नौकरी से रिटायर होने के बाद आमतौर पर गांव से निकले ज्यादातर लोग शहरों में बस जाते हैं और आराम की जिंदगी बिताना चाहते हैं। मगर कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो वापस गांव लौटकर ग्रामीण परिवेश में रहना चाहते हैं और अपने गांव एवं समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी को निभाकर कुछ ऐसा करना चाहते हैं ताकि उनके इलाके का विकास हो सके और ग्रामीणों के लिए रोजगार पैदा किया जा सके। उत्तर प्रदेश के शामली जिले के ऊन गांव निवासी कृष्णा पाल सिंह ऐसे ही लोगों में शुमार हैं।
बलरामपुर शुगर चीनी मिल के ग्रुप हेड (टेक्नोलॉजी) जैसे प्रमुख पद से रिटायर होने के बाद कृष्णा पाल सिंह ने न सिर्फ अपने पैतृक गांव में बसने का फैसला किया, बल्कि अपने गांव से सटे दूसरे गांव में हंस हैरिटेज जैगरी एंड फार्म प्राड्यूस के नाम से गुड़ उत्पादन की ऑटोमैटिक प्लांट लगाया है जिससे गांव के 50 से ज्यादा लोगों को रोजगार मिला। यही नहीं गुड़ बनाने के लिए कच्चे माल के रूप में इस्तेमाल होने वाले गन्ना की कीमत भी वह किसानों को बाजार कीमत के मुकाबले ज्यादा दे रहे हैं। उनकी ऑटोमैटिक फैक्ट्री की खासियत यह है कि इसमें न सिर्फ केमिकल फ्री गुड़ बनता है बल्कि यह प्रदूषण भी नहीं फैलाती है। जबकि गुड़ बनाने वाली परंपरागत कोल्हू क्रेशर से काफी प्रदूषण फैलता है। इसके अलावा इस फैक्ट्री में गुड़ प्रोसेसिंग भी काफी आसान है। एक तरफ गन्ना डालने के बाद गुड़ पूरी तरह से तैयार होकर अलग-अलग आकार में निकलता है।
रिटायरमेंट के बाद के सफर के बारे में कृष्णा पाल सिंह ने रूरल वॉयस को बताया, “गांव में बसने का फैसला रिटायरमेंट से पांच साल पहले ही कर लिया था और सोचा था कि गांव में आकर कुछ अलग करूंगा। सिर्फ खेतीबाड़ी से तो आज के जमाने में गुजारा नहीं हो सकता लेकिन खेतीबाड़ी करने वालों के लिए कैसे कुछ किया जाए इस बारे में 5-7 साल पहले से मेरे मन में कुछ था। मेरे मन में यह ख्याल रहता था कि जिस गांव से, जिस समाज से, जिस इलाके से निकल कर मैं आगे बढ़ा हूं उसे कुछ वापस दे पाऊं तो यह मेरा सौभाग्य होगा। इसलिए रिटायरमेंट से पहले से ही मैंने इस पर काम करना शुरू कर दिया था। चूंकि मैं चीनी और गुड़ उद्योग से काफी करीब से जुड़ा रहा हूं इसलिए इस क्षेत्र में काम करना मेरे लिए दूसरे क्षेत्रों की तुलना में आसान था। साथ ही मेरा गन्ने का इलाका है। इसके अलावा मेरे पास भी खेती योग्य जमीन है।”
कृष्णा पाल सिंह कहते हैं, “आज गुड़ की गुणवत्ता काफी खराब हो चुकी है। बिना केमिकल वाला गुड़ कोई नहीं बनाता है। केमिकल वाले गुड़ से लीवर, किडनी, हड्डियां खराब होती हैं। गुड़ में केमिकल तो मिलाते ही हैं, चीनी भी मिलाते हैं। हमारे गुड़ में कैल्शियम, मैग्नीशियम, पोटाशियम, आयरन, विटामिन और प्रोटीन की मात्रा ज्यादा होती है। इसमें 80-85 फीसदी शुगर और 15-20 फीसदी पोषक तत्व हैं। कोल्हू क्रेशर वाले गुड़ में 90-95 फीसदी चीनी होती है।”
