आज हर क्षेत्र में कॉम्पटिशन है और हर काम में तकनीक लगातार अपडेट हो रही हैं। दुनिया का बहुत पुराना व्यवसाय मछली पालन में आधुनिक तकनीक अपना कर आप अच्छी कमाई कर सकते हैं। अगर आप इसमें पीछे छूट रहे हैं,तो जल्दी से मछली व्यवसाय को नई तकनीक से जोड़ कर अपडेट कीजिए क्योकि मछली पालन के लिए अब आपको बड़े-बड़े तालाबों और ज्यादा पानी की जरूरत नहीं है। इसकी जगह आप बहुत कम जगह में रीसर्कुलटिंग एक्वाकल्चर सिस्टम (आरएएस) तकनीक की मदद से कम जगह में सीमेंट के टैंक बनाकर मछली पालन कर 8 से 10 गुना ज्यादा मछली उत्पादन कर सकते हैं। केंद्र सरकार के कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, देश के डेढ़ करोड़ लोग अपनी आजीविका के लिए मछली पालन पर निर्भर हैं। इतना ही नहीं, खाद्य एवं कृषि संगठन की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2030 तक देश में मछली की खपत चार गुना बढ़ने की संभावना है। रूरल वॉयस एग्री टेक शो के नये एपीसोड में आरएएस तकनीक की जानकारी दी गई है और इसके बारे में एक्पर्ट और तकनीक का उपयोग करने वाले किसान से बातचीत की गई है। उपर दिये विडियो पर क्लिक कर आप इस शो को देश सकते हैं।
मछली पालन की आरएएस तकनीक
मत्सय विभाग मिर्जापुर के उप निदेशक मुकेश सारंग का कहना है की आरएएस तकनीक में मछलियों को आमतौर पर नियंत्रित वातावरण में इनडोर और आउटडोर टैंकों में पाला जाता है। इस तकनीक में कम पानी में हाई डेंसिटी तकनीक के साथ बहुत कम जगह की जरूरत होती है।।पानी का बहाव निरंतर बनाए रखने लिए पानी के आने-जाने की व्यवस्था की जाती है। आरएएस एक ऐसी तकनीक है जिसमें पानी को मैकेनिकल और बॉयोलोजिकल फिल्टर करके पानी में पड़े बेकार और हानिकारक तत्वों और वेस्ट को हटाने के बाद दोबारा मछली पालन के लिए उपयोगी बनाकर इस्तेमाल किया जाता है। रीसर्क्युलेटिंग सिस्टम पानी को रीसायकल करके फिल्टर से साफ करता है और फिर फिश कल्चर टैंक में पानी को वापस भेजता है।इस तकनीक का इस्तेमाल मछली के किसी भी प्रजाति के पालने के लिए किया जा सकता है। उनका कहना है कि. इस तकनीक का इस्तेमाल शहरी और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में जहां भूमि और पानी की कमी है इस तकनीक मछली उत्पादन जा सकता हैं।
बहुत कम पानी में दस गुना तक मछली उत्पादन
मुकेश सारन के अनुसार एक एकड़ तालाब में 20 हजार मछली डाली जाती हैं तो एक मछली को 300 लीटर पानी में रखा जाता है जबकि इस सिस्टम के जरिए एक मछली को केवल नौ लीटर पानी में रखा जाता है। अगर कोई मछली पालक इस तकनीक से मछली पालन करना चाहता है तो उसके लिए 625 वर्ग फीट और 5 फीट गहराई का सीमेंट का बना टैंक बनाने होंगे। इसमें एक टैंक में 4 हजार मछली पाली जा सकती है। उनका कहना था कि मछली पालन व्यवसाय में आमतौर पर एक एकड़ के तालाब में 15 से 20 हजार पंगेसियस मछलियों को पाला जाता है। जबकि आरएएस तकनीक से एक एकड़ के तालाब में 8 से 10 टन मछली पालन किया जा सकता है। इसमें ख़ास बात ये भी है, कि आरएएस तरीके से मछली पालन के लिए पक्के तालाबों की ज़रूरत होती है। आधुनिक तकनीक का प्रयोग किया जाता है। इसमें एय़र रेटर से ऊपर से पानी डाला जाता है,जिससे पानी का ऑक्सीजन मेंटेन रहता है और जिससे मछलियों को सांस लेने में कोई परेशानी नही रहती है। इससे मछलियों का विकास भी अच्छा होता है। इस तकनीक में समय-समय पर टैंक के पानी को फिल्टर भी करते रहते हैं। पानी के पीएच मानक पर नज़र रखने के लिए ख़ास तरह की स्ट्रिप का इस्तेमाल करते हैं ताकि पानी की क्वालिटी मेंटेन रहे। बीमारियों से मछलियों को बचाने के लिए दवाओं का इस्तेमाल भी किया जाता है। अगर कोई किसान व्यवसायिक रूप से आरएएस से मछली पालन करना चाहता है। यह तकनीक काफी फाएदेमंद है।
