हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा ने 67 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर दी है। मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी करनाल की बजाय कुरुक्षेत्र की लाडवा सीट से चुनाव लड़ेंगे। दस साल में यह नायब सैनी का चौथा निर्वाचन क्षेत्र है। कुछ महीने पहले भाजपा ने हरियाणा में नेतृत्व परिवर्तन कर नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाया था। अब वह पार्टी के चुनाव अभियान का चेहरा हैं। ऐसे में खुद मुख्यमंत्री के सीट बदलने से जो संदेश जाएगा वो भाजपा को नुकसान पहुंचा सकता है। सियासी नैरेटिव और परसेप्शन के लिहाज से ये चीजें काफी मायने रखती हैं।
2014 में नायब सिंह सैनी अंबाला जिले की नारायणगढ़ सीट से विधायक बने थे। उसके बाद 2019 में वह कुरुक्षेत्र से लोकसभा सांसद चुने गये। इस साल मार्च में मनोहर लाल खट्टर की जगह नायब सैनी मुख्यमंत्री बनाए गये तो उन्होंने करनाल विधानसभा सीट से उपचुनाव लड़ा और जीत हासिल की। लेकिन अब वह कुरुक्षेत्र की लाडवा सीट से मैदान में उतरेंगे। सीएम के लिए सुरक्षित सीट की तलाश और सीट बदलने का फैसला प्रचार युद्ध में भाजपा को बैकफुट पर ला सकता है। भाजपा के टिकटों का ऐलान होते ही कांग्रेस ने मुख्यमंत्री पर मैदान छोड़ने का तंज कसना शुरू कर दिया है।
आसान नहीं होगी सैनी की राह
लाडवा से जीत की राह सीएम सैनी के लिए आसान नहीं होगी, क्योंकि वर्तमान में वहां से कांग्रेस के विधायक हैं और 2009 में इनेलो इस सीट को जीत चुकी है। हालांकि, लाडवा विधानसभा क्षेत्र में नायब सैनी का पैतृक गांव है और वहां उनके समुदाय के काफी मतदाता है। इसलिए भाजपा ने नायब सैनी को लाडवा से चुनाव लड़वाने का फैसला किया है।
क्यों बदलनी पड़ी सीट
मनोहर लाल खट्टर के सीएम पद से हटने के बाद नायब सैनी करनाल से उपचुनाव तो जीत गये थे, लेकिन उनकी उम्मीदवारी को लेकर पंजाबी समुदाय खुश नहीं बताया जा रहा है। इसलिए कांग्रेस करनाल से किसी पंजाबी उम्मीदवार को उतारने की तैयारी कर रही थी। ऐसे में करनाल सीट जीतना नायब सैनी के लिए मुश्किल हो सकता था। इसलिए सीट बदलनी पड़ी।
सामाजिक समीकरण साधने की कोशिश
भाजपा ने हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए सामाजिक समीकरण साधने की पूरी कोशिश की है। 67 उम्मीदवारों की पहली सूची में ओबीसी के 16 उम्मीदवार हैं। इनमें 5 अहीर, 5 गुर्जर, 1 कंबोज, 1 कश्यप, 1 कुम्हार, 1 सैनी शामिल हैं। अनुसूचित जाति के 13 उम्मीदवारों को टिकट दिया है लेकिन सभी आरक्षित सीटों पर हैं। भाजपा ने 13 जाट उम्मीदवारों को भी टिकट दिया है। सामाजिक संतुलन बनाने के लिए 8 पंजाबी, 5 वैश्य, 9 ब्राह्मण, 2 बिश्नोई, 2 राजपूत, 1 जट सिख और 1 रोड़ समाज के उम्मीदवार को उतारा है। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के 5 सीटें जीतने के पीछे सोशल इंजीनियरिंग को वजह माना गया था। भाजपा इसी रणनीति का मुकाबला करने की कोशिश दिख रही है।
दलबदलुओं पर दांव
भाजपा ने 67 उम्मीदवारों में कई दलबदलुओं पर भरोसा किया है जबकि तीन मंत्रियों समेत नौ विधायकों के टिकट काट दिए हैं। जेजेपी से भाजपा में शामिल हुए तीन विधायकों देवेंद्र बबली, रामकुमार गौतम और अनूप धानक के अलावा जेजेपी से आए संजय कबलाना और पवन खरखौदा को भी भाजपा ने टिकट दिया है। कांग्रेस से आए निखिल मदान, श्रुति चौधरी और इनेलो से आए श्याम सिंह राणा को भाजपा ने उम्मीदवार बनाया है। दो दिन पहले भाजपा में शामिल हुए पूर्व जेलर सुनील सांगवान को बबीता फोगाट का टिकट काटकर मैदान में उतारा है। पूर्व कांग्रेसी कुलदीप बिश्नोई के बेटे भव्य बिश्नोई के अलावा कई दलों में रहे करतार भड़ाना के बेटे मनमोहन भड़ाना को भी भाजपा का टिकट मिला है। लेकिन रणजीत चौटाला जैसे पुराने कद्दावर नेता को टिकट नहीं दिया है।
40 सीटों पर बदले उम्मीदवार
सत्ता विरोधी लहर से जूझते हुए भाजपा ने 67 में से 40 सीटों पर अपने उम्मीदवार बदल दिए हैं। जिताऊ उम्मीदवार की तलाश में पार्टी ने दो बार चुनाव हार चुके उम्मीदवारों को किनारे कर दिया। गोहाना से टिकट मांग रहे योगेश्वर दत्त और दादरी से तैयारी कर रही बबीता फोगाट को टिकट नहीं मिला है। यौन उत्पीड़न के आरोपों का सामना कर रहे पूर्व हॉकी खिलाड़ी संदीप सिंह से भी पार्टी ने दूरी बनाए रखी है। लेकिन पूर्व जेलर सुनील सांगवान, जिनके कार्यकाल में गुरमीत राम रहीम को कई बार रिहाई मिली, उन्हें टिकट दिया है। बबीता फोगाट की बजाय सुनील सांगवान को दादरी सीट से उम्मीदवार बनाया है। सांगवान दो दिन पहले ही भाजपा में शामिल हुए थे।
बढ़ सकती है आंतरिक कलह
भाजपा ने पहली सूची में करीब दर्जन भर सीटों पर पार्टी के समर्पित नेताओं की बजाय दूसरे दलों से आए नेताओं पर भरोसा जताया है। साथ ही कई मौजूदा और पूर्व विधायकों के टिकट काट दिए हैं। इससे पार्टी में आंतरिक कलह बढ़ेगी। मंत्री रणजीत चौटाला सहित कई नेताओं ने टिकट कटने के बाद निर्दलीय लड़ने का ऐलान किया है या फिर बागी तेवर दिखा रहे हैं। दूसरी लिस्ट के बाद यह घमासान और तेज हो सकता है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा के 67 उम्मीदवारों की सूची में लगभग 25-30 उम्मीदवार ही बेहद मजबूत माने जा सकते हैं। जबकि सामाजिक और राजनीतिक संतुलन साधने की कोशिश में कई मजबूत उम्मीदवारों को मौका नहीं मिला है।