एक सितम्बर को शिकागो यूनिवर्सिटी की एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट ( इपीक ) के द्वारा एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स पर जारी वार्षिक रिपोर्ट से एक बात स्पष्ट हो गया है कि दुनिया के कई देश के सर्वाधिक प्रदूषित शहर जहां वायु प्रदूषण के धुंध के कारण असामान दिखाई नही देता था वहां पिछले एक वर्ष में कोविड महामारी चलते पूरी दुनिया लगे लॉक डाउनों के वजह से उन शहरों में भी नीला असामान साफ दिखाई देने लगा था। जबकि हाल के दिनो में जंगलो में लगे आग जो सूखी और गर्म जलवायु के कारण तेज हुई है जिससे हजारों किलोमीटर दूर के उन महानगरों में धुआं भर दिया जहां पर आसमान साफ रहता था । ऐसी परस्पर विपरीत घटनाएं भविष्य के बारे में दो नजरिया प्रस्तुत कर रही हैं। दोनों चुनौतियां एक ही अपराध या कहे गलती जो इंसान द्वारा हो रही है वह हैं जीवाश्म ईंधन का अधिक उत्सर्जन किया जाना, जिसे बिजली संयंत्रों ,वाहनों और अन्य औद्योगिक स्रोतों से किया जाता है। इसलिए पहले से कही आज के वक्त में दुनिया के देशों को जीवाश्म ईंधन पर अपनी निर्भरता कम करने के लिए अधिक मजबूत नीतियां को बनाने की जरूरत है ।
एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स के डाटा इस बात को दर्शाता है कि अगर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लू एचओ) के दिशानिर्देश को पूरा करने के लिए मजबूत प्रदूषण नियंत्रण नीतियां बनानी होगी, जिससे वायु प्रदूषण के पार्टिकुलेट को घटा दिया जाय ,नही तो इंसान के जीवन काल में लगभग 2.2 साल की कमी आ जाएगी औऱ दुनिया के सबसे अधिक प्रदूषित शहरों में इंसान के जीवन काल में लगभग 5 साल की कमी आ जाएगी। वायु प्रदूषण के पार्टिकुलेट के वजह से लोगों में क्षय रोग , एच आई बी, फेफड़े संबधी रोग ज्यादा होता है।
वहीं दूसरी तऱफ इस तरह कहा जा सकता है कि स्वच्छ वायु नीतियां जो जीवाश्म ईंधन के उत्सर्जन को घटा सकती हैं जलवायु परिवर्तन की प्रबलता में सहायता कर सकती है,वह सर्वाधिक प्रदूषित क्षेत्रों के निवासियों के जीवन में पांच वर्षों की बढ़ोतरी कर सकती हैं जबकि वैश्विक स्तर पर लोगों के जीवन में औसतन दो वर्षों की वृध्दि हो सकती है। जो लोग प्रदूषित गंंदी हवाओं में जीवनयापन और सांस लेते थे जब उन लोगों ने लॉकडाउन के वजह से स्वच्छ हवाओं में सांस लिया औऱ स्वच्छ हवाओं के फायदे का अनुभव किया और वही दुसरी तऱफ कुछ लोगों जो स्वस्थ हवाओं में अपने जीवन यापन और सांस लेने के लिए अभयस्थ थे वे जंगलो के आग के वजह से प्रदुूषित हवाओं का अनुभव किया। इस घटनाओं से एक बता तो एक दम स्पष्ट जाती है इसअप्रत्याशित साल मेंजीवाश्म ईंधन के उत्सर्जन को घटाने में नीति से स्थानीय वायु प्रदूषण औऱ जलवायु परिवर्तन को कम करने में कितनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।
