जलवायु परिवर्तन के दुनिया की प्रतिष्ठित संस्था इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेंट चेंज (आईपीसीसी ) ने अपनी छठी मूल्यांकन रिपोर्ट में कहा है जलवायु में आए परिवर्तन वर्तमान औऱ भविष्य दोनों के लिए बेहद डरावना हैं क्योंकि ग्लोबल वार्मिंग वर्तमान औऱ भविष्य पर नकरात्मक प्रभाव डाल रही है। पूर्व अनुमानों को लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव एंटोनियो गुटरेस ने कहा है कि यह रिपोर्ट मानवता के लिए खतरे की घंटी है औऱ इसे नजरअंदाज करना नामुकिन है। जीवाश्म ईंधन (फोसिल फ्यूएल) के जलने से उत्सर्जित ग्रीनहाउस गैसें और कटते जंगलों से दुनिया का दम घुट रहा है जिसके चलते दुनिया भर में बढ़ती आगजानी, अत्यधिक गर्मी औऱ बारिश की घटनाओं के कारण विनाशकारी बाढ़ और समुद्र तल के नीचे बदलते तापमान के चलते चक्रवात की घटनाएं देखने को मिलती रही हैं।
असल में जलवाय़ु परिवर्तन के कारण देश की खाद्य सुरक्षा के लिए एक अहम चुनौती बन रही है । लागातार सूखा, बाढ़, चक्रवात, औऱ शीतलहर के कारण कृषि पर विपरीत प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है। एक अनुमान के अनुसार अगर 2040 तक तापमान 1.5 डिग्री तक बढ़ता है तो फसलों की पैदावार पर इसका गंभीर प्रभाव पडेगा । उच्च तापमान, छोटी फसल अवधि, प्रकाश संश्लेशण में बदलाव के कारण फसलों की बढ़वार प्रभावित होती है । दूसरी तरफ कीट रोगों का प्रकोप बढ़ेगा । जलवाय़ु परिवर्तन पोषक तत्वों को जैविक से गैर जैविक में बदलता है और तापमान के बढ़ोत्तरी से पौधों की वाष्प सर्जन बढ़ती है, जिससे फसलों की अधिक जल मांग बढ़ेगी । इस तरह से प्राकृतिक संसाधनो के नुकसान के साथ साथ किसानों जलवायु परिवर्तन का प्रभाव प्रत्यक्ष औऱ परोक्ष रूप से फसल, पानी औऱ मिट्टी पर पड़ता है । साल 2017–18 के आर्थिक सर्वेक्षण में चेतावनी दी गई धी की जलवायु परिवर्तन के कारण वार्षिक कमाई में 15 से 18 प्रतिशत आ सकती है और इससे खाद्य सुरक्षा और स्वा्स्थ्य पक प्रतिकूल असर पड़ेगा।
कृषि पद्धतियां पूरी तरह मौसम की परिस्थितियों पर आधारित हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार अनुमान लगाया गया है कि अगर इसी तरह तापमान बढ़ेगा तो दक्षिण एशियाई देशों में कृषि पैदावार में 30 प्रतिशत तक गिरावट आने का अनुमान है । मिसाल के तौर पर भारत में अगर तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोत्तरी हुई तो देश में वर्षा एक मिली मिलीमटर कम होगी औऱ धान की पैदवार में 3 से 15 फीसदी तक कमी आ जाएगी।
जिस तरह तापमान में बढोत्तरी हो रही है उससे ग्लेसियर पिघलेंगे, तापमान बढ़ेगा । एक तरफ जहां बाढ़ आएगी दूसरी तापमान बढ़ने से कृषि वैज्ञानिको का मानना है कि, पर्वतीय फलो पर सेब ,खुवानी चेरी फल झुलसेंगे और उनमें दरारे आएंगी। और अगर ओजोन 50 पीपीबी पहुंच गया तो सब्जियों की पैदावार में 15 से 20 फीसदी की गिरावट आएगी ।तापमान की बढ़ोत्तरी से पशुओं के शरीर के क्रिया पर भी प्रभाव पड़ता है जिससे दूध के उत्पादन और अंडा उत्पादन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है ।
आईपीसीसी के रिपोर्ट पर पर्यावरणविद सुनीता नरायण ने कहा है कि इस चेतावनी को भविष्य की महज एक संभावना की तरह नहीं देखा जाना चाहिए बल्कि अगर हम अभी नही संभले तो यह खतरा निश्चित है । उन्होंने कहा है कि दुनिया 2040 तक 1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि की तरफ बढ़ रही है। जलवायु परिवर्तन का मुख्य कारण मानव गतिविधियां हैं और घटती हरियाली के कारण वतावरण में बढ़ता कार्बन। इस मुसीबत को एक देश दूसरे पर टाल कर और केवल बड़ी- बड़ी बातें कहकर कि यह मुसीबत 2050 तक खत्म हो जाएगी ,अपने आप को धोखा दे रहे हैं।
उन्होंने कहा है कि अगर ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम नहीं किया गया तो धरती का तापमान 2040 तक 1.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ सकता है । 1980 के बाद दुनिया में जिस तरह औद्योगिक क्रांति बढ़ी और दुनिया में विकास भी हुआ लेकिन विकास के साथ- साथ धरती का तामपान 1.09 डिग्री तक बढ़ा है। जिसके परिणाण स्वरूप देश और दुनिया में प्राकृतिक आपदाएं और तबाही आई । विकास और विज्ञान का यह काल बहुत सारी गंभीर समस्याओं को भी लेकर आया है । देश- दुनिया के सभी लोगों को आज से ही समझने और सोचने की जरूरत है कि जलवायु परिवर्तन के कारण भविष्य में आने वाले खतरे से कैसे निपटेंगे ।
इन सब खतरों को कम करने के लिए संयुक्त राष्ट संघ के महासचिव ने कार्बन के उत्सर्जन को कम करने के लिए कहा है। उन्होंने सभी देशों विशेषकर जी-20 देशों से आग्रह किया है कि गीन हाउस गैस के उत्सर्जन को कम करें । इसके लिए उन्होंने कोयले और जीवाश्म ईंधन के रूप में एनर्जी सेक्टर को चिन्हित किया है।