भारत में समुद्री शैवाल की 221 से ज्यादा ऐसी प्रजातियां हैं, जिनके जरिए भारत दुनिया में समुद्री शैवाल बिजनेस में अहम हिस्सेदारी निभा सकता है। भारत के अंडमान निकोबार ,तमिलनाडु , लक्षद्वीप से लेकर गुजरात तक के लंबे समुद्री क्षेत्र में वाणिज्यिक शैवाल की प्रजातियां मौजूद हैं। अगर इनका सही से इस्तेमाल किया जाय तो जल्द ही भारत जापान, चीन, इंडोनेशिया के प्रभुत्व वाले इस बाजार में अहम हिस्सेदारी हासिल कर सकता है। वर्तमान में, भारत की समुद्री शैवाल की खेती का लगभग 20,000 टन उत्पादन है, जिसका मूल्य लगभग 50 करोड़ रुपये है।
मत्स्य विभाग के सचिव डॉ. राजीव रंजन ने यह बातें समुद्री शैवाल के बिजनेस में सहकारिता की भूमिका पर आयोजित वेबिनार में यह बातें कहीं हैं। वेबिनार का आयोजन भारत सरकार के पशुपालन और मत्स्य मंत्रालय के मत्स्य पालन विभाग, एनआईएनएसी-राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम, कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के कृषि,सहकारिता विभाग, बैंकॉक के एनईडीएसी द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया गया है। वेबिनार में विएतनाम, फिलिपींस, कनाडा के विशेषज्ञ भी शामिल हुए।
इस मौके पर एनसीडीसी के एमडी संदीप नायक ने कहा एशिया-प्रशांत क्षेत्रों के देशों के साथ समुद्री शैवाल के उत्पादन को बढ़ाने के लिए साझेदारी बढ़ाने के भी प्रयास किए जा रहे हैं। वेबिनार के आयोजन में अहम भूमिका निभाने पर एनईडीएसी के डायरेक्टर प्रोफेसर कृष्णा आर.सालीन ने संदीप नायक का धन्यवाद दिया। समुद्री शैवाल के कारोबार में चीन,जापान और इंडोनेशिया की करीब 80 फीसदी हिस्सेदारी है। जापान की केल्प, यूकेमा और ग्रासिलेरिया जैसी प्रजातियों की प्रमुख मांग हैं।