जीरा का भारतीयों के खाने में विशेष महत्व है। इसके बिना दाल और सब्जियों में छौंक लगाने की कल्पना नहीं की जा सकती है। अब यह किसानों की आमदनी में भी तड़का लगा रहा है और उनके लिए हीरा साबित हो रहा है। जीरा की कीमत ने इस साल इतिहास रच दिया है। आज से पांच साल पहले तक कृषि उपज मंडियों में 12-13 हजार रुपये प्रति क्विंटल बिकने वाला जीरा इस साल 50 हजार रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गया है। राजस्थान के नागौर जिले की मेड़ता मंडी में मसाला कंपनी एमडीएच की ओर से यह बोली लगाई गई। देश की सबसे बड़ी जीरा मंडी गुजरात के ऊंझा में भी इसकी कीमत 45 हजार रुपये प्रति क्विंटल पर पहुंच गई। भाव इस स्तर पर पहुंचने से किसान खुश हैं।
जीरा के भाव में तेजी के पीछे घरेलू और वैश्विक बाजार में इसकी बढ़ती मांग है। जीरा उत्पादन में भारत विश्व में पहले नंबर पर है। भारत में गुजरात और राजस्थान में ही जीरा का सबसे ज्यादा उत्पादन होता है। हालांकि, बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि से इस साल उत्पादन कम हुआ है जिसकी वजह से भी जीरा के दाम इस स्तर पर पहुंच गए हैं। मगर 2018 के बाद से इसके भाव में लगातार तेजी दर्ज की जा रही है। जीरा के हीरा बनने की कहानी के पीछे कई कारण है जिस बारे में रूरल वॉयस आपको विस्तार से जानकारी देने जा रहा है।
भारतीय मसाला बोर्ड, भारत सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग, मसाला कंपनियों द्वारा किसानों से सीधी खरीद और जीरा किसानों के हितों के लिए काम करने वाले संगठनों के संयुक्त प्रयास से यह कामयाबी मिली है। दक्षिण एशिया जैव प्रौद्योगिकी केंद्र और नाबार्ड कृषि निर्यात सुविधा केंद्र, जोधपुर के संस्थापक निदेशक और पश्चिमी राजस्थान के जीरा किसानों के लिए बायोटेक किसान प्रोजेक्ट चलाने वाले भगीरथ चौधरी भी उन्हीं में एक हैं। जीरे की इस तेजी पर भगीरथ चौधरी कहते हैं, “जीरा के भाव में पिछले तीन-चार साल से अच्छी बढ़ोतरी हो रही है। 2022 में जीरा 37 हजार रुपये प्रति क्विंटल के पार गया था, जबकि इसकी बेंचमार्क कीमत 25 हजार रुपये रही थी। इस बार यह 50 हजार रुपये पर पहुंचा है और उम्मीद है कि बेंचमार्क कीमत 32 हजार रुपये प्रति क्विंटल के आसपास रहेगी।”
भगीरथ चौधरी के मुताबिक, “जीरा किसानों की उपज की वास्तविक कीमत अब तक उन्हें मिल ही नहीं पा रही थी। बाजार उन तक सही कीमतों को पहुंचने ही नहीं दे रहा था। आढ़तिये और मसाला कंपनियों के लिए खरीद करने वाले छोटे-बड़े व्यापारी किसानों का हक मार रहे थे। जीरा किसानों के हितों को ध्यान में रखते हुए मैंने पिछले चार साल में भारत सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग के माध्यम से एक बड़ा प्रोजेक्ट बायोटेक किसान प्रोजेक्ट के नाम से चलाया। आज इसके बारे में हर किसान को जानकारी है। सबसे पहले हमने इस बात पर फोकस किया कि कैसे किसानों को इसकी वास्तविक कीमत मिले क्योंकि किसानों को मिली कीमत और उपभोक्ताओं की खरीद कीमत में 5-10 गुना का अंतर था। इस बड़े अंतर को कैसे कम किया जाए, इसे लेकर हमने काफी प्रयास किया। हमारी दूसरी कोशिश यह रही कि गुणवत्ता में कैसे सुधार लाया जाए। इसे लेकर पूरे राजस्थान में 250 से ज्यादा डेमोस्ट्रेशन किया गया। इसके तहत हर सीजन में चार-पांच बड़े किसान मेले आयोजित किए जाते थे। इससे गुणवत्ता सुधारने में काफी मदद मिली। यही वजह है कि आज पश्चिमी राजस्थान में कीटनाशक रहित 20 हजार टन जीरे की सीधी खरीद बड़ी मसाला कंपनियां किसानों से कर रही हैं। इनमें आईटीसी, मैकॉरमिक, एमडीएच, जनता ग्लोबल, रैपिड ऑर्गेनिक जैसी कई बड़ी कंपनियां शामिल हैं जो किसानों के खेतों से ही खरीद कर रही हैं।”
