चुनाव आते ही राजनीतिक दल मतदाताओं को लुभाने में एक-दूसरे से होड़ में एक से एक लुभावने वादा कर रहे हैं भले ही इसका मतलब चांद को लाने जैसा वादा ही क्यों न हो। इस बार हिमाचल प्रदेश में होने वाले विधान सभा चुनाव की स्थिति कुछ अलग नहीं है। बीजेपी और कांग्रेस मतदाताओं को लुभाने के लिए तरह-तरह के ऐलान करते हुए महिलाओं से जुड़े मुद्दों को उठा रही हैं। विधान सभा के लिए 12 नवंबर को होने वाले मतदान की लड़ाई को जीतने की तैयारी के लिए धर्म भी दोनों पार्टियों के चुनावी घोषणापत्र का अहम हिस्सा है।
इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि पहाड़ी राज्य की आबादी में महिलाओं की हिस्सेदारी लगभग आधी (49 फीसदी) है, इन दोनों प्रमुख प्रतिद्वंद्वियों ने इस बार महिलाओं अपने तरफ खीचने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी है।
महिलाओं पर पार्टियों का जोर इस तथ्य में निहित है कि हिमाचल प्रदेश में मतदान में महिलाओं की संख्या 1998 से सभी चुनावों में पुरुषों से अधिक रही है। साथ ही 55,74,793 मतदाताओं में से 28,46,201 पुरुष और 27,28,555 महिलाएं हैं।
कांग्रेस ने घोषणापत्र में 'हर घर लक्ष्मी, नारी सम्मान निधि' का वादा किया है, जिसमें 300 यूनिट मुफ्त बिजली के अलावा वरिष्ठ महिलाओं को 1500 रुपये प्रति माह देने का वादा किया गया है। जिससे इन महिलाओं का जीवन थोड़ा आसान होने की संभावना है। दूसरी ओर भाजपा ने महिला मतदाताओं को अपने पक्ष में कर विधानसभा चुनाव में अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए एक महिला संकल्प भी जारी किया है। इसने स्कूल जाने वाली लड़कियों से लेकर महिलाओं तक पहुंचने की कोशिश की है।
भाजपा के घोषणापत्र में स्कूल जाने के लिए साइकिल, कॉलेज के छात्रों के लिए स्कूटी और बीपीएल परिवारों की लड़कियों की शादी के लिए शगुन योजना के तहत आर्थिक सहायता बढ़ाने का वादा किया है। इसके अलावा, सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में महिलाओं के लिए स्त्री संकल्प में 33 प्रतिशत आरक्षण का वादा किया है।
स्त्री संकल्प पत्र में महिला उद्यमियों के लिए होमस्टे के लिए 500 करोड़ रुपये का कोष स्थापित किया जाएगा और महिला उद्यमियों को ब्याज मुक्त ऋण प्रदान करने का वादा किया गया है। शगुन में बीपीएल महिलाओं को दी जाने वाली वित्तीय सहायता को 31,000 रुपये से बढ़ाकर 51,000 रुपये किये जाने वादा किया गया है।
दोनों पार्टियों के घोषणापत्र में धर्म पर जोर दिया गया है। बीजेपी ने नई दिल्ली, जयपुर, चंडीगढ़, मेरठ और मथुरा से 45 विशेष बसों को लॉन्च करके प्रमुख मंदिरों और शक्ति पीठ को जोड़ने के लिए "हिम तीरथ सर्किट" का वादा किया है।
कांग्रेस ने पहली बार अपने घोषणा पत्र में "देवस्थान और तीर्थयात्रा" पर एक खंड को शामिल किया है। इस खंड में कांग्रेस ने सभी वरिष्ठ नागरिकों (एक परिचारक के साथ) के लिए अपनी पसंद के मंदिर में मुफ्त तीर्थयात्रा के लिए भुगतान करने का वादा किया है। इसने राज्य से आर्थिक सहयोग पाने वाले मंदिरों में वार्षिक योगदान को दोगुना करने और मंदिर के पुजारियों के वेतन को दोगुना करने का भी वादा किया है।
भाजपा ने समान नागरिक संहिता लागू करने और वक्फ संपत्तियों का सर्वेक्षण करने का भी वादा किया। कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में धार्मिक पर्यटन को मजबूत करने के लिए पर्यटन सर्किट विकसित करने और मंदिरों के जीर्णोद्धार और आधुनिकीकरण के लिए एक विशेष बजट प्रदान करने का वादा किया है ।
भाजपा ने गरीब परिवारों की महिलाओं को तीन मुफ्त एलपीजी सिलेंडर, 30 वर्ष से अधिक उम्र के गरीब परिवारों की सभी महिलाओं को अटल पेंशन योजना के तहत नामांकन, सरकारी स्कूलों की 50,000 मेधावी छात्राओं को स्नातक स्तर की पढ़ाई के दौरान 2500 रुपये प्रति माह देने का वादा किया है। साथ ही स्त्री शक्ति कार्ड देने का वादा किया है
उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनाव में भाजपा को महिला मतदाताओं का काफी सपोर्ट मिलने के काऱण भाजपा ने दोबारा ऐतिहासिक जीत के पाई थी। जहां पर साइलेन्ट महिला मतदाताओं द्वारा वोट देकर दोबारा भाजपा को चुनाव जीता कर सत्ता में लाने के पीछे एक निर्णायक भूमिका थी। इसके चलते 37 वर्षों के बाद किसी भी सरकार की लगातार दोबारा सत्ता में वापसी हुई थी।
भाजपा ने यूपी में अपनी प्रतिद्वंद्वी पार्टी सपा के नेतृत्व वाले गठबंधन के मुकाबले मुफ्त अनाज, रसोई गैस कनेक्शन और शौचालय जैसी योजनाों के काऱण महिला मतदाताओं के बीच 16 प्रतिशत की बढ़त हासिल की थी। इस तरह की लाभार्थी योजनाओं के कारण भाजपा को चुनावों में महिला मतदाताओं का समर्थन मिला।
कांग्रेस ने सत्तारूढ़ भाजपा पर उसके हिमाचल प्रदेश चुनाव घोषणापत्र को लेकर निशाना साधा है। इसे उनके पांच साल पुराने वादों का "कट-कॉपी-पेस्ट" करार दिया है और काग्रेस के कुछ हिस्सों से उधार लिया बताया है। कांग्रेस ने यह भी कहा कि भाजपा के घोषणापत्र में पुरानी पेंशन योजना के बारे में एक शब्द भी नहीं कहा गया है, जिसे बहाल करना सरकारी कर्मचारियों की प्रमुख मांग रही है।
(लेखक नई दिल्ली में वरिष्ठ पत्रकार और पब्लिक पॉलिसी विश्लेषक हैं)