इस बात को माइकल ग्रीनस्टोन ने कहा है जो एक अमेरिकी अर्थशास्त्री औऱ शिकागो विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र औऱ हैऱिस स्कूल ऑफ पब्लिक पॉलिसी में मिल्टन फ्रीडमैन विशिष्ट सेवा प्रोफेसर है।उन्होंने कहा कि “एएलक्यूआई डाटा बताता है कि वायु प्रदूषण रोकने वाली की नीतियों का हमारे स्वास्थ्य को सुधारने और आयु बढ़ाने में किस प्रकार लाभ दे सकती है।
एक्यूएलआई की नई रिपोर्ट के अनुसार, दक्षिण एशिया में पृथ्वी के सर्वाधिक प्रदूषित देश- बांग्लादेश, भारत, नेपाल और पाकिस्तान जिनमें दुनिया की जनसंख्या का करीब एक चौथाई हिस्सा इस क्षेत्र में निवास करता है और लगातार दुनिया की सर्वाधिक प्रदूषित पांच शीर्ष देशों में बने हुए हैं, एक्यूएलआई के अनुसार, समूचे उत्तर भारत में इसका प्रभाव कहीं अधिक आंका गया है। इस क्षेत्र में वायु प्रदूषण का दुनिया में सबसे उच्चतम स्तर पर है अगर प्रदूषण की सांद्रता 2019 के स्तर पर लगातार बनी रही तो इस क्षेत्र जिसमें दिल्ली और कोलकाता जैसे विशाल महानगर शामिल हैं। यहां पर रहने वाले निवासियों के जीवन-काल लगभग में 9 वर्षों से अधिक की क्षति होगी। भारत में वायु प्रदूषण का उच्च स्तर समय के साथ भौगोलिक रूप से फैला है दो दशक पहले की तुलना में कणीय (पार्टिकुलेट) प्रदूषण अब केवल गंगा के मैदानी क्षेत्र तक ही सीमीत नही रहा बल्कि अब यह महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में भी इस तरह बढ़ा रहा है। इससे इन राज्यों के साल 2000 की तुलना की जाय तो इस क्षेत्र के औसत व्यक्ति की जीवन-काल में लगभग 2.5 से 2.9 साल का नुकसान हो रहा है।
इस सबके बीच चीन एक महत्वपूर्ण मॉडल बनकर उभरा है जो अपने नीतियों के जरिए कम समय में ही अपने यहां वह प्रदूषण में तेजी से कमी लाया है। चीन ने साल 2013 में प्रदूषण के खिलाफ जंग की” शुरूआत की थी जिसके बाद उसके वहां कणीय (पार्टिकुलेट पॉल्यूसन) में 29 प्रतिशत कमी आई है जो वैश्विक स्तर पर वायु प्रदूषण में कमी का तीन-चौथाई हिस्सा है। चीन की यह यह सफलता इस बात का संकेत देती है कि दुनिया के सर्वाधिक प्रदूषित देशों में भी इस तरह का प्रगति संभव है। दक्षिण एशिया के क्षेत्र में एक्यूएलआई आंकड़ा बताता है कि अगर प्रदूषण को डब्लूएचओ निर्देशावली के अनुसार घटा दिया जाए तो औसत व्यक्ति की आयु 5 वर्ष से अधिक बढ़ जाएगी।
स्वच्छ वायु नीतियों का फायदा उत्तर भारत जैसे प्रदूषण के हॉट स्पॉट्स वाले क्षेत्रों में कहीं अधिक है जहां 480 मिलियन लोग जिस वायु में सांस लेते हैं,उसका प्रदूषण स्तर विश्व के किसी भी इलाके प्रदूषण स्तर से दस गुना अधिक है। एक्यूएलआई के निर्देशक केन ली ने कहा कि “बुरी खबर है कि वायु प्रदूषण का सर्वाधिक असर दक्षिण एशिया में केन्द्रीत हैअच्छी खबर यह है कि इस क्षेत्र की सरकारें समस्या की गंभीरता को स्वीकार करने लगी हैं और अब कार्रवाई करना शुरु कर रही हैं।” उन्होंने कहा कि भारत सरकार की राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) स्वच्छ वायु और लंबा जीवन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है इसने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में वायु गुणवत्ता प्रबंधन के लिए एक नया कमीशन स्थापित किया है।