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कीटनाशक रहित जीरे को आईपीएम (इंटीग्रेटेड पेस्ट मैनेजमेंट) के नाम से जाना जाता है। इसकी कीमत सामान्य जीरे की तुलना में 15-20 फीसदी ज्यादा होती है। इसे आर्गेनिक जीरा भी कहा जाता है। पश्चिमी राजस्थान के बाड़मेर, जैसलमेर, नागौर, जोधपुर, पाली, सांचौर, जालौर में जीरा की खेती सबसे ज्यादा होती है। चौधरी बताते हैं कि इसकी वजह से सामान्य जीरे की बेस वैल्यू में भी बढ़ोतरी हुई। इससे बाजार में बहुत बड़ा बदलाव आया। पिछले साल फेडरेशन ऑफ इंडियन स्पाइसेस स्टेक होल्डर्स (फिश) को जो ऊंझा में जीरा खरीद करने वाला बहुत बड़ा ग्रुप है, उसे राजस्थान में खरीद करने के लिए आमंत्रित किया गया। उस ग्रुप के माध्यम से आज करीब दो दर्जन कंपनियां जिनमें बहुराष्ट्रीय सहित छोटी-बड़ी कंपनिया शामिल हैं, पश्चिमी राजस्थान के ढाणियों में जीरा खरीदने के लिए घूमती रहती हैं। इसके अलावा राजस्थान एसोसिएशन ऑफ स्पाइसेस का गठन किया गया जिससे ऊंझा पर राजस्थान की निर्भरता घटी। पहले राजस्थान के 90 फीसदी जीरे की बिक्री ऊंझा में की जाती थी। आज राजस्थान की कंपनियां राज्य के किसानों से ज्यादा से ज्यादा जीरा खरीद रही हैं। गुणवत्ता में सुधार और कंपनियों से सीधे किसानों तक कीमत पुहंचाने की यह जो प्रक्रिया है इसकी वजह से लगातार भाव में तेजी दर्ज की जा रही है।
भगीरथ चौधरी कहते हैं, “इस साल कीमतों में तेजी के पीछे जीरा का बुवाई रकबा घटना भी एक वजह है, खासकर राजस्थान में। नवंबर-दिसंबर में इसे बोया जाता है। राजस्थान में उस समय गर्मी ज्यादा थी जिसकी वजह से जर्मिनेशन में 30 फीसदी तक फर्क पड़ा। उस समय सरसों का भाव ज्यादा था इसलिए किसानों ने जीरा की जगह सरसों बुवाई को तवज्जो दी। उसके बाद फरवरी में अचानक तापमान बढ़ गया। मार्च में बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि हो गई जिससे फसल को काफी नुकसान पहुंचा। जीरा को छुईमुई फसल भी कहा जाता है क्योंकि यह काफी संवेदनशील होता है। तापमान में सामान्य से थोड़ा भी ज्यादा उतार-चढ़ाव इसकी पैदावार को प्रभावित करता है। इसकी वजह से आपूर्ति पर असर पड़ा और कीमतों में तेजी आई।”
उनका कहना है कि कीमतों में बड़ी उछाल के पीछे एक वजह यह भी है कि वैश्विक बाजार से कुछ कंपनियों को जीरा का बड़ा ऑर्डर मिला है। तुर्की, मिश्र जैसे मध्य एशिया के जीरा उत्पादक देशों में भी मौसम की वजह से उत्पादन घटा है जिससे अंतरराष्ट्रीय बाजार की भारत पर निर्भरता बढ़ी है। इन सब कारणों ने जीरा को 50 हजार रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंचाने में बड़ी भूमिका निभाई है। यह सामान्य जीरा का भाव है। आईपीएम जीरा की कीमत तो इससे 15-20 फीसदी ज्यादा है जिसकी खेती बाड़मेर जिले में ज्यादा होती है। जीरे की औसत उपज 7-8 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है, जबकि लागत 30-35 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर है।