नीति आयोग ने गौशालाओं को आर्थिक रूप से व्यवहारिक बनाने की वकालत की, रियायती दरों पर पूंजी उपलब्ध कराने की बताई जरूरत

'गौशालाओं की आर्थिक व्यवहार्यता में सुधार पर विशेष ध्यान देने के साथ जैविक और जैव उर्वरकों का उत्पादन और संवर्धन' शीर्षक वाली टास्क फोर्स की रिपोर्ट में कहा गया है कि पूंजी निवेश और कार्यशील खर्च के लिए रियायती ब्याज दरों पर गौशालाओं को धन उपलब्ध कराया जाना चाहिए। इच्छुक गौशालाओं की मदद पूंजीगत सहायता और खेती में इस्तेमाल होने वाले गाय के गोबर और गोमूत्र-आधारित फॉर्मूलेशन की मार्केटिंग के माध्यम से की जानी चाहिए। इसके लिए कुछ व्यवहारिक फंडिंग की आवश्यकता होगी।

गौशालाओं को आर्थिक रूप से व्यवहारिक बनाने की नीति आयोग ने की वकालत।

नीति आयोग के एक पैनल ने सुझाव दिया है कि गौशालाओं की पूंजी सहायता के माध्यम से मदद की जानी चाहिए। साथ ही खेती में उपयोग के लिए गाय के गोबर और गोमूत्र-आधारित वस्तुओं की मार्केटिंग की जानी चाहिए ताकि गौशालाओं को आर्थिक रूप से व्यवहारिक बनाया जा सके। इसके अलावा गौशालाओं के ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन के लिए एक पोर्टल बनाने का प्रस्ताव पैनल ने दिया है। इस टास्क फोर्स के अध्यक्ष नीति आयोग के सदस्य प्रो. रमेश चंद हैं।

'गौशालाओं की आर्थिक व्यवहार्यता में सुधार पर विशेष ध्यान देने के साथ जैविक और जैव उर्वरकों का उत्पादन और संवर्धन' शीर्षक वाली टास्क फोर्स की रिपोर्ट में कहा गया है कि पूंजी निवेश और कार्यशील खर्च के लिए रियायती ब्याज दरों पर गौशालाओं को धन उपलब्ध कराया जाना चाहिए। इच्छुक गौशालाओं की मदद पूंजीगत सहायता और खेती में इस्तेमाल होने वाले गाय के गोबर और गोमूत्र-आधारित फॉर्मूलेशन की मार्केटिंग के माध्यम से की जानी चाहिए। इसके लिए कुछ व्यवहारिक फंडिंग की आवश्यकता होगी।

यह भी पढ़ेंः खाद्य तेलों के भारी आयात से किसानों का बुरा हाल, सरसों एमएसपी से 1000-1200 रुपये प्रति क्विंटल नीचे बिक रहा

रिपोर्ट में कहा गया है कि सभी गौशालाओं के ऑनलाइन पंजीकरण के लिए नीति आयोग के दर्पण पोर्टल जैसा एक पोर्टल बनाया जाना चाहिए। पंजीकृत गौशाला ही पशु कल्याण बोर्ड से समर्थन प्राप्त करने के लिए पात्र होंगे। शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में आवारा पशुओं की बढ़ती संख्या के कारण होने वाली समस्या के समाधान के लिए रिपोर्ट में कहा गया है कि गौशालाओं को दिए जाने वाले सभी अनुदान गायों की संख्या से जुड़े होने चाहिए। कमजोर, लावारिस या परित्यक्त मवेशियों पर अधिक जोर दिया जाना चाहिए।

रिपोर्ट के मुताबिक, गोबर आधारित जैविक उर्वरकों के व्यावसायिक उत्पादन, पैकेजिंग, विपणन और वितरण को प्रोत्साहित करने के लिए विशिष्ट नीतिगत उपायों और समर्थन की आवश्यकता है। इसमें ब्रांड विकास भी शामिल है। इसके अलावा कृषि और विभिन्न प्रकार के फॉर्मूलेशन के घरो में इस्तेमाल के लिए जैविक और जैव-उर्वरकों, जैव-कीटनाशकों, मिट्टी को समृद्ध बनाने वाले उत्पादों और शक्ति वर्द्धकों के बड़े पैमाने पर उत्पादन में निजी निवेश को आकर्षित करने के प्रयास किए जाने चाहिए।

यह भी पढ़ेंः गाय-भैंसों की भी होगी ऑनलाइन खरीद-बिक्री, एनिमपेट ने लॉन्च किया एनिमस्टॉक डॉट कॉम