उन्होंने बताया, “इसके अलावा शामली चीनी मिल एक साल बाद किसानों को गन्ने का भुगतान करती है। कोल्हू क्रेशर मिल वाले भी किसानों को लूटने का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं। एक वह एंगल भी था। इसलिए मैंने किसानों को गन्ने का दाम दूसरों की तुलना में न्यूनतम 25 रुपये प्रति क्विंटल ज्यादा देने का फैसला किया है, अधिकतम की कोई सीमा नहीं है। मैंने किसानों से यह भी वादा किया है कि अगर मुझे ज्यादा मुनाफा होता है तो उस मुनाफे को भी किसानों के साथ शेयर करूंगा। दिसंबर 2022 में मेरी फैक्ट्री से उत्पादन शुरू हुआ और उस समय बाजार में किसानों को 225-250 रुपये प्रति क्विंटल दाम मिल रहा था। मैंने 275 रुपये से खरीदना शुरू किया जो बाद में 340-350 रुपये प्रति क्विंटल तक गया। मेरा सपना अब साकार होता दिख रहा है।”
कृष्णा पाल सिहं प्रदूषण को लेकर शुरू से ही चिंतित रहे हैं। उनका कहना है कि खेत में पत्ती या धान की पराली जलाकर किसान अपना नुकसान कर रहे हैं। इसकी वजह से जमीन में कार्बन नहीं बचा है। पहले सल्फर खत्म हुआ फिर जिंक खत्म हुई। सल्फर और जिंक केमिकल के रूप में मिलने लगे तो किसान उसे गन्ने में डालने लगे। कार्बन पत्तियों, गोबर और ऑर्गेनिक खाद से मिलता है। अगर इसकी भरपाई नहीं हुई तो खेती के लिए बड़ी समस्या खड़ी हो जाएगी क्योंकि अभी केमिकल के रूप में कार्बन नहीं मिलता है जिसे हम खेतों में डाल सकें। उनका कहना है कि पत्तियों और पराली जलाने की प्रक्रिया ने प्राकृतिक चक्र को तोड़ दिया है। इसलिए मेरे दिमाग में था कि ऐसी फैक्ट्री लगाई जाए जिससे प्रदूषण बिल्कुल न फैले। यह पूरी तरह से प्रदूषण मुक्त फैक्ट्री है। बलरामपुर शुगर ग्रुप में रहते हुए भी मैंने 4-5 ऐसी चीनी मिलें लगवाई हैं जो पूरी तरह से आधुनिक और ऑटोमैटिक हैं और कम प्रदूषण फैलाती हैं। उसी टेक्नोलॉजी का मैंने इस्तेमाल किया है लेकिन मेरी फैक्ट्री में बॉयलर और भट्ठी नहीं है, यह फर्क है।
इस फैक्ट्री की क्षमता प्रति दिन 2500 क्विंटल गन्ना पेराई की है। इसकी खासियत यह है कि कोल्हू क्रेशर के मुकाबले इसमें तीन फीसदी रिकवरी ज्यादा होती है। कोल्हू क्रेशर में रिकवरी 12 फीसदी की है और इसमें 15 फीसदी की है। इसकी वजह से भी केपी सिंह किसानों को गन्ने की ज्यादा कीमत दे पा रहे हैं। उनके मुताबिक, आधुनिक टेक्नोलॉजी से ज्यादा रिकवरी होने से हम जल्द ही मुनाफे में आ जाएंगे। फिलहाल मेरे गुड़ को गुजरात में काफी पसंद किया गया है और वहीं के बाजार में आपूर्ति हो रही है। हरियाणा के कुछ बाजारों से भी मांग निकली है। यह पहला साल है और इस साल गुड़ का उत्पादन करीब 13 हजार क्विंटल हुआ। जैसे-जैसे बाजार बढ़ता जाएगा उत्पादन में बढ़ोतरी होती जाएगी।
इस फैक्ट्री की लागत करीब 12 करोड़ रुपये आई है। इसके लिए उन्होंने न तो सरकार से कोई सहायता ली है और न ही बैंकों से कर्ज लिया है। खुद के पैसों के अलावा कुछ करीबी दोस्तों की मदद से इसे लगाने में कामयाब रहे हैं। उन्होंने बताया कि मेरा अगला प्रोजेक्ट गन्ने की खोई से बायो सीएनजी बनाने का है। उससे खाद भी मिलेगी और गैस भी मिलेगी जिसे ग्रीन गैस कहा जाता है।
गांव से निकल कर शहरों में नौकरी करने जाने वालों को केपी सिंह की यही सलाह है कि रिटायरमेंट के बाद वे गांव में ही आकर रहें ताकि अपने गांव, समाज और लोगों की मदद कर सकें और ग्रामीण इलाकों में बदलाव ला सकें।