रिसर्च, इनोवेशन और पॉलिसी सुधार से भारत बन सकता है गेहूं में ग्लोबल लीडर

भारत को अगर गेहूं उत्पादन में ग्लोबल लीडर बनना है, तो टेक्नोलॉजी और इनोवेशन को साथ लाना होगा। सीमित क्षेत्र के साथ बढ़ती आबादी भारत के लिए एक बड़ी चुनौती है। ऐसे में भारत को सीमित क्षेत्र में ही उत्पादन बढ़ाना होगा। गेहूं उत्पादन में ग्लोबल लीडर बनने के लिए भारत को रिसर्च, इनोवेशन और पॉलिसी में सुधार करना होगा।

भारत को गेहूं उत्पादन में ग्लोबल लीडर बनना है और इसका निर्यात बढ़ाना है तो टेक्नोलॉजी, इनोवेशन और सही नीतियों को अपनाने की जरूरत है। छोटी होती जोत और बढ़ती आबादी भारत के लिए एक बड़ी चुनौती है। ऐसे में भारत को सीमित क्षेत्र में ही उत्पादन बढ़ाना होगा। अनुसंधान (रिसर्च), नवाचार (इनोवेशन) और नीति (पॉलिसी) में सुधार कर भारत गेहूं उत्पादन के मामले में ग्लोबल लीडर बन सकता है। यह निष्कर्ष दिल्ली में आयोजित उस चर्चा में निकला, जिसमें घरेलू खाद्य सुरक्षा और वैश्विक स्तर पर गेहूं का प्रमुख उत्पादक बनने जैसे मुद्दों पर बात करने के लिए कई एक्सपर्ट्स जुटे थे। यह डायलॉग 'स्ट्रैटजी फॉर इंडिया टू बिकम ए ग्लोबल व्हीट प्लेयर' विषय पर आयोजित किया गया।

ट्रस्ट फॉर एडवांसमेंट ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेस (टीएएएस), नई दिल्ली द्वारा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) और आईसीएआर-भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान (आईआईडब्ल्यूबीआर), करनाल के सहयोग से राष्ट्रीय कृषि विज्ञान केंद्र (एनएएससी), पूसा दिल्ली में इस परिचर्चा का आयोजन किया गया था। जिसमें नीति निर्माताओं, नियामकों, शोधकर्ताओं, किसानों, किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ), निर्यातकों और निजी क्षेत्र के प्रतिनिधियों सहित 41 हितधारकों ने भाग लिया। इस परिचर्चा में डॉ. रमेश चंद (सदस्य, नीति आयोग), डॉ. आरएस परोदा (संस्थापक अध्यक्ष, टीएएएस), डॉ. ज्ञानेंद्र सिंह (निदेशक, आईसीएआर-आईआईडब्ल्यूबीआर), डॉ. सतीश कुमार (प्रधान वैज्ञानिक, आईसीएआर-आईआईडब्ल्यूबीआर), डॉ. पीएल गौतम (चांसलर, आरसीपीएयू) समेत कई एक्सपर्ट्स मौजूद रहे। 
 
अनाज की पैदावार और गुणवत्ता पर देना होगा जोर

भारत सीमित क्षेत्र में गेहूं का उत्पादन बढ़ा सकता है। इसे वर्तमान राष्ट्रीय औसत 3.66 टन/हेक्टेयर को बढ़ाकर लगभग 5 टन/हेक्टेयर तक किया जा सकता है। लेकिन, इसके लिए उपज क्षमता में सुधार करना होगा। एक्सपर्ट्स ने बताया कि भारत में उच्च उपज क्षमता वाली ऐसी कई किस्में हैं जो 8.0 टन/हेक्टेयर से अधिक की पैदावार देती हैं। लेकिन किसानों तक इनकी उपलब्धता सुनिश्चित नहीं हो पाती। ऐसे में आईसीएआर-आईआईडब्ल्यूबीआर को राज्य कृषि विभागों के साथ सहयोग और मौजूदा उपज अंतर के कारणों का आकलन करना होगा।

इसी तरह गेहूं के निर्यात में बढ़ोतरी के लिए अनाज की गुणवत्ता सबसे महत्वपूर्ण है। इसलिए हमें अंतरराष्ट्रीय मानकों को पूरा करने के लिए गुणवत्ता सुधार पर अधिक जोर देने की आवश्यकता है। अनुसंधान प्रयासों में गुणवत्ता सुधार के साथ आटा, पास्ता और बिस्कुट जैसे मूल्यवर्धित गेहूं उत्पादों पर भी ध्यान देना होगा।

फंगल रोगों को नियंत्रित करना जरूरी

एक्सपर्ट्स ने बताया कि अच्छी उपज के लिए फंगल रोगों पर नियंत्रित करना भी बेहद जरूरी है। फंगल रोग फसल को प्रभावित करते हैं, जिससे उत्पादन पर असर पड़ता है। करनाल बंट और ब्लास्ट जैसी कई बीमारियां गेहूं की फसल को प्रभावित करती हैं। इसके लिए गेहूं की ऐसी किस्में विकसित करनी पड़ेंगी जिन पर फंगल रोगों और अन्य बीमारियों का असर न पड़े।

