प्राथमिक कृषि कर्ज समितियों (पैक्स) को पेट्रोलियम उत्पादों की डीलरशिप और राशन की दुकान चलाने तथा अस्पताल और शिक्षण संस्थान विकसित करने की अनुमति दी जा सकती है। सहकारिता मंत्रालय ने इस आशय का एक ड्राफ्ट जारी किया है। इस ड्राफ्ट पर 19 जुलाई तक राज्य सरकारों तथा अन्य पक्षों से सुझाव मांगे गए हैं। मौजूदा फ्रेमवर्क में पैक्स अपने कोर बिजनेस के अलावा और कोई कार्य नहीं कर सकते हैं।
ड्राफ्ट में कहा गया है कि पैक्स को बैंक मित्र और कॉमन सर्विस सेंटर (सीएससी) की तरह काम करने, कोल्ड स्टोरेज और गोदाम की सुविधा उपलब्ध कराने की अनुमति दी जानी चाहिए। इसके अलावा इन्हें डेयरी, फिशरीज, सिंचाई और हरित ऊर्जा (ग्रीन एनर्जी) के क्षेत्र में भी काम करने की इजाजत दी जानी चाहिए। ये सहकारी समितियां शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यटन, पर्यावरण और स्थायी विकास जैसी गतिविधियों में कम्युनिटी आधारित सेवा उपलब्ध करा सकती हैं।
ड्राफ्ट में कहा गया है कि इन सहकारी समितियों का लक्ष्य अपने सदस्यों को समय पर और पर्याप्त मात्रा में अल्पावधि और मध्यम अवधि के लिए कर्ज उपलब्ध कराना है। यह कर्ज खेती के अलावा चिकित्सा तथा अन्य कार्यों के लिए भी दिया जा सकता है। हालांकि कर्ज के बदले कोलेटरल यानी गिरवी रखने की भी बात है।
ड्राफ्ट के अनुसार पैक्स इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट, कम्युनिटी सेंटर, अनाज की खरीद, राशन की दुकान या कोई भी सरकारी स्कीम चलाने का काम कर सकती हैं। अगर इन्हें रसोई गैस, पेट्रोल, डीजल, ग्रीन एनर्जी, खेत या घरों में इस्तेमाल होने वाली चीजें, कृषि मशीनरी आदि की डीलरशिप, एजेंसी या डिस्ट्रीब्यूटरशिप दी जाए तो समिति और उसके सदस्यों की आमदनी बढ़ेगी।
पैक्स राज्यों के अधिकार क्षेत्र में आते हैं इसलिए ड्राफ्ट में दिए गए सुझावों पर राज्यों की सलाह मांगी गई है। कैबिनेट ने पिछले हफ्ते देश की 63000 पैक्स को अगले 5 वर्षों में कंप्यूटरीकृत करने के लिए 2516 करोड़ रुपए के खर्च को मंजूरी दी। अभी ज्यादातर पैक्स कंप्यूटरीकृत ना होने के कारण वहां मैनुअल कामकाज होता है।