नीति आयोग ने टास्क फोर्स के अनुरोध पर नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च (एनसीएईआर) से गौशालाओं द्वारा संभावित आर्थिक गतिविधियों में निवेश एवं लाभ और लागत के तकनीकी पैरामीटर और अनुमान तैयार करने के लिए एक अध्ययन कराया है। भारतीय मानक ब्यूरो के मुताबिक, गौशाला गायों के लिए एक सुरक्षित आश्रय है जो उनके स्वास्थ्य और जीवन को बेहतर बनाने, शुद्ध दूध और गाय के उत्पादों को बेचने, जर्मप्लाज्म के संरक्षण और पशु क्रूरता को रोकने के लिए बनाया जाता है।

गाय के गोबर को गौशाला की प्रमुख उपज बताते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि इसके आर्थिक मूल्य को समझने में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। गौशालाओं को क्षमता विकास और गोबर से आमदनी करने के अन्य साधनों के माध्यम से मदद की जानी चाहिए। इसमें गोबर का उचित प्रसंस्करण कर बायोगैस संयंत्रों में इस्तेमाल, मूल्य संवर्धन, मार्केटिंग और जैव उर्वरक के रूप में इस्तेमाल सहित गोबर आधारित जैविक प्रमाणीकरण भी शामिल होना चाहिए।

इसमें कहा गया है कि रसायनिक उर्वरकों पर भारी सब्सिडी विशेष रूप से यूरिया पर दी जाने वाली सब्सिडी पोषक तत्वों के जैविक स्रोतों के उपयोग को हतोत्साहित करती है जिन्हें कोई सब्सिडी नहीं मिलती है। रासायनिक उर्वरकों के समर्थन और जैविक एवं गाय के गोबर, गोमूत्र आधारित कम्पोस्ट, खाद, जीवामृत, घनजीवामृत और अन्य जैविक खाद के फार्मूलेशन में समानता लाने की आवश्यकता है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि गौशालाओं में खाद और उनके द्वारा उत्पादित अन्य जैविक उर्वरकों को बाजार में बेचने की क्षमता नहीं है और उनकी उपज के लिए कोई संगठित बाजार और खरीदार नहीं हैं। रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि सार्वजनिक क्षेत्र की उर्वरक वितरण एजेंसियों जैसे इफको, कृभको और ऐसी राज्य स्तरीय एजेंसियों के लिए गौशालाओं द्वारा उत्पादित बाजार मानकीकृत जैविक और जैव-उर्वरक अनिवार्य किया जाना चाहिए।

रिपोर्ट के मुताबिक, कुछ गौशालाएं भूमि उपयोग की शर्तों के कारण बायोगैस/जैविक खाद/बायोएनर्जी आदि के लिए सरकार द्वारा उपलब्ध कराई गई सार्वजनिक भूमि का उपयोग करने में सक्षम नहीं हैं। इसलिए गौशालाओं द्वारा सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) के माध्यम से विभिन्न उद्यम अपनाने के लिए भूमि उपयोग प्रणाली में परिवर्तन का प्रावधान किया जाना चाहिए।

रिपोर्ट में दावा किया गया है कि बायोमास में 20 फीसदी गोबर मिलाने से सबसे अच्छा परिणाम मिलता है। कृषि मंत्रालय और पशुपालन मंत्रालय के तहत कृषि जैव-अपशिष्ट और मवेशी अपशिष्ट का उपयोग कर गौशालाओं के साथ उत्पादन करने के लिए सस्टेनेबल अल्टरनेटिव टू अफोर्डेबल ट्रांसपोर्टेशन (एसएटीएटी) और गैल्वनाइजिंग ऑर्गेनिक बायो-एग्रो रिसोर्सेज (गोबरधन) जैसी नई योजना शुरू की जानी चाहिए।

इसमें सुझाव दिया गया है कि सीबीजी के उत्पादन के बाद छोड़े गए घोल से सीबीजी और जैविक खाद का उत्पादन किया जाना चाहिए। गौशालाओं को डेयरी और पशुपालन, अपशिष्ट से धन और नवीकरणीय ऊर्जा से संबंधित केंद्रीय क्षेत्र की सभी योजनाओं की लाभार्थी सूची में शामिल किया जाना चाहिए।

टास्क फोर्स की टीम ने कुछ गौशालाओं का दौरा किया और गौशालाओं की स्थिति, संचालन, सुविधाओं, पशुधन रखरखाव, बुनियादी ढांचे और स्थिति को समझने के लिए उनके प्रबंधन से बातचीत की। 2012-2019 के दौरान देश में कुल मवेशियों की आबादी में 0.8 फीसदी की वृद्धि हुई, जबकि 2007-12 के दौरान इसमें लगभग 4 फीसदी की कमी आई। 20वीं पशुधन गणना के अनुसार, भारत में कुल डंगर आबादी लगभग 30 करोड़ है जिनमें से लगभग 64 फीसदी मवेशी हैं।