उत्तर प्रदेश के शामली जिले के ऊन स्थित गुड़ फैक्ट्री हंस हैरिटेज जैगरी ने आधुनिक टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से गुड़ की रिकवरी 3 फीसदी बढ़ाने में सफलता पाई है। यह संभव हुआ है गन्ने के बगास (खोई) मॉइश्चर को कम करके यानी गन्ने से ज्यादा मात्रा में शुगर और नॉन शुगर की रिकवरी करके। इसी के साथ बगास मॉइश्चर का 42 फीसदी का नया बेंचमार्क स्थापित हुआ है जो देश में पहली बार हासिल हुआ है। अभी तक शुगर और गुड़ इंडस्ट्री का बगास मॉइश्चर का बेंचमार्क 47 फीसदी था जिसे बलरामपुर शुगर मिल में 2005 में केपी सिंह ने ही स्थापित किया था।
हंस हैरिटेज जैगरी के संस्थापक केपी सिंह ने रूरल वॉयस को बताया कि आधुनिक टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से उन्होंने गुड़ की रिकवरी 3 फीसदी बढ़ाने में सफलता हासिल की है। आमतौर पर कोल्हू-क्रेशर की रिकवरी 12 फीसदी होती है और बगास मॉइश्चर 60 फीसदी तक होता है। शुगर मिल में रिकवरी 11-12 फीसदी तक और बगास मॉइश्चर 50 फीसदी तक होता है। मगर मेरे प्लांट की रिकवरी 15 फीसदी से ज्यादा हो गई है और बगास मॉइश्चर 42 फीसदी पर आ गया है। गुड़ ही नहीं, शुगर इंडस्ट्री के मुकाबले भी यह कम है और नया कीर्तिमान स्थापित हुआ है।
केपी सिंह ने बताया कि चीनी या गुड़ बनाने के लिए गन्ने की पेराई के बाद जो बगास (खोई) बचती है उसमें आमतौर पर 50 फीसदी तक मॉइश्चर होता है। शुगर इंडस्ट्री में अभी तक इसका बेंचमार्क 47 फीसदी था, जिसे बलरामपुर शुगर मिल में टेक्नोलॉजी हेड रहते हुए मैंने ही बनाया था। अब मैंने अपने ही बेंचमार्क को तोड़ते हुए 42 फीसदी का नया बेंचमार्क बनाया है। शुगर और गुड़ इंडस्ट्री में यह बेंचमार्क पहली बार हासिल किया गया है। इससे गुड़ की रिकवरी भी 3 फीसदी बढ़ी है। मेरा लक्ष्य इसे 38 फीसदी पर लाने का है।
इसके बारे में विस्तार से बताते हुए उन्होंने कहा कि शुगर या गुड़ बनाने के लिए जब गन्ने से जूस निकाला जाता है तो जो खोई बचती है उसमें 50 फीसदी फाइबर और 50 फीसदी पानी एवं थोड़ी मात्रा शुगर की रहती है। यह सफलता कैसे मिली, यह पूछने पर उन्होंने कहा कि मेरा गुड़ प्लांट पूरी तरह से ऑटोमैटिक और माडर्न है। इस प्लांट में भट्ठी की जगह आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किया गया है जिसकी वजह से यह पूरी तरह से प्रदूषण मुक्त है। इसके अलावा, अन्य सारे तकनीक काफी आधुनिक हैं। मशीनों के सिंक्रोनाइजेशन एवं ऑटोमेशन पर भी काफी ध्यान दिया गया है। चूंकि मैंने शुगर इंडस्ट्री में लंबे समय तक टेक्नोलॉजी पर ही काम किया है, तो अपने प्लांट में मैं नए-नए प्रयोग भी करता रहता हूं। इन सब कारणों से मुझे यह सफलता मिली है।
उन्होंने कहा कि टेक्नोलॉजी और प्लांट के माडर्नाइजेशन के जरिये गन्ने से ज्यादा रिकवरी में मेडिसीन और मिनरल्स (प्रोटीन, आयरन, विटामिन आदि) की मात्रा ज्यादा है जो गुड़ के लिहाज से फायदेमंद है। यह गुड़ ज्यादा सेहतमंद है। उन्होंने कहा कि मैं पहले से केमिकल फ्री गुड़ बनाता रहा हूं। मेरा लक्ष्य रहा है कि गन्ने से ज्यादा शुगर निकालने की बजाय मेडिसीन और मिनरल्स ज्यादा निकाला जाए। मुझे इसमें सफलता मिली है और मैं अपने उद्देश्य की तरफ तेजी से बढ़ रहा हूं।
उन्होंने कहा कि रिकवरी बढ़ने से किसानों को गन्ना भुगतान करने में भी सहूलियत हो रही है। अभी किसानों को 340 रुपये प्रति क्विंटल का भाव नगद दिया जा रहा है। कुछ समय बाद शुगर मिल के बराबर ही भाव दिया जाएगा।