सरकार प्राकृतिक खेती को कृषि शिक्षा के पाठ्यक्रम में शामिल कर सकती है। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने पिछले हफ्ते राज्यसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में यह जानकारी दी। उन्होंने कहा कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने एक समिति बनाई है जो अंडर ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट स्तर पर प्राकृतिक खेती को पाठ्यक्रम में शामिल करने पर विचार कर रही है। वैसे सरकार ने 2020-21 में ही भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति योजना लागू की थी। उसका मकसद भी खेती के पारंपरिक और देसी तरीके को बढ़ावा देना था। इस स्कीम को परंपरागत कृषि विकास योजना के तहत लागू किया गया था।
इस स्कीम का मुख्य भाग प्राकृतिक खेती ही है जिसमें खेती में सभी तरह के रसायनों का इस्तेमाल बंद करने पर फोकस किया गया है। इसके अलावा बायोमास की रीसाइक्लिंग, गोमूत्र और गोबर के इस्तेमाल तथा इस तरह के अन्य उपायों पर जोर दिया गया है। भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति के तहत क्लस्टर बनाने, क्षमता निर्माण करने और प्रशिक्षण आदि के लिए 3 साल तक 12,200 रुपए प्रति हेक्टेयर के हिसाब से आर्थिक सहायता दी जाती है। अभी तक 4.09 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में प्राकृतिक खेती शुरू की जा सकी है। आठ राज्यों में इसके लिए करीब 50 करोड़ रुपए दिए गए हैं। इन राज्यों में आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, केरल, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, ओडिशा, मध्य प्रदेश और तमिलनाडु शामिल हैं।
खेती में 5जी के इस्तेमाल के लिए डॉट पहुंचा पूसा
इस बीच, दूरसंचार विभाग की एक टीम ने पिछले दिनों पूसा इंस्टीट्यूट का दौरा किया। दूरसंचार विभाग कृषि मंत्रालय के साथ मिलकर स्मार्ट खेती में 5जी के इस्तेमाल करना को बढ़ावा देना चाहता है। इस कार्यक्रम में उसने दूरसंचार कंपनियों को भी साथ लिया है। विभाग की तरफ से जारी एक बयान में कहा गया है कि दोनों पक्षों के अधिकारियों की एक टास्क फोर्स बनाई जाएगी जो समयबद्ध तरीके से किए जाने वाले कार्यों की रूपरेखा तय करेगी। दूरसंचार विभाग ने 5जी के इस्तेमाल पर 14 केंद्रीय मंत्रालयों और विभागों के साथ मिलकर एक अंतर मंत्रालयी समिति बनाई है।