आज युवा कोऑपरेटिव में रुचि नहीं लेते। अगर कोऑपरेटिव को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए तो युवाओं को इसकी संभावनाओं का पता चलेगा और उनकी रुचि भी बनेगी। जिन कोऑपरेटिव सोसायटी का कामकाज बंद पड़ा है उन्हें युवाओं को सौंपा जा सकता है। इससे उन्हें तो रोजगार मिलेगा ही, वे दूसरों को भी रोजगार देने की स्थिति में होंगे। यह कहना है इंटरनेशनल कोऑपरेटिव एलायंस, एशिया पैसिफिक के प्रेसिडेंट और कृभको के चेयरमैन डॉ. चंद्रपाल सिंह का। वे रूरल वॉयस और सहकार भारती की तरफ से आयोजित ‘सहकार से समृद्धिः रास्ते अनेक’ विषय पर आयोजित एक परिचर्चा के दूसरे सत्र में बोल रहे थे। इस सत्र का विषय था ‘सहकारिता में वैश्विक अनुभव का भारत कैसे फायदा उठाए’। इस चर्चा को आप ऊपर दिए वीडियो लिंक पर क्लिक करके देख सकते हैं।
डॉ. चंद्रपाल ने कहा कि बिना कोऑपरेटिव आंदोलन के देश को आर्थिक रूप से मजबूत नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि भारत में सहकारिता आंदोलन कृषि आधारित है। कृषि मजबूत हो तो सहकारिता भी मजबूत होगी। उन्होंने कहा कि गरीबी दुनिया के हर देश में हैं। उन्हें सहकारी संस्थाओं के माध्यम से ही लाभ पहुंचाया जा सकता है। जिन देशों में ऐसा हुआ है, वहां लोग सक्षम हुए हैं।
उन्होंने कहा कि आज युवा अच्छे पैकेज के कारण कॉरपोरेट सेक्टर की ओर आकर्षित हो रहे हैं। उन्हें कोऑपरेटिव से जोड़ने की आवश्यकता है। उच्च शिक्षा में अगर एक विषय कोऑपरेटिव रखा जाए तो युवाओं को इसकी संभावनाओं का पता चलेगा। उन्होंने कहा कि युवाओं के अलावा महिलाओं को भी कोऑपरेटिव आंदोलन से जोड़ने की आवश्यकता है। सोसायटी की आधी सदस्यता उन्हें दी जानी चाहिए।
इंटरनेशनल कोऑपरेटिव एलायंस (आईसीए) का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि दुनिया की 12 फ़ीसदी आबादी कोऑपरेटिव से जुड़ी है। पूरे विश्व में 30 लाख के आसपास कोऑपरेटिव हैं। दुनिया की बड़ी कोऑपरेटिव से हमें सीखने की आवश्यकता है, उनके विचारों को लिया जा सकता है। कोऑपरेटिव संस्थाओं को प्रोफेशनल तरीके से चलाने के लिए उन्होंने प्रशिक्षण की जरूरत बताई। कहा कि लोगों को अपनी जिम्मेदारियां ही नहीं मालूम। चुने गए लोगों को प्रोफेशनल तरीके से काम करना सिखाना होगा।
सेवा, कृषि और मैन्युफैक्चरिंग तीनों में कोऑपरेटिव जरूरी
भारतीय रिजर्व बैंक के डायरेक्टर सतीश मराठे ने इस सत्र को संबोधित करते हुए कहा कि उदारीकरण जरूरी है, लेकिन 1991 में जो उदारीकरण किया गया उसमें कोऑपरेटिव को नजरअंदाज किया गया। निजी कंपनियों और सरकारी रत्न कंपनियों को तरजीह दी गई। उन्होंने कहा कि कोऑपरेटिव को अर्थव्यवस्था के तीनों क्षेत्र सर्विस सेक्टर, कृषि और मैन्युफैक्चरिंग में लाना होगा तभी उनका विकास हो सकता है। उन्होंने फ्रांस, जर्मनी और नीदरलैंड्स के कोऑपरेटिव आंदोलन का अध्ययन करने का सुझाव दिया। कृषि क्षेत्र के लिए फ्रांस और नीदरलैंड तथा मैन्युफैक्चरिंग के लिए जर्मनी के मॉडल का अध्ययन किया जा सकता है।
उन्होंने कोऑपरेटिव और बैंकिंग के बीच इंगेजमेंट बढ़ाने की जरूरत बताई। उन्होंने यह भी कहा कि कोऑपरेटिव के रोज का कामकाज देखने वाले मैनेजमेंट और उनकी ओनरशिप दोनों को अलग करना जरूरी है। इन संस्थाओं को 100 फीसदी स्वामित्व वाली कंपनी बनाने की अनुमति भी मिलनी चाहिए। सरकार के लिए उन्होंने सुझाव दिया कि वह रेगुलेशन तो करे लेकिन कोऑपरेटिव का माइक्रोमैनेजमेंट ना करे। कोऑपरेटिव को सरकारी मदद साझीदार की तरह होनी चाहिए। जब संस्था अपने पैरों पर खड़ी हो जाए तो सरकार को उससे बाहर निकल जाना चाहिए। उन्होंने कंज्यूमर कोऑपरेटिव सोसायटी की सख्त जरूरत बताई जो अभी लगभग खत्म हो गई हैं।
पांच विकसित देशों में कोऑपरेटिव से सीखने की जरूरत
खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) के भारत में असिंसटेंट एफएओआर डॉ. कोंडा रेड्डी चावा ने पांच विकसित देशों जापान, डेनमार्क, नीदरलैंड्स, न्यूजीलैंड और फ्रांस से सीखने की जरूरत बताई। जापान में 694 क्षेत्रीय कोऑपरेटिव का एक राष्ट्रीय समूह है, जिसका नाम जापान एग्रीकल्चर कोऑपरेटिव है। ये कोऑपरेटिव किसानों को इनपुट सप्लाई करने से लेकर पैकेजिंग, ट्रांसपोर्टेशन और मार्केटिंग तक का काम करते हैं। वे किसानों को वित्तीय सेवाएं भी उपलब्ध कराते हैं। यह जापान के छोटे किसान बहुल कोऑपरेटिव सेक्टर की रीढ़ बन गया है। जापान मॉडल जब बांग्लादेश में लागू किया गया तो उससे बिचौलियों को खत्म करने में मदद मिली। इस तरह कोऑपरेटिव जापान की अर्थव्यवस्था का प्रमुख स्तंभ बनाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि डेनमार्क में कृषि कोऑपरेटिव उत्पादन से लेकर मार्केटिंग तक सब में सक्रिय है। ये कृषि उत्पादों के बड़े निर्यातक हैं। कंपनी का मालिकाना हक पूरी तरह सदस्यों का होता है और मुनाफा उनमें बांटा जाता है। कोऑपरेटिव की भूमिका पूरे फूड चेन में होती है। इन्होंने खाद्य सुरक्षा और इनोवेशन में भी प्रमुख भूमिका निभाई है। उन्होंने खुद को बाजार में एक ताकत के रूप में खड़ा किया और किसानों के उत्पादों को भी लोकप्रियता दिलाई। डेनमार्क से हमें सीख मिलती है कि स्थानीय किसानों को कोऑपरेटिव से जोड़ना जरूरी है। यह भी जरूरी है कि किसानों पर कोऑपरेटिव थोपने के बजाय उनके पास ही इसका मालिकाना हक रहे। कोऑपरेटिव लंबे समय में ग्रामीण आबादी में गरीबी दूर करने भी सहायक रहे हैं।
नीदरलैंड में 41 कोऑपरेटिव हैं। वहां नियम कानून कोऑपरेटिव के पक्ष में हैं। वहां किसी भी कोऑपरेटिव में ज्यादातर सदस्य एक जैसे ही होते हैं। कोऑपरेटिव के ढांचे में जो बातें प्रासंगिक नहीं रह जाती हैं, उन्हें लगातार दूर किया जाता है। उन्होंने बताया कि न्यूजीलैंड के 40 कोऑपरेटिव हर साल 28 अरब डॉलर का कारोबार करते हैं। छोटा देश होने के बावजूद 29 फीसदी लोग कोऑपरेटिव के सदस्य हैं। देश की जीडीपी में इनका योगदान 19 फीसदी है। कोऑपरेटिव की एक बॉडी है जो हर तरह की संस्थाओं को आपस में जोड़ती है। फ्रांस में करीब एक हजार कोऑपरेटिव सदस्यों को सप्लाई चेन समेत विभिन्न क्षेत्रों में मदद करते हैं। वे किसानों के उत्पादों की मार्केटिंग भी करते हैं। इससे ज्यादा से ज्यादा लोग सदस्यता लेने को इच्छुक रहते हैं।
सेवा क्षेत्र में कोऑपरेटिव के लिए संभावनाएं, सोशल कोऑपरेटिव की भी जरूरत
इंटरनेशनल कोऑपरेटिव एलायंस, एशिया-पैसिफिक के सीईओ बालसुब्रमण्यन जी. अय्यर ने कहा कि सर्विस सेक्टर में कोऑपरेटिव के लिए अनेक संभावनाएं हो सकती हैं। उन्होंने कहा कि देश की जीडीपी में सर्विस सेक्टर का योगदान 50 फ़ीसदी से अधिक है लेकिन इसका बड़ा हिस्सा असंगठित है। अमेरिका का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि वहां सफाई कर्मियों ने मिलकर कोऑपरेटिव खड़ा किया है। इसके सदस्यों को निजी कंपनियों की तुलना में अधिक आमदनी होती है। इसके अलावा कोऑपरेटिव को जो मुनाफा होता है उसमें उनकी हिस्सेदारी भी होती है। अय्यर ने भी कोऑपरेटिव के लिए पूंजी जुटाने के तरीकों पर विचार करने की बात कही।
उन्होंने सोशल कोऑपरेटिव की भी जरूरत बताई। कहा कि देश की बड़ी आबादी बुजुर्ग हो रही है। उनके लिए कोऑपरेटिव सेक्टर क्या कर रहा है। कोऑपरेटिव अस्पताल जैसे कदम उठाए जाने चाहिए। इससे लोगों को कम कीमत में अच्छी सुविधाएं मिल सकेंगी। उन्होंने कहा कि टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से इसमें काफी मदद मिल सकती है। इन संस्थाओं के लिए पूंजी जुटाने का महत्व बताते हुए उन्होंने कहा कि कई देशों में इसके लिए व्यवस्था की गई है। संयुक्त अरब अमीरात में भी कोऑपरेटिव को आईपीओ लाने और पूंजी बाजार से धन जुटाने की अनुमति दी गई है।