किसानों की आय बढ़ाने के दो रास्ते हैं- पहला, उनकी उपज की कीमत अधिक मिले, और दूसरा, किसानों की लागत कम हो। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) उपभोक्ताओं के लिए अच्छा हो सकता है, लेकिन यह किसानों के लिए ठीक नहीं है। गुजरात कोऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन (जीसीएमएमएफ) अमूल के चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर जयेन मेहता ने पिछले दिनों कोऑपरेटिव पर आयोजित एक परिचर्चा में यह विचार रखे। 'सहकार से समृद्धि: मेनी पाथवेज' विषय पर आयोजित इस परिचर्चा का आयोजन रूरल वॉयस और सहकार भारती ने किया था।
अमूल का जिक्र करते हुए मेहता ने कहा कि उपभोक्ता के द्वारा खर्च की गई रकम का 80 से 85 फ़ीसदी दुग्ध किसानों को मिलता है। दुनिया के अन्य हिस्सों में किसानों को सिर्फ एक तिहाई रकम मिलती है। बाकी पैसा रिटेलर और प्रोसेसर के बीच जाता है। मेहता के अनुसार कोऑपरेटिव किसानों की उत्पादकता बढ़ाने और इस तरह उनकी लागत घटाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
उन्होंने 10 साल पहले रिटेल में एफडीआई पर एक कॉन्फ्रेंस का जिक्र किया और कहा कि एफडीआई उपभोक्ताओं के लिए अच्छा हो सकता है लेकिन किसानों के लिए नहीं। उन्होंने कहा कि आज की सत्तारूढ़ पार्टी जब विपक्ष में थी तब उसने संसद में यह मुद्दा उठाया था और रिटेल में एफडीआई से संबंधित विधेयक का विरोध किया था।
मेहता के अनुसार मूल्य का मतलब सबके लिए अलग-अलग है। जैसे मार्केटिंग के लोग 4पी की बात करते हैं- प्रोडक्ट यानी उत्पाद, प्राइस यानी कीमत, प्लेस यानी स्थान और प्रमोशन। लेकिन किसानों के मामले में दो और पी- पॉलिसी और परमेश्वर जुड़ जाते हैं। यहां परमेश्वर का अर्थ बारिश-बाढ़ जैसी बातों से है जिनका नियंत्रण किसानों के हाथ में नहीं होता है।
कोऑपरेटिव से किसानों को किस तरह लाभ हो सकता है इसके लिए उन्होंने अमेरिका का एक उदाहरण दिया। उन्होंने बताया, कुछ समय पहले जीसीएमएमएफ अमेरिका में अपनी शाखा खोलना चाहती थी। अमेरिकी अधिकारियों ने सी यानी कोऑपरेटिव शब्द पर आपत्ति की। उनका कहना था कि अमेरिकी कानून के मुताबिक किसी कोऑपरेटिव का तभी रजिस्ट्रेशन हो सकता है जब वे स्थानीय किसानों के साथ मिलकर काम करें। तब अमूल ने नाम बदलकर जीएसएमएमएफ रखा जिसमें एफ का मतलब सहकारी था। हालांकि अमेरिकी अधिकारी तब भी नहीं माने। मेहता के अनुसार नवगठित सहकारिता मंत्रालय भारतीय किसानों के हितों की रक्षा के लिए इस तरह के कानून ला सकता है।
उन्होंने बताया की अमूल के साथ 36 लाख किसान जुड़े हुए हैं। इसका सालाना टर्नओवर 61 हजार करोड़ रुपए के आसपास है। अमूल में इन सबका मालिकाना हक किसानों के पास है। उन्होंने कहा कि कोऑपरेटिव किसानों को उपभोक्ताओं से जोड़ती है, वैल्यू एडिशन करती है और बिचौलिए की भूमिका को खत्म करती है। यहां उत्पादन प्रसंस्करण और मार्केटिंग तीनों स्तर पर किसान ही मालिक हैं। अमूल इसी मॉडल पर काम करता है। देश की अन्य दुग्ध कोऑपरेटिव ने इसी मॉडल को अपनाया है।
भारत में दुग्ध कोऑपरेटिव की संभावनाओं के बारे में उन्होंने कहा कि अभी दुनिया का 22 फ़ीसदी दूध उत्पादन भारत में होता है। एक दशक में यह 33 फ़ीसदी हो जाएगा। अगले 10 वर्षों में जो अतिरिक्त दूध उत्पादन होगा उसमें भारत का हिस्सा दो-तिहाई होगा।