सहकारी चीनी मिलों ने महाराष्ट्र में गन्ना श्रमिकों के शोषण की रिपोर्ट को 'षड्यंत्र' बताया

नई दिल्ली में एक प्रेस कांफ्रेंस को संबोधित करते हुए फेडरेशन के चेयरमैन ने कहा कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों को राज्य की चीनी मिलों से चीनी खरीदने से रोकने की साजिश के तहत श्रमिकों के कथित उत्पीड़न की खबरें अमेरिका के एक बड़े अखबार में प्रकाशित हुई हैं और इसके पीछे गैर सरकारी संगठनों का हाथ है।

देश में सहकारी चीनी मिलों के संगठन नेशनल फेडरेशन ऑफ कोऑपरेटिव शुगर फैक्टरीज (एनएफसीएसएफ) ने अमेरिकी मीडिया की उन खबरों का खंडन किया है जिनमें महाराष्ट्र में गन्ना कटाई श्रमिकों के शोषण का मुद्दा उठाया गया है। फेडरेशन के चेयरमैन हर्षवर्धन पाटिल ने अमेरिकी मीडिया की रिपोर्ट को चीनी उद्योग के खिलाफ 'षड्यंत्र' करार दिया।    

हर्षवर्धन पाटिल का कहना है कि महाराष्ट्र में गन्ना कटाई श्रमिकों के उत्पीड़न के गलत आरोपों के जरिये महाराष्ट्र की चीनी मिलों के कारोबार को निशाना बनाने की साजिश हो रही है। नई दिल्ली में एक प्रेस कांफ्रेंस को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों को महाराष्ट्र की मिलों से चीनी खरीदने से रोकने की साजिश के तहत श्रमिकों के कथित उत्पीड़न की खबरें अमेरिका के एक बड़े अखबार में प्रकाशित हुई हैं और इसके पीछे गैर सरकारी संगठनों का हाथ है। 

आरोपों की जांच  

महाराष्ट्र में गन्ना कटाई श्रमिकों के शोषण को लेकर पिछले दिनों अमेरिकी मीडिया में खबरें प्रकाशित हुई थी। हर्षवर्धन पाटिल ने उन खबरों को जमीनी हकीकत से दूर बताते हुए कहा कि इस मामले को लेकर अमेरिकी दूतावास, केंद्रीय गृह मंत्रालय और पीएमओ के संज्ञान में लाया गया है और केंद्र सरकार की एजेंसियां जांच कर रही हैं। पाटिल ने दावा किया कि महाराष्ट्र में गन्ना कटाई में लगे श्रमिकों को चीनी मिलों द्वारा एडवांस भुगतान के साथ ही उनके लिए स्वास्थ्य, शिक्षा, इंश्योरेंस और आवास की सुविधा उपलब्ध कराई जाती है। चीनी मिलों के ऊपर लगाये गये आरोप हकीकत से कोसों दूर हैं और मामले की जांच के बाद इस साजिश से जुड़े लोगों के नाम सामने आ सकते हैं।

चीनी उद्योग की चिंता 

महाराष्ट्र में कुल 205 चीनी मिलें हैं जिनमें से 105 सहकारी मिलें हैं। देश में चीनी की घरेलू खपत का करीब 65 फीसदी हिस्सा कोल्ड ड्रिंक, बिस्किट, मिठाई और दूसरे बड़े औद्योगिक खरीदारों को जाता है। पाटिल का कहना है कि ऐसे में अगर पेप्सी और कोका कोला जैसी अमेरिकी कंपनियां महाराष्ट्र की मिलों से चीनी नहीं खरीदती हैं तो राज्य के चीनी उद्योग के लिए संकट पैदा हो जाएगा। उन्होंने आरोप लगाया कि यह महाराष्ट्र की सहकारी चीनी मिलों से बड़े खरीदारों को उत्तर भारत की चीनी मिलों की तरफ ले जाने की साजिश है।

महाराष्ट्र की चीनी मिलों में केवल चार माह पेराई होती है। ऐसे में मिलें गन्ना कटाई श्रमिकों को एडवांस पैसा देती है ताकि वह पूरे साल अपना खर्च चला सकें। कटाई शुरू होने के बाद उनके 15 दिन के काम से किस्तों के रूप में इस एडवांस को एडजस्ट किया जाता है। फेडरेशन ने दावा किया कि महाराष्ट्र में गन्ना मजदूरों के शोषण की कुछ छिटपुट घटनाओं को छोड़कर चीनी मिलें श्रमिकों को आश्रय, भोजन, समय पर भुगतान, बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य बीमा सहित व्यापक सहायता प्रदान कर रही हैं।

हार्वेस्टर खरीद की योजना 

पाटिल ने बताया कि बेहतर शिक्षा के कारण गन्ना कटाई श्रमिक दूसरे काम करने लगे हैं। इसलिए इनकी संख्या घट रही है। एक दशक पहले गन्ना मजदूरों की संख्या करीब 15 लाख थी जो घटकर अब 7 लाख रह गई है। फेडरेशन ने गन्ना कटाई के काम में हार्वेस्टर मशीनों के उपयोग को बढ़ाने की योजना बनाई है। इसके लिए 10 हजार हार्वेस्टर खरीदे जाएंगे। नेशनल कोआपरेटिव डेवलपमेंट कारपोरेशन (एनसीडीसी) के पास कर्ज के लिए प्रस्ताव भेजा है। हार्वेस्टर खरीदने के लिए तहत 90 फीसदी कर्ज एनसीडीसी से लेने और 10 फीसदी पैसा चीनी मिलों द्वारा लगाने की योजना है। लेकिन यह योजना तभी कारगर होगी जब केंद्र सरकार हार्वेस्टर के लिए 50 फीसदी तक सब्सिडी देगी। उसी स्थिति में पांच साल में कर्ज का रिपेमेंट संभव है। 

अपना सकते हैं यूपी जैसी व्यवस्था

पाटिल ने बताया कि महाराष्ट्र में 105, कर्नाटक में 50 और गुजरात में 28 सहकारी चीनी मिलें हैं। इन मिलों में गन्ने की कटाई का जिम्मा चीनी मिलें उठाती है। ऐसे में इनके खिलाफ साजिश सहकारी चीनी उद्योग के सामने संकट खड़ा कर सकती है। उत्तर प्रदेश समेत दूसरे उत्तरी राज्यों में चीनी मिलों तक गन्ना पहुंचाने का जिम्मा किसान का है। अगर हमारा संकट बढ़ता है तो हमें भी उत्तर प्रदेश जैसी व्यवस्था अपनानी पड़ सकती है जो हमारे किसानों के लिए एक नई मुश्किल पैदा कर सकती है।

एनएफसीएसएफ ने सरकार से चीनी के न्यूनतम विक्रय मूल्य में वृद्धि, 15 लाख टन सरप्लस चीनी के निर्यात की अनुमति और एथेनॉल खरीद मूल्य बढ़ाने की मांग की है।