देश मे बड़े पैमाने पर रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल बढ़ा है जिसमें सबसे ज्यादा नाइट्रोजन जनित उर्वरक यूरिया का इस्तेमाल बढ़ा है। इसका मुख्य कारण एक तो यूरिया का सस्ता होना है और दूसरा किसानों का जानकारी के अभाव के कारण जरूरत से ज्यादा यूरिया का फसलों पर प्रय़ोग करना है। अधिकतर किसानों को भ्रम है कि वह जितना ज्यादा यूरिया का इस्तेमाल करेंगे उतनी ही अच्छी उपज होगी ।दूसरी तरफ उनको डर रहता है कि खेतों में कम यूरिया का प्रयोग करेंगे तो उत्पादकता में भारी गिरावट आएगी । इस भ्रम के वजह से किसान का लागत खर्च बढ़ रहा है वहीं अधिक यूरिया के प्रयोग से फसलों में कीट रोग प्रकोप , मृदा का उपजाऊपन कम होने के साथ ही यूरिया का अत्यधिक उपयोग पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहा है जिस पर नियंत्रण की जरूरत है।
फसलों की जरूरत के मुताबिक उर्वरकों का संतुलित मात्रा में इस्तेमाल किया जाय। जिससे कि फसल की उपज पर प्रभाव न पड़े और पर्यावरण को नुकसान भी न हो, इसके साथ ही उर्वरको पर लगने लागत खर्च को कम किया जा सके। इसके लिए भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई ) पूसा, नई दिल्ली के कृषि वैज्ञानिक ग्रीन सीकर और क्लोरोफिल मीटर इस्तेमाल करने की सलाह दे रहे हैं।
ग्रीन सीकर का इस्तेमाल कर नाइट्रोजन बचाएं
आईएआरआई, पूसा के एग्रोनॉमी डीविजन के डॉ. प्रवीन कुमार उपाध्याय का कहना है फसलो में नाइट्रोजन का सही और संतुलित मात्रा में इस्तेमाल हो इसके लिए ग्रीन सीकर मशीन विकसित की गई है। इस मशीन के माध्यम से पौधे में जनरलाइज डिसटेंस बाटिनकल इंडेक्स के आधार पर पौधो में नाइट्रोजन की जरूरत को सुनिश्चित किया जाता है। आजकल इसका प्रयोग बहुतायत से हो रहा है। डॉ उपाध्याय ने बताया कि ग्रीन सीकर में सेंसर लगा होता है इसका फसलों में इस्तेमाल करने के लिए इसमे लगे बटन को दबाते हैं। एक हेल्दी पौधे का जनरलाइज डिसटेंस बाटिनकल इंडेक्स निकालते हैं। ग्रीन सीकर स्मार्ट फोन के ऐप से जुड़ा रहता है। जिसका डाटा ग्राफ पर देखा जा सकता है । उन्होंने कहा कि खेत में किसी पैच में नाइट्रोजन की कमी है तो उस पैच के ग्राफ और फसल में नाइट्रोजन की कमी के डाटा की मोबाइल ऐप जानकारी मिलती है उसके आधार पर फसल के उतने ही पैच में यूरिया का इस्तेमाल करते हैं। अगर पूरे खेत में नाइट्रोजन की कमी है पूरे खेत का ऐप डाटा के अनुसार यूरिया का इस्तेमाल किया जा सकता है।
डॉ उपाध्याय ने बताया कि मशीन की बाजार में लगभग अस्सी हजार रूपये कीमत है । जिसको किसान सामुहिक रूप में खरीद कर या अकेले खरीद कर इस्तेमाल कर सकता है । किसान ग्रीन सीकर को खरीद कर किराये पर देकर प्रति घंटे हिसाब से दूसरे किसानों की मदद कर सकता है और अपना लाभ कमा सकता है। इस उपकरण के इस्तेमाल से पाया गया कि फसलों में नाइट्रोजन के प्रयोग को काफी कम किय़ा जा सकता है। इस प्रकार जरूरत से ज्यादा से अधिक उर्वरक के इस्तेमाल और फसल में लगने वाली लागत को कम किया जा सकता है। एक अनुमान के तहत ग्रीन सीकर मशीन के इस्तेमाल से लगभग 20 फीसदी नाइट्रोजन को बाचाया जा सकता है।
फसल में नाइट्रोजन के संतुलित मात्रा के लिए क्लोरोफिल मीटर का प्रयोग करें
डॉं प्रवीन उपाध्याय ने बताया कि इसी तरह नाइट्रोजन का अधिक इस्तेमाल को रोकने के लिए क्लोरोफिल मीटर तकनीक विकसित की गई है। क्लोरोफिल मीटर समान्य नाइट्रोजन मूल्यांकन उपकरणों की तुलना में अधिक विश्वसनीय और उपयोग में आसान है। यह पत्तियों के नाइट्रोजन स्तर के आधार पर क्लोरोफिल की मात्रा को दर्शाता है। धान की पत्तियों में जब क्लोरोफिल मीटर का औसत मान 37.5 हो तो 30 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टयर का प्रयोग करना चाहिए। गेहूं के पत्तियों में मान 42 होने पर उसमें 30 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर की सलाह दी जाती है। क्लोरोफिल मीटर के प्रयोग से हम लगभग 30 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर तक नाइट्रोजन की बचत कर सकते हैं।
इस तकनीक के जरिए सटीक पोषक तत्व प्रबंधन कर फसल उत्पादन में वृद्धि, लागत में कमी, किसानों की आय में वृद्धि होने के साथ ही पर्यावरण संरक्षण के लिए उपयुक्त उर्वरक स्रोत का उपयोग, उचित मात्रा में, सही समय पर, सही जगह पर प्रयोग किया जा सकता है।