डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरमीत राम रहीम 21 दिन की पैरोल पर हरियाणा के रोहतक जिले की सुनारिया जेल से बाहर आ चुके हैं। खास बात यह है कि राम रहीम को यह पैरोल पंजाब में मतदान से 2 हफ्ते पहले मिली है। पंजाब की राजनीति में डेरों का बड़ा महत्व रहा है। यहां डेरा सच्चा सौदा के अलावा राधा स्वामी सत्संग, डेरा नामधारी, डेरा निरंकारी, डेरा सचखंड समेत कई बड़े डेरे हैं। इनका 60 से 70 सीटों पर प्रभाव माना जाता है। डेरा सच्चा सौदा के अनुयायियों की संख्या सबसे बड़ी बताई जाती है। अतीत में ये डेरे अपने अनुयायियों से किसी खास दल को वोट देने की अपील करते रहे हैं।
राम रहीम को अपनी दो शिष्या के साथ बलात्कार के मामले में 2017 में 20 साल कैद की सजा सुनाई गई थी। उसे एक पत्रकार की हत्या के मामले में भी दोषी ठहराया गया है। राम रहीम को पिछले साल भी पैरोल पर छोड़ा गया था, लेकिन वह सिर्फ एक दिन के लिए था जब बीमार मां को देखने के लिए उसे छूट मिली थी। 25 अगस्त 2017 को जब राम रहीम को सजा सुनाई गई थी तो उसके बाद हुई हिंसा में पंचकूला और सिरसा में 41 लोगों की मौत हो गई और 250 से ज्यादा घायल हो गए थे।
राम रहीम को पैरोल पर रिहा करने के लिए शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने केंद्र और हरियाणा की भाजपा सरकार की आलोचना की है। एसजीपीसी का कहना है कि यह चुनाव से दो हफ्ते पहले पंजाब में भाईचारा को नुकसान पहुंचाने वाला फैसला है। खास बात यह है कि हरियाणा के जेल मंत्री रणजीत सिंह चौटाला ने दो दिन पहले ही कहा था कि पैरोल लेना हर कैदी का अधिकार है। उसी के बाद राम रहीम को 21 दिन की पैरोल मिली है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहले सिरसा में एक चुनावी रैली में राम रहीम की प्रशंसा कर चुके हैं। गुरमीत राम रहीम भले ही जेल में हो, लेकिन उसके डेरे का महत्व कम नहीं हुआ है। डेरा के नाम घरों में बड़ी-बड़ी स्क्रीन के जरिए राम रहीम के वीडियो दिखाए जाते हैं।
जेल मंत्री चौटाला ने कहा है कि राम रहीम को जेल मैनुअल के हिसाब से पैरोल पर छोड़ा गया है। इसमें राज्य सरकार का कोई लेना-देना नहीं। पैरोल किसी भी कैदी का कानूनी अधिकार है। तीन साल सजा काटने के बाद कोई भी कैदी पैरोल पाने का अधिकारी हो जाता है। जून 2019 में राम रहीम ने 42 दिनों का पैरोल मांगा था। उस समय विपक्ष के हंगामे और भाजपा सरकार पर राम रहीम का पक्ष लेने के आरोपों के बाद उसने पैरोल का आवेदन वापस ले लिया था।
राम रहीम राजनीतिक पार्टियों और नेताओं को करीब दो दशक से अपने अनुयायियों के जरिए समर्थन देता रहा है। 2014 के लोकसभा चुनाव और फिर हरियाणा विधानसभा चुनाव में डेरा सच्चा सौदा ने भारतीय जनता पार्टी को वोट देने की अपील की थी। 2017 के पंजाब विधानसभा चुनाव में डेरा सच्चा सौदा ने शिरोमणि अकाली दल और भाजपा गठबंधन का समर्थन किया था, हालांकि इसके बावजूद गठबंधन बुरी तरह हार गया था।
2007 में डेरा सच्चा सौदा ने कांग्रेस का समर्थन किया था, हालांकि इसके बावजूद पार्टी को 44 सीटें मिली थीं। अकाली दल और भाजपा गठबंधन 67 सीटें जीत कर सरकार बनाने में सफल रहा था। तब अकाली दल को 48 और भाजपा को 19 सीटें मिली थीं। 2012 में कांग्रेस की तरफ से कैप्टन अमरिंदर सिंह ने राम रहीम से समर्थन मांगा था, लेकिन तब उन्होंने अकाली दल का समर्थन किया। उस चुनाव में अकाली दल की सीटें 48 से बढ़कर 56 हो गई थी।
पंजाब विधानसभा की 117 सीटों में से 69 सीटें मालवा क्षेत्र में है। अगर डेरा सच्चा सौदा के अनुयायी अपने धर्म गुरु के आदेश का पालन करें तो 35 से 40 सीटों पर नतीजों को प्रभावित कर सकते हैं। पंजाब के 23 जिलों में 300 बड़े डेरे हैं जो राज्य देश की राजनीति में दखल रखते हैं। ये डेरे मालवा के अलावा माझा और दोआबा क्षेत्र में भी हैं। अभी तक कांग्रेस के विजय इंदर सिंगला, साधु सिंह धरमसोत, भाजपा के हरजीत ग्रेवाल और सुरजीत ज्याणी, आम आदमी पार्टी के जगरूप गिल और शिरोमणि अकाली दल के गुलजार सिंह समेत कई नेता डेरों के चक्कर लगा चुके हैं। आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल भी जालंधर में डेरा सचखंड का चक्कर लगा चुके हैं। मुख्यमंत्री बनने के बाद चरणजीत सिंह चन्नी और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू भी डेरा सचखंड गए थे। राधास्वामी डेरा ब्यास के प्रमुख गुरिंदर सिंह ढिल्लों जट सिख हैं। इसलिए जट नेताओं में उनकी अच्छी पैठ मानी जाती है। मुख्यमंत्री चन्नी तीन बार डेरा ब्यास के चक्कर लगा चुके हैं।
हालांकि अभी तक किसी भी डेरे ने किसी भी राजनीतिक दल या नेता को समर्थन नहीं दिया है। लेकिन मतदान में अभी 13 दिनों का वक्त है। बाकी डेरे किसी दल का समर्थन करें या नहीं, जिस तरह डेरा सच्चा सौदा प्रमुख को चुनाव से ऐन पहले छोड़ा गया है, उससे कयास लग रहे हैं कि राम रहीम किसी न किसी दल का समर्थन कर सकते हैं।