का उत्पादन खास भौगोलिक स्थिति, जलवायु और मिट्टी की गुणवत्ता के आधार पर होने के चलते ही केवल सात राज्यों को जीआई की श्रेणी में रखा गया है। जबकि पाकिस्तान ने बासमती के अपने सीमित क्षेत्र को बढ़ाने के लिए नये जिलों को शामिल करने का अनुचित कदम उठाया है जो कानूनी और वैज्ञानिक रूप से सही नहीं है। उम्मीद है कि बासमती के बहुत व्यापक क्षेत्र में पाकिस्तान का दावा खारिज कराने में भारत कामयाब होगा।
आल इंडिया राइस एक्सपोर्ट्स एसोसिएशन (एआईआरईए) के पूर्व अध्यक्ष विजय सेतिया ने रूरल वॉयस को बताया कि इस मुद्दे पर हम पाकिस्तान का विरोध कर रहे हैं। सरकार के अलावा हमारे संगठन ने भी अपने कानूनी अधिकारी के जरिये अपना पक्ष रखा है। अभी तक ईयू का फैसला नहीं आया है। लेकिन न्यूजीलैंड के ताजा फैसले ने इस मुद्दे को फिर से सुर्खियों ला दिया है।
एक तथ्य यह भी है कि सस्ती कीमतों के चलते यूरोपीय यूनियन का बासमती का अधिकांश बाजार पाकिस्तान ने कब्जा रखा है। भारत द्वारा पिछले साल बासमती के निर्यात पर न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) लागू करने का कदम भी बासमती निर्यात के लिए प्रतिकूल साबित हुआ। भारत से निर्यात होने वाला अधिकांश बासमती संयुक्त अरब अमीरात (यूएई), ईरान और कुछ दूसरे खाड़ी देशों में अधिक जाता है। ऐसे में बासमती को जीई टैग का मुद्दा भारत के लिए काफी अहम है क्योंकि देश में बासमती उत्पादक सात राज्यों के करोड़ों किसानों को निर्यात बाजार की वजह से बेहतर दाम मिल पाता है।