पंजाब में अब 14 फरवरी के बजाय 20 फरवरी को विधानसभा चुनाव के लिए वोट डाले जाएंगे। चुनाव आयोग ने मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी, भाजपा और अन्य दलों की मांग पर यह फैसला किया है। दरअसल 16 फरवरी को गुरु रविदास जयंती है। पार्टियों का कहना था कि इस मौके पर बड़ी संख्या में लोग घरों से बाहर यात्रा कर रहे होंगे और वे वोट नहीं डाल सकेंगे। इसलिए आयोग को मतदान की तारीख आगे बढ़ा देनी चाहिए। प्रदेश में करीब 32 फ़ीसदी दलित मतदाता हैं। कांग्रेस ने 2017 में अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित 34 सीटों में 21 सीटें जीती थीं।
पंजाब में मतदान की तारीख भले करीब हफ्ते भर आगे बढ़ गई हो, पंजाब के साथ-साथ उत्तराखंड में इन दिनों जो चुनाव प्रचार चल रहा है उसमें एक बड़ा ही बुनियादी फर्क नजर आता है। कांग्रेस शासित पंजाब में स्थानीय मुद्दों की चर्चा अधिक हो रही है तो भाजपा शासित उत्तराखंड में डबल इंजन नारे पर फोकस किया जा रहा है। वहां भाजपा ही नहीं, कांग्रेस भी आम लोगों से जुड़े मुद्दों पर बात करने के बजाए भाजपा सरकार की खामियों की बातें ज्यादा कर रही है।
पंजाब के पिछले विधानसभा चुनाव में धर्म ग्रंथों की बेअदबी और ड्रग्स के मुद्दे की चर्चा सबसे अधिक थी। इस बार भी चुनाव से पहले बेअदबी की छिटपुट घटनाएं हुई हैं। पिछली बार ऐसी घटनाएं 2017 के चुनाव से कुछ दिनों पहले हुई थीं। पूर्ववर्ती अमरिंदर सिंह सरकार के समय इसके लिए दोषी लोगों पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की जा सकी जबकि उस चुनाव में यह बड़ा मुद्दा था। कांग्रेस ने दोषियों को जल्द पकड़ने का वादा भी किया था। अमरिंदर के जाने के बाद चरणजीत सिंह चन्नी के कार्यकाल में भी इस दिशा में कोई ठोस प्रगति नहीं हुई है। चन्नी ने तीन रुपये यूनिट बिजली, हर साल एक लाख युवाओं को नौकरियां और ब्याज-मुक्त कर्ज देने के वादे किए हैं। आम आदमी पार्टी यहां अपना दिल्ली मॉडल दोहराने की कोशिश कर रही है। उसी को ध्यान में रखते हुए केजरीवाल ने 300 यूनिट मुफ्त बिजली और सभी महिला मतदाताओं को हर महीने एक हजार रुपये देने का वादा किया है।
पिछले चुनाव में कांग्रेस ने एक महीने में ड्रग्स की समस्या खत्म करने का वादा किया था, लेकिन 5 साल बाद भी यह समस्या जस की तस बनी हुई है। चुनाव को प्रभावित करने वाले अन्य प्रमुख मुद्दों में कृषि सबसे अहम है। केंद्र सरकार के तीन विवादास्पद कृषि कानूनों के विरोध में पंजाब के किसान एक साल से ज्यादा समय तक दिल्ली के सीमा पर धरने पर बैठे रहे। सवाल है कि राजनीतिक दलों को इस मुद्दे का कितना फायदा मिलेगा, क्योंकि आंदोलन करने वाले 32 किसान संगठनों में से 22 संगठन खुद मोर्चा बनाकर चुनाव लड़ रहे हैं।
भाजपा का सीएम चेहरा स्पष्ट नहीं
कांग्रेस की तरफ से मुख्यमंत्री का चेहरा चन्नी हैं तो अकाली दल और बहुजन समाज पार्टी गठबंधन का चेहरा सुखबीर बादल हैं। आम आदमी पार्टी मंगलवार को आपने मुख्यमंत्री चेहरे का ऐलान करेगी। पार्टी प्रमुख और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 13 जनवरी को एक नंबर जारी करते हुए कहा था कि लोग अपनी पसंद के मुख्यमंत्री का नाम इस नंबर पर भेजें। पार्टी का दावा है कि अब तक 14 लाख लोग इस नंबर पर अपना जवाब भेज चुके हैं। किसान मोर्चा की तरफ से उनके नेता बलबीर सिंह राजेवाल मुख्यमंत्री के दावेदार हैं। लेकिन भाजपा अमरिंदर और सुखदेव सिंह ढींडसा के गठबंधन का मुख्यमंत्री चेहरा कौन होगा यह अभी तक तय नहीं हो पाया है। भाजपा इससे पहले अकाली दल के साथ गठबंधन में 23 सीटों पर चुनाव लड़ती थी। पहली बार वह करीब 80 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारने पर विचार कर रही है। जाहिर है ऐसे में 117 सीटों वाली विधान सभा में अमरिंदर और ढींढसा के प्रत्याशियों के लिए सीटें बहुत कम रह जाएंगी।
पंजाब के चुनाव अभियान में स्थानीय मुद्दों की चर्चा तो कुछ हद तक मिल जाती है लेकिन उत्तराखंड में जनता के मुद्दे गायब नजर आ रहे हैं। इसके विपरीत दोनों प्रमुख राजनीतिक दल वादों से ही मतदाताओं को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं। भाजपा डबल इंजन नारे के सहारे अपनी नैया पार लगाने की कोशिश में है तो कांग्रेस आम लोगों के मुद्दे उठाने के बजाय भाजपा सरकार की खामियों पर ही फोकस कर रही है। पलायन, रोजगार, पानी, स्वास्थ्य, शिक्षा, सड़क और कृषि यहां के स्थानीय मुद्दे हैं, लेकिन इन मुद्दों की चर्चा कोई भी राजनीतिक पार्टी नहीं कर रही है। आय के पर्याप्त साधन उपलब्ध ना होने के कारण पहाड़ों से पलायन जारी है। पानी, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाओं से लोग आज भी जूझ रहे हैं। चार धाम जैसे प्रोजेक्ट की चर्चा तो बहुत हो रही है लेकिन गांव को सड़क से जोड़ने का काम बहुत ही धीमी गति से चल रहा है। आम आदमी पार्टी यहां भी तीसरी ताकत बनने की कोशिश में है लेकिन अभी उसकी मौजूदगी बहुत कम है। वह यहां भी 'मुफ्त मॉडल' अपनाने की कोशिश कर रही है। उसने महिलाओं को हर माह आर्थिक सहायता, मुफ्त बिजली, बुजुर्गों को तीर्थ यात्रा के साथ सैनिकों, पूर्व सैनिकों और शहीदों के परिवारों के लिए अपनी घोषणाएं की हैं। अब 10 मार्च को पता चलेगा की जनता ने किस राजनीतिक दल के वादों पर ज्यादा भरोसा किया है।