एकीकृत कृषि प्रणाली एक ऐसी तकनीक है, जिससे न सिर्फ़ फसलों की पैदावार बढ़ती है, बल्कि ये पूरे साल किसानों को रोज़गार देती है। इसकी बदौलत किसान के पास आमदनी के कई विकल्प होते हैं। इसे अपनाकर कम ज़मीन वाले किसान अधिक आमदनी के लिए फसलों के अलावा बागवानी, बकरी पालन, डेयरी, भेड़ पालन आदि से कमाई कर सकते हैं। इससे संसाधनों के सही इस्तेमाल से खेती से जुड़े कामकाज़ की लागत में कमी आती है। शुष्क क्षेत्रों में कृषि उत्पादकता में स्थिरता लाने में कई समस्याएं हैं क्योंकि खराब ग्रेड की मिट्टी, अनियमित वर्षा और सूखे की वजह से खेतों की कम उत्पादकता है। ऐसे क्षेत्र में एकीकृत खेती के तहत फसलों के साथ भेड़ पालन करना काफी लाभकारी है। सेंट्रल शीप एंड वूल रिसर्च इंस्टीट्यूट अविकानगर के डायरेक्टर डॉ अरुण कुमार तोमर ने एकीकृत भेड़ पालन (इंटीग्रेटेड शीप फार्मिंग ) के बारे में रूरल वॉयस के एग्री टेक शो में जानकारी दी। इस शो को आप ऊपर दिए गए वीडियो लिंक पर क्लिक करके देख सकते हैं।
डॉ तोमर ने बताया कि किसान के पास जलवायु के अनुसार मौजूद प्राकृतिक संसाधनों का क्षमता के अनुसार भूमि और पशुधन की उत्पादकता में वृद्धि करने के लिए इस्तेमाल को इंटीग्रेटेड फार्मिंग कहते हैं। यानी कृषि और कृषि सहव्यवसाय एक साथ करना। उन्होंने कहा कि शुष्क एरिया में फसलों औऱ बागवानी के साथ भेड़ पालन करना ज्यादा लाभकारी है।
डॉ तोमर कहा कि सामान्य फसल अकेले शुष्क क्षेत्रों की जरूरतों को पूरा नहीं कर सकती है। इसलिए इन एरिया के लिए भेड़ पालन के साथ के साथ कृषि वानिकी, फसले औऱ चारा उगाना एक अच्छा विकल्प है। कृषि वानिकी शुष्क भूमि को मरुस्थल में बदलने से रोकती है। भेड़ों को आसानी से चारा भी मिल जाता है। इसलिए कृषि वानिकी और भेड़ दोनों को एक साथ किया जा सकता है। इसके साथ औषधीय पेड़ या फल देने वाले पौधों और डेयरी पशु को शामिल कर लिया जाए तो और भी बेहतर है।
डॉ तोमर ने कहा कि शुष्क एरिया में एक एकड़ फसलों के साथ 25 से 30 भेड़ों का पालन किया जा सकता है जिसमें एक नर भेड़ होना होना चाहिए । इससे किसान साल भर में एक से डेढ़ लाख की आमदनी प्राप्त कर लेता है। उसकी यह आमदनी भेड़ के ऊन , दूध और मांस और साल भर में प्राप्त बच्चे को बेचकर करके हो सकती है। उन्होंने कहा कि शुष्क एरिया में फसल के साथ भेड़ पालन किसानों के लिए एटीएम है।
डॉ तोमर ने कहा इंट्रीग्रेटेड शीप फार्मिग में आहार पर लागत बहुत कम आती है क्योंकि भेड़ो के लिए आहार बोई गई फसल के अवशेषों से मिल जाता है। कृषि वानकी पौधों से भी चारा मिल जाता है। मौसम के कारण किसान की फसल खराब होती है तो उसकी आमदनी रुकती नहीं है, भेड़ों से मिलती रहती है। दक्षिण के राज्यों में इंट्रीग्रेटेड शीप फार्मिग का प्रचलन तेजी से बढ़ रहा है। उन्होंने कहा कि भेड़ पालन के लिए नाबार्ड से लोन और सहयोग मिल रहा है। अगर कोई किसान भेड़ पालन करना चाहता है, हमारे संस्थान से ट्रेनिग ले सकता है।
डॉ तोमर ने सुझाव दिया कि आज उन्नत तरीके अपना कर भेड़ पालन किया जा रहा है। किसान भेड़ पालन का काम खेती के साथ कर सकता है। क्योंकि भेड़ ज्यादातर जंगली घास या खरपतवार खाकर ही अपना विकास करती है। शुष्क क्षेत्र में भेड़ पालन करना अन्य व्यवसाय से बेहतर लाभ देने वाला होता है।
इंट्रीग्रेटेड शीप फार्मिंग कर रहे एक प्रगतिशील किसान जिला जयपुर गांव खैराना के सुरेन्द्र अवाना ने कहा कि वह इंट्रीग्रेटेड फार्मिग पांच साल से कर रहे हैं। उन्होंने डेढ़ साल पहले इंट्रीग्रेटेड फार्मिग में भेड़ को शामिल किया है। उन्होंने बताया कि वह सेंट्रल शीप एंड वूल रिसर्च इंस्टीट्यूट अविकानगर से जानकारी लेकर पांच भेड़ और पांच मेमने और एक नर से इसकी शुरूआत की थी। इस समय उनके पास 31 भेड़ हैं। उन्होंने कहा भेड़ की खाद से उनके खेतों की उपजाऊ क्षमता बढ़ गई है। इनके आहार पर कोई खर्च नहीं आता है क्योंकि हमारे खेत पर उगाई जाने वाली फसलों के अवशेष से ही इनका आहार प्रबंधन हो जाता है। भेड़ पालन से हमें दूध, इनके बच्चे को बेचने और ऊन और इसके खाद से लाभ मिल रहा है।