उत्तर प्रदेश विधानसभा का चुनाव अब आखिरी चरण में पहुंच चुका है। प्रदेश में 7 मार्च को बाकी बची 54 सीटों पर मतदान होना है। हालांकि इससे पहले ही चुनाव विश्लेषक नतीजों का विश्लेषण करने लगे हैं। गुरुवार 3 मार्च को छठे चरण में 10 जिलों की 57 विधानसभा सीटों पर मतदान हुआ। इनमें गोरखपुर जिला भी शामिल है जो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का गढ़ माना जाता है। सोमवार यानी 7 मार्च को जिन 9 जिलों की 54 सीटों पर मतदान होना है उनमें वाराणसी भी है जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय चुनाव क्षेत्र है। आखिरी चरण के मतदान के बाद बाकी चार राज्यों के साथ उत्तर प्रदेश में भी मतगणना 10 मार्च को होगी और उसी दिन दोपहर तक तस्वीर साफ हो जाएगी।
भारतीय जनता पार्टी आसान जीत की उम्मीद कर रही थी लेकिन जिस तरह से समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कई छोटे दलों के साथ गठबंधन करके प्रचार अभियान चलाया उससे भाजपा की राह मुश्किल नजर आ रही है। समाजवादी पार्टी की रैलियों में न सिर्फ भारी भीड़ उमड़ी बल्कि अखिलेश ने मोदी और योगी समेत भाजपा के शीर्ष नेताओं को लगातार अपने निशाने पर रखा। सोशल मीडिया पर भी यह लोगों को अपनी तरफ आकर्षित करने में सफल रही।
गाजीपुर में एक सभा को संबोधित करते अखिलेश यादव
मीडिया और सोशल मीडिया में समाजवादी पार्टी के चुनाव प्रबंधन की प्रशंसा हो रही है। हालांकि यह भी एक तथ्य है कि अखिलेश को छोड़ दें तो पार्टी के पास बड़े नेताओं का अभाव चुनाव प्रचार के दौरान दिखा। पार्टी के पुराने नेताओं जिनमें पूर्व मुख्यमंत्री और अखिलेश के पिता मुलायम सिंह यादव भी शामिल हैं, का पार्टी के रोजमर्रा के कार्यों में अब कोई दखल नहीं रह गया है।
भाजपा नेता आम सभाओं में तथा मीडिया के साथ बातचीत के दौरान बार-बार यह दावा कर रहे हैं कि पार्टी को इस बार भी 403 में से 300 से अधिक सीटें मिलेंगी और गठबंधन के बाकी दलों के साथ मिलकर पिछली बार की तरह 325 के आसपास सीटें जीतेगी। हालांकि प्रदेश में जब चुनाव अभियान शुरू हुआ तब से तुलना की जाए तो केसरिया पार्टी की राह अब ज्यादा मुश्किल लगने लगी है। हर चरण के बाद यह धारणा मजबूत होती लग रही है कि समाजवादी पार्टी अगली सरकार बना सकती है।
योगी तो पूरा प्रयास कर ही रहे हैं कि भाजपा की सरकार दोबारा बने, प्रधानमंत्री मोदी भी नतीजों को लेकर इसलिए चिंतित होंगे कि 2024 के लोकसभा चुनाव में बस 2 साल रह गए हैं। भारत का राजनीतिक इतिहास देखें तो पाएंगे कि उत्तर प्रदेश में जिस पार्टी ने अच्छा प्रदर्शन किया है केंद्र में या तो उसकी सरकार बनी है या उसने किंग मेकर की भूमिका निभाई है।
2014 के लोकसभा चुनाव में विधानसभा क्षेत्र के हिसाब से देखें तो भाजपा को प्रदेश में 282 सीटों पर बढ़त मिली थी। तब भाजपा को एक चौथाई यानी 71 सीटें उत्तर प्रदेश से ही मिल गई थीं, जिसका नतीजा यह हुआ की पार्टी मोदी के नेतृत्व में केंद्र में सरकार बनाने में कामयाब हुई। 2019 के लोकसभा चुनावों में भी पार्टी को 300 विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त मिली, हालांकि संसदीय सीटों की संख्या घटकर 62 रह गई। इसके बावजूद भाजपा पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाने में कामयाब रही। इसलिए इस विधानसभा चुनाव में अगर नतीजे भाजपा के खिलाफ आते हैं या सीटों की संख्या में भी बड़ी गिरावट आती है तो पार्टी और मोदी के लिए 2024 के लोकसभा चुनाव की लड़ाई भी मुश्किल हो जाएगी।
इस बीच तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने गुरुवार को वाराणसी में अखिलेश यादव के साथ चुनाव प्रचार किया। यह भी इस सोची-समझी रणनीति का हिस्सा लगता है कि 2024 के चुनावों में वे मोदी को टक्कर देंगी। चुनावी सभा में उन्होंने दावा किया कि भाजपा खुद इस बात का संकेत देने लगी है कि वह उत्तर प्रदेश से जा रही है और प्रदेश में अगली सरकार समाजवादी पार्टी की बनने वाली है।
इन हालात में इसमें आश्चर्य नहीं कि भाजपा उत्तर प्रदेश के चुनावों को 2024 के लेंस से देख रही है। अब यह तस्वीर 10 मार्च को ही साफ होगी जब पता चलेगा कि मोदी-योगी की बहु प्रचारित जोड़ी कामयाब होती है या अखिलेश यादव अकेले दम पर सबको परास्त करते हैं।