आरएएस तकनीक सरकार की सब्सिडी
मुकेश सारंग ने बताया कि 8 टैंक वाले आरएएस सिस्टम पर 50 लाख रुपये, 6 टैंक वाले आरएएस सिस्टम पर 25 लाख रुपयेऔर एक टैंक वाले सिस्टम पर 7.50 लाख रुपये की लागत आती है। केंद्र सरकार और राज्य सरकार द्वारा सब्सिडी का प्रवधान है। जिसमें से 50 फीसदी सब्सिडी राशि केंद्र सरकार द्वारा और अलग अलग राज्यों में राज्य सरकार भी सब्सिडी देती है। इसको किसान व्यक्तिगत समूह और एफपीओ के माध्यम से किया जाता है।
आरएएस तकनीक से किसान कर रहे हैं बेहतर आमदनी
फिश फार्मिंग के एरिया में पूरी दुनिया में नाम कमा चुके हैं। हरियाणा में करनाल के नीलोखेडी में सुल्तान फिश फार्म के पार्टनर नीरज चौधरी ने रूरल वॉयस एग्री टेक शो में बताया कि जो आरएएस सिस्टम से एक एकड़ में 60 टन मछली का उत्पादन कर रहे है। उनका कहना है कि हमने देश का पहला रिसर्कुलटरी एकवाकल्चर सिस्टम लगाया है जिससे हम सामान्य विधि की तुलना में 10 गुना मछली का उत्पादन लेकर बेहतर कमाई कर रहे हैं। नीरज ने बताया कि इसकी ख़ासियत है कि आरएएस सिस्टम कम पानी वाले क्षेत्र में भी लगाया जा सकता है, जिससे पानी की बर्बादी नहीं होती। इससे 10 साल तक एक ही पानी का इस्तेमाल किया जा सकता है। यह सिस्टम पानी को रीसायकल करता रहता है। कम पानी कम में मछली का प्रोडक्शन ज्यादा होता है।
आरएएस तकनीक में गुणवत्ता युक्त मछली उत्पादन-
नीरज ने बताया कि रीसर्कुलेशन एक्वाकल्चर प्रोजेक्ट में टेंपरेचर कंट्रोलर लगा है जो खुद तापमान नियंत्रित करता है। सर्दी और गर्मी का असर मछलियों पर नहीं पड़ता है । पहले जब तालाबों में मछली पालन होता था तो प्रवासी पक्षी भी मछलियों को खा जाते थे, इससे किसानों की आय पर फर्क पड़ता था लेकिन इसमें शेड के अंदर ऐसी समस्याएं किसानों के सामने नहीं आतीं हैं। नीरज के अनुसार एंटीबायोटिक्स और थेरेपिस्ट पर कम निर्भरता इसलिए उच्च गुणवत्ता वाली मछली का उत्पादन होता है। फीड में कमी, परजीवी कीटों का नियंत्रण, परिचालन लागत में कमी, रोग और परजीवी कीटों और जलवायु कारकों का कम प्रभाव होता है। प्रतिकूल मौसम में मछलियों को आसानी से पाला जा सकती है। किसी भी तरह से मछलियां बाहरी प्रदूषण का शिकार नही होती है।
आरएएस के लिए उपयुक्त प्रजातियां
इस आधुनिक प्रोजेक्ट के तहत किसान साल में दो कार्प ले सकते हैं। एक बार बीज डालने के 6 महीने बाद बाजार में मछलियां बेचने के लिए तैयार हो जाती हैं। उन्होंने इस तकनीक से सिबास, चितल, देसी मंगूर झिंगा, नाइल, तपेलिया कोबिया, सिल्वर इंडियन पोम्पानो तिलापिया, पंगेसियस जैसी प्रजातियों की पैदावार ली जा सकती है।
फिल्टरेशन पर बहुत कुछ निर्भर
नीरज ने बताया कि मछलियों पर असर डालने वाले कई पैरामीटर्स को लगातार मॉनीटर किया जा सकता है। जैसे तापमान, ऑक्सीजन लेवल, और अमोनिया जैसे फैक्टर्स की क्या स्थिति है इसके लिए मशीनें होती हैं। उन्होने कहा कि आरएएस सिस्टम का प्रबंधन मछलियों के फ़ीड की गुणवत्ता और मात्रा और फिल्टरेशन पर बहुत अधिक निर्भर करता है। रीसर्क्युलेटिंग सिस्टम में कई फिल्टर डिजाइन का उपयोग किया जाता है, लेकिन सभी फिल्टरेशन का एक ही लक्ष्य होता है कि पानी से अपशिष्ट पदार्थ , अतिरिक्त पोषक तत्व और ठोस पदार्थ निकालना और मछलियों के लिए अच्छी पानी की गुणवत्ता प्रदान करना है। जिससे मछलियों का बेहतर तरीके से विकास हो सके ।