अगले एक दशक में दुनिया का कुल कृषि उत्पादन हर साल 1.1% बढ़ने की संभावना है। ज्यादातर वृद्धि मध्य तथा कम आय वाले देशों में होगी। अगर ऊर्जा और कृषि इनपुट, खासकर उर्वरकों की कीमतें बढ़ती हैं तो इससे उत्पादन लागत बढ़ेगी और इसका असर खाद्य पदार्थों की महंगाई और विश्व खाद्य सुरक्षा पर पड़ेगा। ओईसीडी-एफएओ एग्रीकल्चरल आउटलुक 2023-32 में यह बात कही गई है। खास बात यह है कि उत्पादन में ज्यादातर वृद्धि उत्पादकता बढ़ने के कारण होगी, कृषि योग्य खेती के विस्तार का असर कम होगा। इसलिए उत्पादकता बढ़ाने और बेहतर फार्म मैनेजमेंट पर निवेश जरूरी है। वैश्विक कृषि उत्पादन में वृद्धि का 79% प्लांट ब्रीडिंग और उत्पादन प्रणाली के कारण, 15% खेती योग्य भूमि के विस्तार के कारण और 6% ज्यादा क्रॉपिंग इंटेंसिटी के कारण होगा। आयल पाम तथा रेपसीड जैसी फसलों की उत्पादकता प्रमुख उत्पादक देशों में एक दशक के दौरान नहीं बढ़ी है, इस दिशा में निवेश बढ़ाने की जरूरत है।
फसलों की तरह मवेशी तथा मछली में भी उत्पादकता बढ़ने के कारण सालाना 1.3% उत्पादन बढ़ने के आसार हैं। वैश्विक मीट उत्पादन में आधी हिस्सेदारी पोल्ट्री क्षेत्र की होगी। दुनिया में अगले एक दशक के दौरान दूध का उत्पादन तेजी से बढ़ने की उम्मीद है। इसमें से आधी वृद्धि भारत और पाकिस्तान में होगी।
रिपोर्ट के अनुसार, कृषि इनपुट की कीमतों में बीते दो वर्षों में जो वृद्धि हुई है उसने वैश्विक खाद्य सुरक्षा को लेकर चिंता बढ़ा दी है। उर्वरकों की बढ़ती कीमत से खाद्य पदार्थों के दाम बढ़ सकते हैं। ओईसीडी-एफएओ एगलिंक-कॉसिमो मॉडलिंग के अनुसार उर्वरक की कीमतों में हर एक प्रतिशत वृद्धि से कृषि कमोडिटी के दाम 0.2% बढ़ेंगे। यह बढ़ोतरी उन फसलों में ज्यादा होगी जिनमें उर्वरकों का प्रयोग सीधे इनपुट के साथ पर होता है। मवेशियों के मामले में असर कम होगा, लेकिन पोल्ट्री पर असर अधिक होगा क्योंकि यह क्षेत्र कंपाउंड चारे पर काफी हद तक निर्भर करता है। उर्वरकों के अलावा ऊर्जा, बीज और मशीनरी की कीमत भी खाद्य पदार्थों की कीमतों को प्रभावित करेंगी।
कैलोरी के लिहाज से वैश्विक खाद्य खपत अगले एक दशक के दौरान हर साल 1.3% बढ़ने का अनुमान है। हालांकि यह पिछले एक दशक की तुलना में यह वृद्धि कम होगी। इसकी प्रमुख वजह आबादी के बढ़ने की रफ्तार और प्रति व्यक्ति आय की वृद्धि दर में कमी है। कृषि कमोडिटी का दूसरा सबसे अधिक इस्तेमाल मवेशियों तथा मछलियों के लिए चारे में होता है। कम तथा मध्य आय वाले देशों में इनका पालन तेजी से बढ़ेगा जिससे अगले एक दशक के दौरान चारे की मांग भी काफी तेजी से बढ़ेगी। इसके विपरीत उच्च आय तथा चीन जैसे उच्च मध्य आय वाले देशों में मवेशियों का पालन अपेक्षाकृत कम तेजी से बढ़ेगा, इसलिए वहां पिछले दशक की तुलना में चारे की मांग में वृद्धि कम होगी।
इस अवधि में बायोफ्यूल के लिए कृषि फसलों की मांग में वृद्धि अपेक्षाकृत धीमी रहेगी। ज्यादातर मांग भारत और इंडोनेशिया से निकलेगी क्योंकि वहां वाहन ईंधन की मांग के साथ ब्लेंडिंग के लिए बायोफ्यूल की मांग बढ़ेगी। अन्य प्रमुख बाजारों में यूरोपियन यूनियन में वाहनों के लिए ईंधन की मांग में कमी आने से बायोफ्यूल की मांग भी कम होने का अनुमान है। कुल मिलाकर बायोफ्यूल के लिए गन्ना और वनस्पति तेल की मांग बढ़ने का अनुमान है जबकि मक्के की मांग में गिरावट की संभावना है।
जहां तक कृषि से ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन का सवाल है तो अगले दशक में उसमें 7.6% वृद्धि की आशंका है। यह कृषि उत्पादन में 12.8% वृद्धि की तुलना में कम है। इससे अंदाजा मिलता है कि कृषि उत्पादन में कार्बन इंटेंसिटी में तेजी से गिरावट आएगी। हालांकि जलवायु परिवर्तन के असर को कम करने के लिए मवेशी क्षेत्र में कार्बन उत्सर्जन कम करने की जरूरत है। कृषि क्षेत्र में ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में जो वृद्धि होगी उसका 80% मवेशी क्षेत्र से ही होगा।
प्राथमिक कृषि जिंसों तथा प्रसंस्कृत उत्पादों का व्यापार अगले एक दशक में इनके उत्पादन के अनुपात में ही बढ़ने की संभावना है। कोविड-19 महामारी के दौरान दुनिया में व्यापार में कमी आई लेकिन कृषि जिंसों के व्यापार पर कुछ खास असर नहीं हुआ। रूस-यूक्रेन युद्ध जरूर कृषि जिंसों के कारोबार, खासकर यूक्रेन से होने वाले निर्यात तथा कीमतों को प्रभावित कर रहा है। निर्यात पर प्रतिबंधों से कीमतों में अनिश्चितता बढ़ती है और विश्व खाद्य सुरक्षा पर अल्पावधि में नकारात्मक असर होता है।