आज दुनिया की हर तकनीक स्मार्ट फोन से जुड़ती जा रही है। स्मार्टफोन ने लोगों के जीवन को बहुत आसान बना दिया है। खेती-किसानी के लिए भी स्मार्टफोन कारगर साबित हो रहे हैं। स्मार्ट फोन सेंसर के माध्यम से एक किसान अपने फोन के उपयोग से कृषि के कई काम में कर सकता है। ट्रिपल आईटी हैदराबाद के प्रोफेसर डॉ पी कृष्णा रेड्डी और भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान आईएआरआई पूसा दिल्ली के एग्रीकल्चर फिजिक्स के वैज्ञानिक डॉ . राजकुमार धाकर ने रूरल वॉयस के साथ चर्चा में स्मार्ट फोन सेंसर के कृषि में उपयोग औऱ लाभ के बारे में जानकारी दी। इस शो को आप ऊपर दिए गए वीडियो लिंक पर क्लिक करके देख सकते हैं।
प्रोफेसर डॉ पी कृष्णा रेड्डी ने बताया कि स्मार्ट फोन सेंसर से कम लागत में अधिकतम उत्पादन कर सकते हैं। पर्यावरण पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभाव को भी कम कर सकते हैं। इसके लिए मिट्टी और आसपास की हवा के तापमान और आर्द्रता को मापने के लिए पूरे क्षेत्र में सेंसर लगाते हैं। इस सेंसर के माध्यम से वास्तिक समय पर डेटा एकत्र करते हैं। फिर उसे प्रोसेस करते हैं ताकि किसानों को फसलों की बुवाई, खाद और कटाई के संबंध में सर्वोत्तम निर्णय लेने में मदद मिल सके।
प्रोफेसर रेड्डी ने बताया कि आज के वक्त देश में ज्यादा इमेज सेंसर इस्तेमाल हो रहा है। कीट और बीमारियों का सही पता लगाने के लिए इस सेंसर का उपयोग किया जा रहा है। इसमे कैमरे से रोगग्रस्त पौधे की तस्वीर लेते हैं। फिर फोटो के डेटा पर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग का इस्तेमाल करके बीमारी का पता लगाया जाता है। उन्होंने बाताया कि स्मार्ट फोन सेंसर के जरिए मौसम की जानकारी, मछली पालन में पानी का तापमान और मिट्टी की नमी इत्यादि की सटीक जानकारी ली जा सकती है।
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के एग्रीकल्चर फिजिक्स के वैज्ञानिक डॉ. राजकुमार धाकर ने कहा कि स्मार्टफोन खेती के लिए काफी कारगर साबित हो रहे हैं। इसे डेटाबेस में अपलोड कर सकते हैं जहां विशेषज्ञ रंग और अन्य गुणों के आधार पर फसल की का आकलन कर सकते हैं। स्मार्ट फोन सेंसर के माध्यम से मशीन से नियंत्रित सिंचाई, उर्वरक प्रबंधन, कीटनाशक, फसल प्रजनन और आनुवांशिक अनुसंधान की सुविधा आसान की जा रही है।
डॉ. धाकर ने कहा कि स्मार्टफोन आधारित सेंसर के दो मुख्य भाग होते हैं, पहला स्मार्टफोन और दूसरा सेंसर। सेंसर स्मार्टफोन से तो आप न केवल फोन कॉल और टेक्स्ट संदेश भेज सकते हैं बल्कि आप कई अन्य चीजें भीकर सकते हैं। सेंसर एक सिग्नल है और यह सिग्नल स्मार्टफोन द्वारा पढ़ा और इस्तेमाल किया जाता है। आज के स्मार्टफोन कई एम्बेडेड सेंसर से लैस हैं। स्मार्टफोन के इन सेंसर को पांच श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है। १. मोशन सेंसर २. इमेज सेंसर्स ३, एनवायर्नमेंटल सेंसर्स ४. पोजीशन सेंसर्स ५. कनेक्टिविटी मोडम्स।
राज कुमार ने बताया कि,मोशन सेंसर के उदाहरण है एक्सेलेरोमीटर,यरोस्कोपे मैग्नेटोमीटर और ग्रेविटी सेंसर्स। इन सभी मोशन सेंसर्स को कृषिमशीन और रोबोट्स के नेविगेशन के लिए उपयोग किया जाता है। इमेज सेंसर्स में हाई रेसोलुशन पूरक धातु ऑक्साइड सेमीकंडक्टर होते हैं जिनसे फोटो खींची जाती है। इन इमेज और फोटो से फसल की स्थिति, जैविक और अजैविक तनाव इत्यादि का पता लगाया जा सकता है। एनवायर्नमेंटल सेंसर्स में तापमान, आद्रता, प्रेशर तथा लाइट के सेंसर सम्मलित होते है। कनेक्टिविटी मोडेम में सेलुलर नेटवर्क, वाई-फाई और ब्लूटूथ शामिल हैं। इन सभी का उपयोग फ़ार्म पर बाहरी सेंसर से डेटा प्राप्त करने और इस डेटा को किसी दूरस्थ सर्वर तक पहुंचाने के लिए किया जाता है
डॉ. राज कुमार ने बताया कि कृषि में स्मार्ट फोन बेस्ड सेंसर में जो डेटा आता है,उससे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग टेक्नोलॉजी के जरिए कृषि कार्य के समाधान के लिए एक मॉडल तैयार किया जाता है। इमेज सेंसर का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि जब हम स्मार्टफोन के कैमरे से रोगग्रस्त पौधे की तस्वीर लेते हैं, फोटो के डेटा पर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग को लागू करके बीमारी का पता लगाया जाता है और जब बीमारी का पता चलता है तो उस बीमारी के लिए उचित निदान का सुझाव दिया जाता है। j
डॉ धाकर ने बताया कि खेती के लिए मोटर चलाने, लाइट चालू और बंद करने, मिट्टी को जरूरत के हिसाब से पानी देने का काम स्मार्ट फोन सेंसर तथा रिमोट आधारित है। भारत में हर साल किसानों की गाढ़ी कमाई,मिट्टी के विषय में सही जानकारी ने होने के कारण बर्बाद हो जाती है। सटीक जानकारी के अभाव में फसलों का ठीक से विकास नहीं हो पाता, जिसके चलते किसान अनावश्यक रूप से उसमें उर्वरक डालते रहते है और सिंचाई करते हैं। इसका असर उनकी फसलों पर पड़ता है। किसानों की इस समस्या को हल करने के लिए स्मार्ट फोन सेंसर बनाया गया है, जो मिट्टी की सटीक जानकारी दे सकता है।
धाकर ने बताया कि आईआरआई पूसा नाइट्रोजन मैनेजर बना रहा है। यह आरजीबी फोटो बाय लीफ स्मार्टफोन का उपयोग करके नाइट्रोजन उर्वरक की समय पर जरूरत कब और कितना है यह बताएगा। उन्होंने कहा कि हमारा संसथान, अन्य स्मार्टफोन आधारित तकनीक जैसे जल रोग प्रबंधन, मृदा की नमी का प्रतिशत, फ़र्टिलाइज़र डालने का समय, फसल उत्पादन का आकलन, फसल की गुणवत्ता का पता लगाने के लिए स्मार्टफोन इमेजिंग सेंसर पर काम कर रहा है। उन्होंने कहा कि संस्थान का उद्देश्य है कि स्मार्टफोन बेस्ड तकनीक कम लगत वाली हो जिससे यह लघु औऱ सीमांत किसानो के लिए भी किफायती हो।