कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने ट्वीट किया। उन्होंने लिखा कि भारत जोड़ो यात्रा के दौरान पार्टी के नेता राहुल गांधी ने कर्नाटक में लोगों के साथ अनेक जगहों पर सीधी बात की। उसी बातचीत के आधार पर पार्टी का घोषणा पत्र तैयार किया गया। उन्होंने एक का आंकड़ा भी दिया जिसमें बताया गया है कि भारत जोड़ो यात्रा जिन 20 विधानसभा क्षेत्रों से होकर गुजरी थी, उनमें से 2018 में भाजपा 9, जेडीएस 6 और कांग्रेस 5 सीटों पर जीती थी। लेकिन इस बार भाजपा को सिर्फ दो और जेडीएस को 3 सीटें मिली हैं। कांग्रेस को 20 में से 15 सीटों पर जीत मिली है।
जयराम रमेश के अनुसार भारत जोड़ो यात्रा पार्टी के लिए संजीवनी बन गई। इसने संगठन में उर्जा पैदा की तथा पार्टी नेताओं तथा कार्यकर्ताओं के बीच एकता भी देखने को मिली। राहुल की भारत जोड़ो यात्रा 30 सितंबर से 22 दिनों तक कर्नाटक में थी। इस दौरान उन्होंने चामराजनगर, मैसूर, मांड्या, तुमकुर, चित्रदुर्ग, बेल्लारी और रायचूर जिलों में करीब 500 किलोमीटर का सफर तय किया।
नतीजों के बाद पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं को धन्यवाद देते हुए राहुल गांधी ने कहा, “कर्नाटक में गरीबों ने क्रोनी पूंजीवादियों को हराया है। इस चुनाव में सबसे अच्छी बात मुझे यह लगी कि हमने इसे नफरत के साथ नहीं बल्कि प्यार के साथ लड़ा।”
भाजपा ने डबल इंजन सरकार को चुनाव का मुख्य मुद्दा बनाया लेकिन वोटरों को समझाने में वह नाकाम रही। कर्नाटक में लिंगायत समुदाय की बड़ी भूमिका रहती है। राज्य की आबादी में लिंगायत करीब 17% हैं। पिछले चुनाव तक समुदाय में भाजपा का बड़ा आधार था, लेकिन इस बार लगता है लिंगायत समुदाय का भाजपा को उतना समर्थन नहीं मिला।
इसके कई कारण नजर आते हैं। एक तो पार्टी ने बीएस येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद से हटाया दिया। उसके बाद पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार और पूर्व उपमुख्यमंत्री लक्ष्मण सावादी को टिकट भी नहीं दिया। ये दोनों नेता बाद में कांग्रेस में चले गए। येदियुरप्पा के बाद मुख्यमंत्री बने बासवराज बोम्मई भी लिंगायत समुदाय से आते हैं, लेकिन समुदाय के लोगों में उनकी पकड़ येदियुरप्पा जितनी नहीं है। चुनाव से कुछ समय पहले भाजपा को संभवतः लगा कि वह येदियुरप्पा के बिना जीत नहीं दर्ज कर सकती है। इसलिए वह उन्हें वापस लेकर आई, उनके बेटे विजयेंद्र को शिकारीपुर सीट से टिकट भी दिया, लेकिन तब तक शायद काफी देर हो चुकी थी।
येदियुरप्पा के अलावा जगदीश शेट्टार और लक्ष्मण सावादी भी लिंगायत समुदाय में भाजपा के बड़े नेता थे लेकिन उनके कांग्रेस में चले जाने का भी भाजपा को नुकसान हुआ। पार्टी ने अनेक मौजूदा विधायकों को भी टिकट नहीं दिया जिनमें से ज्यादातर कांग्रेस में चले गए।
कुछ समय पहले तक यह भी लग रहा था कि चुनाव में सांप्रदायिकता एक मुद्दा रहेगा। पिछले दिनों क्लास रूम में हिजाब पर प्रतिबंध, लाउडस्पीकर से अजान पर रोक जैसे कदमों से ध्रुवीकरण दिखने लगा था। भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में यूनिफॉर्म सिविल कोड और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) लागू करने का भी वादा किया था। यही नहीं, हिंदू मतदाताओं को अपने पक्ष में खींचने के लिए इसने मुसलमानों का 4% कोटा भी खत्म कर दिया था। कांग्रेस ने कोटा दोबारा लागू करने का वादा किया है।
कांग्रेस के प्रचार की खास बात यह रही कि उसने सांप्रदायिकता के मुद्दे को ज्यादा तवज्जो नहीं दी। इसे भांपने के बाद ही भाजपा ने डबल इंजन सरकार को चुनाव का मुख्य मुद्दा बनाने का प्रयास किया। कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाने की बात कही थी। भाजपा ने उसे जोर-शोर से उठाया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपनी चुनावी सभाओं में इसका जिक्र किया। लेकिन नतीजों से लगता है कि कांग्रेस उस मुद्दे को भी दबाने में कामयाब रही।
कुछ और बातें कांग्रेस के पक्ष में गई हैं। पार्टी ने मुफ्त वितरण पर काफी जोर दिया है। इसने घोषणापत्र में वादा किया कि वह परिवार की हर महिला प्रमुख को प्रतिमाह ₹2000 देगी, सभी महिलाओं को मुफ्त बस पास दिए जाएंगे। ग्रेजुएट बेरोजगारों को भत्ते के रूप में प्रतिमाह ₹3000 और डिप्लोमा धारकों को 1500 रुपये मिलेंगे। इसके अलावा 10 किलो चावल तथा 200 यूनिट मुक्त बिजली का भी पार्टी ने वादा किया था।
पुरानी पेंशन योजना दोबारा लागू करने के वादे को भी मतदाताओं ने शायद पसंद किया। भाजपा इसका विरोध करती रही है लेकिन मतदाताओं में एक वर्ग पर इसका असर तो होता ही है। एक अनुमान के मुताबिक कर्नाटक के 9 लाख सरकारी कर्मचारियों में से करीब 3 लाख नई पेंशन योजना (एनपीएस) के तहत आते हैं। कांग्रेस को हिमाचल प्रदेश में भी इसका फायदा मिला था।