भारत में पहली बार कृत्रिम गर्भाधान की इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) तकनीक से एक भैंस का गर्भाधान किया गया और उसके बच्चे (काफ) का जन्म हुआ। इसकी सूचना देते हुए केंद्रीय मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय ने बताया है कि देश की पहली 'बन्नी' नस्ल की भैंस के बच्चे (काफ) का सफल जन्म हुआ है । मंत्रालय ने बताया है कि गुजरात के कच्छ क्षेत्र में गुजरात के गिर सोमनाथ जिले के धनेज गांव रहने वाले एक किसान विनय एल वाला के यहां भैंस बन्नी' की प्रमुख प्रजाति की एक भैंस ने (आईवीएफ) के माध्यम से एक बच्चे (काफ) को जन्म दिया है। मंत्रालय ने शुक्रवार को ट्वीट किया कि हमें आईवीएफ के माध्यम से देश में पहले बनी नामक भैंस की नस्ल के बच्चे के जन्म की घोषणा करते हुए बेहद खुशी हो रही है । सुशीला एग्रो फार्म के किसान विनय एल. वाला के यहा जन्म देने वाली यह पहली भैंस है। मंत्रालय के अनुसार भैंस के बच्चे का जन्म शुक्रवार की सुबह हुआ है और अगले कुछ दिनों में और बच्चे भी पैदा होंगे।
इस तकनीक के जरिए भैंस के बच्चे को जन्म देने का मकसद आनुवंशिक रूप से अच्छी मानी जाने वाली इन भैंसों की संख्या को बढ़ाना है,ताकि दूध का उत्पादन भी बढ़ सके । बन्नी भैंस शुष्क जलवायु में भी अधिक दूध उत्पादन करने की क्षमता के लिए जानी जाती है ।
वैज्ञानिकों ने विनय एल. की तीन भैंसों को गर्भाधान के लिए तैयार किया गया था। वैज्ञानिकों ने (आईवीसी) का उपयोग करके भैंस के अंडाशय से 20 अंडे निकाले। आईवीसी प्रक्रिया से तीन भैंसों में से एक के कुल 20 अंडे निकाले गए।
दरअसल, एक डोनर से निकाले गए 20 अंडाशय में से 11 भ्रूण बन गए। तीन आईवीएफ निषेचन को जन्म देते हुए नौ भ्रूण स्थापित किए गए। दूसरे डोनर से पांच अंडाशय निकाले गए, जिसमें से पांच भ्रूण पैदा हुए। पांच में से चार भ्रूण को प्लेसमेंट के लिए चुना गया और इस प्रक्रिया के परिणामस्वरूप दो निषेचन हुए। तीसरे दाता से चार अंडाशय निकाले गए, दो भ्रूण विकसित किए गए और उन्हें स्थापित करके एक निषेचन हुआ।
उन्नत नस्लों विकसित करने मिलेगी मदद
कुल मिलाकर, 29 अंडाशय से 18 भ्रूण विकसित हुए। इसका बीएल रेट 62 फीसदी था। पंद्रह भ्रूण स्थापित किए गए और छह को जन्म दिया। निषेचन दर 40 प्रतिशत थी। इन छह गर्भधारण में से आज पहले आईवीएफ बछड़े का जन्म हुआ। कृत्रिम गर्भाधान की आईवीएफ तकनीक का उपयोग करके पैदा होने वाला यह देश का पहला बन्नी बछड़ा है। सरकार और वैज्ञानिक समुदाय भैंसों की आईवीएफ प्रक्रिया में अपार संभावनाएं देखते हैं और देश की पशु संपदा में सुधार के लिए काम कर रहे हैं
भारत की सामान्य नस्लों जैसे मुर्रा' या 'जफ़राबादी' के विपरीत 'बन्नी' नस्ल को हर जलवायु में असानी से पाला जा सकता है । इस नस्ल की भैंस कम पानी सहित कठोर जलवायु परिस्थितियों में जीवित रह सकती हैं।
पशुपालन और डेयरी मंत्रालय ने कहा कि बन्नी भैंसों के आईवीएफ के लिए ओवम पिक-अप (ओपीयू) जैसी प्रक्रिया की योजना पिछले साल दिसंबर में बनाई गई थी।