जे पी सिंह
देश की प्रमुख फसलों में धान शामिल है,लेकिन धान की खेती में बढ़ती लागत बड़ी चिंता की वजह बनी हुई है । मज़दूर न मिलने से धान की रोपाई में बहुत परेशानी होती है, साथ ही महंगी होती मजदूरी से खेती की लागत भी काफी बढ़ जाती है। दरअसल धान की खेती करना किसानों के लिए काफी मेहनत भरा काम होता है, क्योंकि इसके लिए पहले किसान को धान की नर्सरी तैयार करनी होती है, और फिर मुख्य खेत में एक-एक पौधे की रोपाई करनी होती है,जिसमें काफी वक्त और पैसा लगता है। लेकिन ड्रम सीडर जो एक मानव चालित खेती का यंत्र है उसके माध्यम से अंकुरित धान की सीधी बुआई की जाती है। ड्रम सीडर के इस्तेमाल से आप न सिर्फ अपना समय बचा सकते हैं, बल्कि किसानों के पैसो की भी बचत होगी।
क्यों करे ड्रम सीडर से धान की बुआई
कृषि विज्ञान केन्द्र पीपीगंज गोरखपुर के कृषि वैज्ञानिक अवनीश कुमार सिंह का कहना है कि अगर किसान रोपाई की जगह छिटकवां विधि से धान की बुआई करते हैं तो खेत में उगे हुए पौधे एक समान नहीं उगते हैं, जिससे अच्छी उपज भी नहीं मिलती है। वहीं ड्रम सीडर से बुआई करने से बीज एक समान अंकुरित होते हैं, जिससे उपज भी अच्छी मिलती है। इस तकनीक में कदवा किए गए खेतों में सीधी बुआई की जाती है, जिससे नर्सरी उगाने और रोपाई के काम न होने से पैसे की काफी बचत होती है।
ड्रम सीडर मशीन की संरचना
ड्रम सीडर 6 प्लास्टिक डब्बों का बना हुआ यंत्र है। इस पर पास वाले छेदों की संख्या 28 औऱ दूर वाले छेदों की संख्या 14 होती है। डब्बों की लंबाई 25 सेंटीमीटर, और व्यास 18 सेंटीमीटर होती है। ज़मीन से डब्बों की ऊंचाई 18 सेंटीमीटर, और एक डब्बे में बीज रखने की क्षमता 1.5-2 किलोग्राम तक होती है। चक्कों का व्यास 60 सेंटीमीटर और चौडाई लगभग 6 सेन्टीमीटर होती है। बिना बीज के यंत्र का भार 6 किलोग्राम होता है। इस मशीन से एक बार में 6 से लेकर 12 कतार में बीज की बुआई की जाती है।
ड्रम सीडर से धान बुआई का समय
कृषि वैज्ञानिक अवनीश कुमार सिंह के अनुसार ड्रम सीडर से अंकुरित धान की सीधी बुआई मानसून आने से पहले ही जून महीने की शुरुआत में ही कर लेनी चाहिए, नहीं तो एक बार मानसून आने पर खेत में जरुरत से ज्यादा जल भराव होने से धान के बीज का समुचित विकास नहीं हो पाता है। वैसे जून के अंतिम सप्ताह तक इस यंत्र से धान की बुआई की जा सकती है। दो आदमी इस यंत्र से एक दिन यानी 8 घंटे में एक हैक्टेयर की बुआई कर सकते हैं। इसके लिए बीज को पानी में 12 घंटे के लिए भिगोएं। इसके बाद इसे जूट के बोरे से ढंक कर बीज को 24 घंटे के लिए ऱख कर अंकुरित करें। इस बात का ख्याल रखें कि बीज का अंकुरण ज्यादा ना होने पाए। हालांकि बीज को मशीन में डालने से पहले, आधा घंटा छांव में सुखाएं।
ड्रम सीडर से बुआई के लाभ
-कम लागत और अधिक उपज और प्रति हेक्टेयर कम आदमी की ज़रूरत
-नर्सरी के लिए खेत के तैयारी की ज़रूरत नहीं, कम सिंचाई की जरूरत
-छिटकवां विधि की तुलना में 15 फीसदी ज्यादा उपज की प्राप्ति
-बीज को कतार से बोने की सुविधा, अच्छी फसल की बढ़वार
- फसल रोपे गए धान से 10 दिन पहले पक जाती है, बीज की बचत होती है।
ड्रम सीडर मशीन इस्तेमाल करते समय सावधानी
कृषि वैज्ञानिक अवनीश कुमार सिंह का कहना है कि ड्रम सीडर के डब्बों को किसी हालत में दो तिहाई से ज्यादा ना भरें। ज्यादा भरने से मशीन के छेद से बीज ठीक से नहीं निकल पाते हैं । मशीन को डब्बों के अंदर बने हुए त्रिकोण के शिरे की ओर ही खींचें । विपरीत दिशा में खींचने से बीज का सुचारु रूप से निकास नहीं हो पाता है। इससे मशीन की कार्यक्षमता प्रभावित होती है। इस बात का ध्यान खास तौर पर मोड़ के पास ज़रूर रखें। ड्रमसीडर तकनीक में भी दूसरी विधि से धान की खेती की तरह ही कीट औऱ बीमारियों का नियंत्रण किया जाता है। लेकिन रोपे गए धान की तुलना में इसकी उपज बेहतर मिलती है।