कांग्रेस ने गुरुवार 18 मई को कर्नाटक में पार्टी के संसदीय दल के नेता और राज्य के मुख्यमंत्री पद का जिम्मा संभालने के लिए सिद्धारमैय्या के नाम की औपचारिक घोषणा कर दी। वहीं राज्य के पार्टी प्रमुख डीके शिवकुमार को उपमुख्यमंत्री पद के साथ 2024 के लोक सभा चुनाव तक प्रदेश अध्यक्ष बनाए रखने का फैसला भी किया। असल में मौजूदा राजनीतिक परिदृष्य में कांग्रेस के पास इससे बेहतर जातिगत संतुलन का फार्मूला नहीं हो सकता था।
सिद्धारमैय्या अति पिछड़ी जाति कुरबा से आते हैं और डीके शिवकुमार मजबूत खेतीहर जाति वोक्कालिगा से आते हैं। राज्य में तीसरी महत्वाकांक्षी और प्रमुख जाति लिंगायत है लेकिन उसमें कांग्रेस के पास मुख्यमंत्री पद का बड़ा दावेदार नेता नहीं है। हालांकि, कांग्रेस से सबसे ज्यादा 39 लिंगायत विधायक चुने गए हैं जो लिंगायत समुदाय में कांग्रेस की मजबूत होती स्थिति का सुबूत है। यह बात अलग है कि अभी तक भाजपा लिंगायत समुदाय को अपना सबसे मजबूत जनाधार मानती आई थी लेकिन 13 मई को आए विधानसभा चुनाव के नतीजों ने उसके इस भ्रम को तोड़ दिया।
असल में कर्नाटक की राजनीति के विभिन्न पक्षों में सबसे मजबूत वोक्कालिगा जाति को माना जाता रहा है। लेकिन वोक्कालिगा के अभी भी सबसे बड़े नेता पूर्व प्रधानमंत्री एचडी दैवेगौड़ा ही हैं। वहीं डीके शिवकुमार वोक्कालिगा जाति के उन नेताओं में हैं जो कारोबार में काफी आगे बढ़े और आर्थिक रूप से मजबूत हुए हैं। खासतौर से रीयल एस्टेट और दूसरे कारोबार में इनका दखल काफी बढ़ा है। शिवकुमार के अलावा पूर्व विदेश मंत्री एसएम कृष्णा भी वोक्कालिगा समुदाय से हैं जो राज्य के मुख्यमंत्री भी रहे हैं। एसएम कृष्णा के दामाद वीजी सिद्धार्थ जिन्होंने कॉफी रिटेल चेन कैफे कॉफी डे स्थापित की थी, उन्होंने कुछ साल पहले आत्महत्या कर ली थी। वीजी सिद्धार्थ की बेटी की शादी डीके शिवकुमार के बेटे से हुई है।
यह बात अगल है कि एसएम कृष्णा ने 2017 में भाजपा ज्वाइन कर ली थी लेकिन उसका कोई फायदा भाजपा को नहीं हुआ क्योंकि वह जमीनी नेता नहीं रहे हैं और उनकी उम्र भी 90 साल हो गई है। उन्होंने राजनीति से संन्यास ले लिया है। कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व से करीबी की वजह से कांग्रेस सरकारों में उनका उभार हुआ था। वोक्कालिगा और लिंगायत के बीच काफी राजनीतिक प्रतिद्विंदिता रही है। कई बार इसका फायदा उठाकर राज्य में ब्राह्मण मुख्यमंत्री बने। रामकृष्ण हेगड़े के अलावा इसमें और भी नेता शामिल हैं।
सिद्धारमैय्या की कुरबा जाति उत्तर भारत की गड़रिया जाति की तरह है जो अति पिछड़े वर्ग में आती है। सिद्धरमैय्या के पक्ष में यह जाता है कि उनका आधार काफी व्यापक है और उनकी स्वीकार्यता दलित और मुसलमानों में भी है। वहीं दलितों में मजबूत जाति है होल्या। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे होल्या जाति से ही आते हैं। इसे उत्तर भारत की दलित जाति जाटव की तरह देखा जा सकता है। इसमें शिक्षित लोगों का स्तर काफी बेहतर है और यह राजनीतिक रूप से परिपक्कव व प्रभावी जाति मानी जाती है। जिस तरह से केरल में पुलया जाति है उसी तरह कर्नाटक में होल्या है।
भाजपा की मुश्किल यह है कि इस बार वहां लिंगायतों को किनारे करने की कोशिश कर ब्राह्मण नेताओं को मजबूत करने की कोशिश की गई। भाजपा के इन नेताओं में प्रह्लाद जोशी और बीएल संतोष शामिल हैं। भाजपा के दिवंगत नेता अनंत कुमार भी कर्नाटक में बड़े ब्राह्मण नेता रहे हैं। पार्टी का आधार लिंगायत समुदाय में अधिक था। इसके बावजूद पार्टी के बड़े नेता और पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येद्दियुरप्पा को किनारे किया गया। वहीं पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार और लक्ष्मण सावदी जैसे लिंगायत नेता भाजपा छोड़कर कांग्रेस में चले गए। पार्टी जिस तरह से हुबली, धारवाड़, दावणगेरे, हावेरी और लिंगायतों के अन्य इलाकों में हारी है वह भाजपा को काफी महंगा पड़ा।
इन सब समीकरणों के बीच कांग्रेस का सिद्धारमैय्या को मुख्यमंत्री बनाना एक व्यवहारिक फैसले के रूप में ही देखा जाएगा। वहीं डीके शिवकुमार को एक जुझारू नेता के रूप में जाना जाता है जो संसाधनों की स्थिति में मजबूत हैं और उसका फायदा कांग्रेस को उनके प्रदेश पार्टी प्रमुख रहते हुए चुनाव लड़ने में तो हुआ ही, पार्टी के सत्ता से बाहर रहने के दौरान भी वह काफी मजबूत नेतृत्व देने में कामयाब रहे। इसलिए पार्टी में शिवकुमार की भूमिका आने वाले समय में मजबूत ही रहेगी।