केंद्रीय गृह और सहकारिता मंत्री अमित शाह ने कहा है कि पैक्स सिर्फ एग्रीकल्चर फाइनेंस करने वाली संस्था नहीं रहेगी बल्कि 22 नए कामों को भी इसमें शामिल किया जाएगा। अगर तीन लाख पैक्स का बेस बन जाता है तो कोऑपरेटिव के विस्तार को कोई नहीं रोक सकता। ग्रामीण सहकारी बैंक भी पैक्स के माध्यम से मीडियम और लॉंग टर्म फाइनेंस कर सकते हैं।
सहकारिता मंत्री ने ये बातें विज्ञान भवन में ग्रामीण सहकारी बैंकों के राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहीं। उन्होंने कहा कि इस प्रकार के आयोजन ना केवल एक-दूसरे की बेस्ट प्रैक्टिसिस के आदान प्रदान करते हैं बल्कि पूरे भारत में कृषि ऋण के क्षेत्र में काम करने वाले सहकारी कार्यकर्ताओं के लिए एक कॉमन थ्रस्ट एरिया का निर्माण करने में भी उपयोगी सिद्ध होते हैं।
अमित शाह ने कहा कि हमारे कृषि ऋण के खाके को मजबूती प्रदान करने के साथ इसमें सुधार की भी ज़रूरत है। हर क्षेत्र में सहकारिता पहुंचे और इसके माध्यम से ही कृषि ऋण मिले, इस पर काम किए जाने की ज़रूरत है। उन्होंने ने कहा कि सरकार का उद्धेश्य है समाज के अंतिम व्यक्ति तक अर्थतंत्र को पहुंचाना। अर्थतंत्र के साथ-साथ अंतिम व्यक्ति का आर्थिक विकास केवल सहकारिता क्षेत्र ही कर सकता है। सहकारिता क्षेत्र के विस्तार और इसे समृद्ध बनाने के लिए इससे ज्यादा अनुकूल समय और कोई नहीं हो सकता है।
केन्द्रीय सहकारिता मंत्री ने कहा कि भारत के लगभग 120 साल पुराने सहकारिता आंदोलन की बहुत सारी उपलब्धियां हैं। कुछ राज्यों में हर क्षेत्र में सहकारिता आंदोलन आगे बढ़ा है, कुछ राज्यों में यह संघर्ष कर रहा है जबकि कुछ राज्यों में सहकारिता आंदोलन सिर्फ़ किताबों में रह गया है। अगर हम पूरे देश में सहकारिता आंदोलन का विकास करना चाहते हैं तो हमें इसकी अलग रणनीति सोचनी होगी।
शाह ने कहा कि पैक्स हमारी कृषि ऋण व्यवस्था की आत्मा हैं और सरकार ने पैक्स का कंप्यूटरीकरण कर इसे अधिक पारदर्शी व सशक्त बनाने का काम कर रही है। हमारे कृषि ऋण के खाके को मज़बूती प्रदान करने के साथ इसमें सुधार की भी ज़रूरत है। हर क्षेत्र में सहकारिता पहुंचे और इसके माध्यम से ही कृषि ऋण मिले, इस पर काम किए जाने की ज़रूरत है। उन्होंने कहा कि जैसे-जैसे पैक्स बढ़ेंगे और मजबूत होंगे वैसे-वैसे जिला और स्टेट कोऑपरेटिव बैंक मजबूत होती जाएंगे।
उन्होंने कहा कि भारत सरकार ने ग्रामीण सहकारी बैंकों का विस्तार करने की भी एक योजना बनाई है जिसे कई जगह खेती बैंक कहते हैं। ग्रामीण सहकारी बैंक आज किसान को डायरेक्ट फाइनेंस करते हैं और अभी विचार हो रहा है कि ग्रामीण सहकारी बैंक भी पैक्स के माध्यम से मीडियम और लॉंग टर्म फाइनेंस कर सकें। उन्होंने कहा कि हमने सहकारिता के क्षेत्र में विगत 100 सालों में बहुत अच्छा काम किया है, मगर यह पर्याप्त नहीं है। आजादी के अमृत महोत्सव के वर्ष में हमें संकल्प करना चाहिए कि जो किया है इससे बहुत अच्छा अगले 100 साल में करेंगे।
उन्होंने कहा कि सहकारिता के माध्यम से 10 लाख करोड़ के कृषि फाइनेंस का हमारा लक्ष्य होना चाहिए। उन्होंने बताया कि बीमार पैक्स के लिए भी एक प्रोविज़न राज्यों को सुझाया गया है। बीमार पैक्स को लिक्विडेट कर नया पैक्स बनाया जाए। गांव के किसानों को सहकारिता के लाभों से वंचित नहीं रखना चाहिए। नया पैक्स बनाने का प्रोविजन भी कानूनन बायलॉज में और राज्यों के सहकारिता कानून में करना होगा, तब हम तीन लाख पैक्स तक पहुंच पाएंगे।