इंटरनेशनल कोऑपरेटिव अलायंस एशिया पैसिफिक (आईसीए-एपी) के सीईओ बालासुब्रमण्यम अय्यर ने कहा है कि भारत में कोऑपरेटिव को विभिन्न क्षेत्रों मैं विस्तार करने की जरूरत है। उनकी छवि कृषि और क्रेडिट तक सीमित है इसे उन्हें बदलना चाहिए। बालू अय्यर रूरल वॉयस और सहकार भारती की तरफ से आयोजित परिचर्चा 'सहकार से समृद्धि: मेनी पाथवेज' के एक सत्र में बोल रहे थे। उन्होंने दूसरे देशों के उदाहरण भी दिए जहां विभिन्न क्षेत्रों में कोऑपरेटिव ने बड़ी उपलब्धियां हासिल की हैं। उन्होंने जिस सत्र को संबोधित किया उसका विषय था सहकारिता में वैश्विक अनुभवों का भारत कैसे फायदा उठा सकता है।
अय्यर ने कहा कि अगर भारत वैश्विक अनुभवों का लाभ ले सकता है तो बाकी दुनिया भी भारत के अनुभवों का फायदा उठा सकती है। अमूल और इफको जैसी कोऑपरेटिव दुनिया के लिए उदाहरण हैं।
उन्होंने कहा कि कोऑपरेटिव खासकर सर्विस सेक्टर में कई संभावनाओं का दोहन कर सकते हैं। भारत की जीडीपी में सर्विस सेक्टर का योगदान 50 फ़ीसदी से अधिक है लेकिन इसका बड़ा हिस्सा अनौपचारिक अथवा असंगठित क्षेत्र में है। इसलिए कोऑपरेटिव के लिए इस क्षेत्र में काम करने की बहुत गुंजाइश है। सर्विस ऐसा सेक्टर है जिसके दायरे में इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी से लेकर सड़क के किनारे सामान बेचने वाले तक आते हैं।
ऑस्ट्रेलिया का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि वहां 1974 में 17 ऑटो मैकेनिक ने मिलकर एक कोऑपरेटिव का गठन किया था। ऐसा उन्होंने इसलिए किया क्योंकि उन्हें लगा कि हुए अलग-अलग काम करते हुए अपने मूल बिजनेस पर फोकस नहीं कर पा रहे थे। अगर कोऑपरेटिव का गठन कर लिया जाए तो सामान खरीदने, कार्ज, मार्केटिंग, एकाउंटिंग जैसे नॉन-कोर क्षेत्र के कार्य कोऑपरेटिव कर सकते हैं। आज उनकी कैप्रीकॉर्न नामक कोऑपरेटिव न्यूजीलैंड में भी पैर पसार चुकी है। इसके 25000 से अधिक सदस्य हैं और सालाना टर्नओवर दो अरब डॉलर को पार कर चुका है।
अय्यर ने सामाजिक कोऑपरेटिव की जरूरत भी बताई। उन्होंने कहा कि देश की आबादी का एक बड़ा हिस्सा बुजुर्ग होता जा रहा है। कोऑपरेटिव के पास उनके लिए कुछ करने की काफी संभावनाएं हैं। जापान की कृषि कोऑपरेटिव का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि वहां जब कोई बच्चा जन्म लेता है तो वह कोऑपरेटिव का हिस्सा बन जाता है क्योंकि वह जिस अस्पताल में जन्म लेता है वह कोऑपरेटिव की तरफ से चलाया जा रहा होता है। इसी तरह वहां बुजुर्गों से लेकर अंतिम संस्कार तक के कोऑपरेटिव हैं। अय्यर ने कहा कि कोऑपरेटिव को सिर्फ कृषि या कर्ज पर नहीं बल्कि उन्हें सदस्यों पर फोकस करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि कोऑपरेटिव को टेक्नोलॉजी को भी बड़े स्तर पर अपनाने की जरूरत है। अभी ओला, उबर, अमेजॉन, फ्लिपकार्ट जैसे प्लेटफार्म मुनाफे के लिए काम करते हैं। हम प्लेटफार्म कोऑपरेटिव स्थापित करने पर विचार कर सकते हैं। इसका मालिकाना हक कोऑपरेटिव के सदस्यों का होगा। उन्होंने अमेरिका की अप एंड गो कोऑपरेटिव का उदाहरण दिया जो घरों की सफाई का काम करती है। उन्होंने कहा कि इस कोऑपरेटिव के सदस्यों की कमाई अनेक निजी कंपनियों के कर्मचारियों की तुलना में ज्यादा है।
उन्होंने कहा कि आज के युवा स्टार्टअप में काफी रुचि दिखा रहे हैं। कोऑपरेटिव भी स्टार्टअप से अलग नहीं हैं। सरकार को इस पर विचार करना चाहिए और कोऑपरेटिव को स्टार्टअप के तौर पर समझना चाहिए। कई प्रमुख देशों में कोऑपरेटिव को ऐसी मान्यता मिली हुई है। उन्होंने कोऑपरेटिव की छवि बदलने की जरूरत भी बताई और कहा कि आज के युवा कोऑपरेटिव का नाम सुनते ही पारंपरिक तौर पर गांव और खेती के लिए काम करने वाली संस्था समझते हैं। यह सोच बदलने की जरूरत है। इसके लिए हम दूसरे देशों का अनुसरण कर सकते हैं।
अय्यर ने कोऑपरेटिव के लिए फंड की आवश्यकता पर भी जोर दिया और कहा कि संयुक्त अरब अमीरात में कोऑपरेटिव को आईपीओ के जरिए पैसे जुटाने की अनुमति दी गई है। इसी तरह फ्रांस और इटली के उदाहरण से भी हम सीख ले सकते हैं। कोऑपरेटिव में गवर्नेंस का मुद्दा उठाते हुए उन्होंने कहा कि इसमें भी हम दूसरे देशों का उदाहरण देख सकते हैं। जैसे न्यूजीलैंड में अगर आप किसी को ऑपरेटिव के बोर्ड में शामिल होना चाहते हैं तो आपको पहले एक सर्वे का सामना करना पड़ता है जिसमें आप से पूछा जाता है कि आप क्यों वह पद चाहते हैं। उसके बाद इंटरव्यू होता है। इस तरह वही व्यक्ति बोर्ड में जाता है जो वास्तव में कॉपरेटिव को आगे बढ़ाने का इच्छुक होता है।