यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में पैदा हुआ गेहूं का संकट अभी खत्म नहीं हुआ है, इसके बावजूद इस कमोडिटी के दाम में हाल में तेज गिरावट आई है। मंगलवार, 28 जून को गेहूं की कीमत 9.39 डॉलर प्रति बुशल (लगभग 313 डॉलर प्रति टन) रह गई जबकि 7 मार्च को इसकी कीमत 12.94 डॉलर प्रति बुशल (लगभग 431 डॉलर प्रति टन) पर पहुंच गई थी। इस तरह रिकॉर्ड ऊंचाई से दाम 27 फीसदी गिर चुके हैं। वैसे एक साल पहले जुलाई 2021 में दाम 6 डॉलर प्रति बुशल के आसपास थे।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं के दाम रूस-यूक्रेन युद्ध से पहले से ही ऊंचे चल रहे थे। कोविड-19 के कारण सप्लाई चेन बाधित हो गई थी। इसलिए अनेक देशों में इसकी किल्लत हो गई और दाम बढ़ने लगे। युद्ध के कारण स्थिति और बिगड़ गई। दुनिया का 30 फीसदी गेहूं निर्यात रूस और यूक्रेन ही करते हैं।
गेहूं के दाम में इस गिरावट का प्रमुख कारण रूस का आश्वासन है। रूस और तुर्की ने कहा है कि वे काला सागर के रास्ते यूक्रेन का गेहूं निकालने पर चर्चा के लिए तैयार हैं। दरअसल, पिछले दिनों जर्मनी में जी7 देशों की बैठक में भी यह मुद्दा उठा और इन देशों ने रूस से इस पर विचार करने का आग्रह किया।
युद्ध शुरू होने के तत्काल बाद भारत ने गेहूं निर्यात को बढ़ावा देने की कोशिश की थी। तब यहां किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की तुलना में 30 से 40 फीसदी ज्यादा भाव मिले थे। लेकिन जल्दी ही पता चला कि मार्च में अचानक तापमान बढ़ने से उत्तरी राज्यों में गेहूं की फसल को नुकसान हुआ है। सरकारी खरीद भी पिछले साल के 434 लाख टन के मुकाबले 187.46 लाख टन पर अटक गया।
देश में गेहूं संकट की आशंका बनती देख सरकार ने 13 मई को इसके निर्यात पर पाबंदी लगाने का फैसला किया। हालांकि उसके बाद सवा महीने में करीब 18 लाख टन गेहूं का निर्यात किया गया। यह निर्यात बांग्लादेश समेत कई देशों की सरकारों के आग्रह पर किया गया।
उधर, युद्ध के कारण यूक्रेन के बंदरगाहों पर गेहूं और अन्य अनाज बड़ी मात्रा में जमा हो गए हैं। रूसी सेना ने इन बंदरगाहों पर या तो कब्जा कर लिया है या वहां तक आना-जाना रोक दिया है। हालांकि यूक्रेन से तत्काल निर्यात की उम्मीद नहीं है क्योंकि रूसी बमबारी में बंदरगाहों को भी नुकसान पहुंचा है। इसके अलावा समुद्र में जो बारूदी सुरंगें बिछाई गई हैं उन्हें भी हटाना पड़ेगा।
गेहूं के अलावा मक्का और सोयाबीन की कीमतों में भी गिरावट आने लगी है। इन फसलों की वैश्विक पैदावार अच्छी होने की उम्मीद में इनके दाम घटे हैं। ग्लोबल मार्केट में अन्य कृषि जिंसों की कीमतों में भी नरमी का रुख है। कुछ विशेषज्ञ यह मान रहे हैं कि कृषि जिंसों की महंगाई शायद अपने शीर्ष पर पहुंच गई है। चीन में कोविड लॉकडाउन हटने से वहां से भी दूसरे बाजारों में सप्लाई में सुधार आया है। इसका असर भी कीमतों पर दिखने लगा है।