सोयाबीन की नई फसल की आवक मंडियों में काफी कम है। अगस्त में बहुत कम बारिश की वजह से मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान जैसे प्रमुख उत्पादक राज्यों में अगैती सोयाबीन को काफी नुकसान पहुंचा है जिससे उत्पादन घटने की पूरी आशंका है। इसके बावजूद सोयाबीन का भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से 1000 रुपये प्रति क्विंटल तक नीचे चल रहा है। इसे देखते हुए किसान भाव बढ़ने का इंतजार कर रहे हैं। सोयाबीन के बढ़ते आयात का भी बाजार भाव पर असर दिख रहा है।
सोयाबीन खरीफ सीजन की प्रमुख तिलहन फसल है। मध्य प्रदेश की कृषि उपज मंडियों में गुणवत्ता के हिसाब से व्यापारी किसानों से 3500-4500 रुपये प्रति क्विंटल पर सोयाबीन की खरीद कर रहे हैं। खरीफ सीजन 2023-24 के लिए सरकार ने सोयाबीन का एमएसपी पिछले सीजन के मुकाबले 300 रुपये बढ़ाकर 4600 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है। हालांकि, सच्चाई यह भी है कि देशभर में कहीं भी सोयाबीन की खरीद सरकारी एजेंसियां नहीं करती हैं, जबकि रबी सीजन की प्रमुख तिलहन फसल सरसों की खरीद सरकार एमएसपी पर करती है।
मध्य भारत कंसोर्टियम ऑफ एफपीओ के सीईओ योगेश द्विवेदी ने रूरल वॉयस को बताया, “अभी सोयाबीन की जो फसल मंडियों में आ रही है वह अगैती किस्म है जो 90 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है। अगस्त में सूखे जैसे हालात का असर इसी किस्म पर ज्यादा पड़ा है जिससे दाने छोटे हो गए हैं और सिकुड़ भी गए हैं। इसकी वजह से उत्पादकता पर असर पड़ा है। लंबी (120 दिन) और मध्यम अवधि (105) की फसल की स्थिति इसके मुकाबले अच्छी है। वह अभी मंडियों में नहीं आ रही है। उनकी आवक 15 दिन बाद शुरू होगी।”
सोयाबीन के मौजूदा भाव के बारे में उन्होंने कहा कि आमतौर पर उत्पादन घटने की स्थिति में भाव बढ़ता है लेकिन इस साल ऐसा नहीं है क्योंकि सस्ते सोयाबीन का धड़ल्ले से आयात हो रहा है जिसका असर बाजार पर दिख रहा है। इससे देश के किसानों को नुकसान उठाना पड़ रहा है। हालांकि, इस साल गुणवत्ता भी एक वजह है जिससे किसानों को कम दाम मिल रहा है।
कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने भी सरकार की आयात नीति पर सवाल उठाते हुए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पहले ट्विटर) पर लिखा है, मोदी सरकार की उदार आयात नीति विभिन्न राज्यों में किसानों के लिए भारी संकट का कारण बन रही है। राजस्थान और मध्य प्रदेश में सोयाबीन एमएसपी से नीचे बिक रहा है, क्योंकि सस्ते आयात की इजाजत दी गई है। इन राज्यों में और अन्य राज्यों में भी सस्ते पाम ऑयल के आयात के कारण दूध की कीमतें कम हो रही हैं, क्योंकि इससे सस्ते शुद्ध घी में वनस्पति वसा के मिलावट को बढ़ावा मिल रहा है। दूध के दम कम मिलने से किसानों को बेहद नुकसान हो रहा है।
सोयाबीन प्रोसेसिंग उद्योग के शीर्ष संगठन सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिशन ऑफ इंडिया (सोपा) ने 2022-23 की तुलना में सोयाबीन का कुल उत्पादन 4.3 फीसदी घटकर 2023-24 में 118 लाख टन के करीब रह जाने का अनुमान लगाया है। 2022-23 में सोयाबीन का कुल उत्पादन 124.11 लाख टन रहा था। सोपा का कहना है कि चालू खरीफ सीजन के दौरान मानसून की स्थिति फसल के लिए पूरी तरह अनुकूल नहीं रहने से मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र एवं राजस्थान में सोयाबीन की औसत उत्पादकता दर में कमी आने की संभावना है। इसकी औसत उपज दर में 7.5 फीसदी की गिरावट आने का सोपा को अनुमान है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, इस साल सोयाबीन का रकबा करीब 1.25 लाख हेक्टेयर बढ़कर 125.40 लाख हेक्टेयर रहा है लेकिन सोपा का कहना है कि वास्तविक रकबा 118.55 लाख हेक्टेयर रहा है।
सोयाबीन का सबसे ज्यादा उत्पादन मध्य प्रदेश में होता है। राज्य के मालवा-निमाड़ इलाके में इसकी सबसे ज्यादा खेती होती है। इस इलाके में धार, झाबुआ, रतलाम, देवास, इंदौर, उज्जैन, मंदसौर, सीहोर, शाजापुर, रायसेन, राजगढ़ तथा विदिशा जिले आते हैं।
विदिशा जिले के अहमदपुर गांव के सोयाबीन किसान मनमोहन शर्मा ने रूरल वॉयस को बताया, “विदिशा मंडी में सोयाबीन का भाव इस समय 3500-3600 रुपये प्रति क्विंटल चल रहा है। अगस्त में कम बारिश की वजह से मेरी फसल करीब 25 फीसदी खराब हो चुकी है। हालांकि, मेरी फसल अभी कटी नहीं है लेकिन अगर यही भाव रहा तो दोहरा नुकसान झेलना पड़ सकता है। एक तरफ उत्पादन घटने की पूरी संभावना है, तो दूसरी तरफ कम कीमत का भी नुकसान उठाना पड़ेगा। आमतौर पर सोयाबीन का औसत उत्पादन 2.5-3 क्विंटल प्रति बीघा होता है लेकिन इस साल उत्पादन 50 किलो प्रति बीघा तक देखने को भी मिल रहा है।”
खाद्य तेल उत्पादकों के शीर्ष संगठन सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, अगस्त 2023 में सोयाबीन तेल का आयात 3.42 लाख टन से बढ़कर 3.58 लाख टन पर पहुंच गया है। चालू तेल वर्ष (1 नवंबर 22- 31 अक्टूबर 23) के पहले दस महीने (नवंबर 22-अगस्त 23) में खाद्य तेलों का कुल आयात 24 फीसदी बढ़कर 141.21 लाख टन पर पहुंच गया है। पिछले तेल वर्ष की इसी अवधि में यह 113.76 लाख टन रहा था। एसईए का अनुमान है कि चालू तेल वर्ष में देश में 160-165 लाख टन खाद्य तेल का आयात हो सकता है। भारत खाद्य तेलों का सबसे बड़ा उपभोक्ता है जो अपनी जरूरत का करीब 65 फीसदी खाद्य तेल आयात करता है।