इसके साथ ही गेहूं के निर्यात से जुड़े कीट जोखिमों को कम करने के लिए वैकल्पिक फाइटोसैनिटरी उपचार विकसित करने पर शोध की आवश्यकता है, ताकि पारंपरिक रासायनिक तरीकों पर निर्भरता कम से कम हो। इससे वैश्विक बाजार में भारतीय गेहूं की सुरक्षा और विपणन क्षमता दोनों में वृद्धि होगी। रासायनिक उपचारों के कारण संभावित पर्यावरणीय प्रभाव कम होंगे और विकसित हो रहे अंतरर्राष्ट्रीय नियमों का अनुपालन सुनिश्चित होगा।

मजबूत निगरानी प्रणाली की आवश्यकता

अनाज उत्पादन और उपज की गुणवत्ता पर नजर रखने के लिए एक मजबूत निगरानी प्रणाली स्थापित की जानी चाहिए। यह आवश्यक निर्यात मानकों को पूरा करने में सक्रिय समायोजन करेगा और स्थिरता लाएगा। एक कुशल इनपुट वितरण तंत्र की आवश्यकता है, क्योंकि उर्वरक डालने के पारंपरिक तरीके अकुशलता और पोषक तत्वों के असंतुलन का कारण बनते हैं। सटीक कृषि उत्पादन को बढ़ाने में मदद कर सकती है। वहीं, गेहूं की नई किस्मों का शीघ्र पता लगाने के लिए एक जैव सुरक्षा स्तर 3 (बीएसएल 3) सुविधा स्थापित की जानी चाहिए ताकि रोग प्रतिरोधी गेहूं की किस्मों के विकास में तेजी लाई जा सके।

भंडारण सुविधाओं को करना होगा मजबूत

एक्सपर्ट्स ने बताया कि गेहूं की कटाई के बाद होने वाले नुकसान को कम करने के लिए, अच्छी भंडारण प्रथाओं (जीएसपी) और साइलो जैसी आधुनिक अनाज भंडारण सुविधाओं का निर्माण करने की तत्काल आवश्यकता है। इसलिए, निर्दिष्ट निर्यात क्षेत्रों में उचित तापमान और नमी नियंत्रण वाले सुरक्षित गेहूं भंडारण के लिए बुनियादी ढांचे का निर्माण जरूरी है। निर्यात आपूर्ति श्रृंखला को सुव्यवस्थित करने और कीटों और बीमारियों से बचाव के लिए एकत्रीकरण, ग्रेडिंग, भंडारण, खरीद और सभी संबंधित रसद के लिए एक समर्पित प्रणाली विकसित करने की आवश्यकता है।

एक्सपर्ट्स ने बताया कि भारत को ड्यूरम गेहूं की खेती को बढ़ावा देना होगा, जो करनाल बंट के लिए अंतर्निहित प्रतिरोध के कारण गेहूं निर्यात का बेहतर विकल्प प्रदान करते हैं। यह निर्यात अस्वीकृति के जोखिम को कम करेगा और ड्यूरम गेहूं में वैश्विक बाजार में भारत का प्रवेश सुनिश्चित करेगा। इसके अलावा विभिन्न कृषि संगठनों और राज्य कृषि विश्वविद्यालयों के बीच समन्वित तरीके से गेहूं उत्पादन की जैव सुरक्षा बढ़ाने की आवश्यकता है, ताकि गेहूं में लगने वाली बीमारियों के प्रसार को रोका जा सके।

समझनी होगी अंतरराष्ट्रीय बाजार की मांग

निर्यात गुणवत्ता सुनिश्चित करने और खरीदारों की विविध जरूरतों को पूरा करने के लिए, न्यूनतम समर्थन मूल्य के माध्यम से अलग-अलग गेहूं खरीद के लिए नीतिगत ढांचा मजबूत करने की आवश्यकता है। गेहूं उत्पादन में ग्लोबल लीडर बनने के लिए एक दीर्घकालिक राष्ट्रीय गेहूं निर्यात नीति बनाने की आवश्यकता है, जो विभिन्न खरीदारों की जरूरतों (जैसे प्रोटीन सामग्री, अनाज की गुणवत्ता) को पूरा कर सकती है। वैश्विक स्तर पर संभावित गेहूं आयात बाजारों की पहचान के लिए भारतीय उच्चायोगों के नेटवर्क का लाभ उठाया जा सकता है। गेहूं निर्यात के हाल के प्रतिबंध से पहले 2016 से 2020 के दौरान भारत का गेहूं निर्यात सालाना 48.5 प्रतिशत की दर से बढ़ा। इसके बावजूद विश्व गेहूं निर्यात में भारत का हिस्सा एक प्रतिशत से भी कम था।

'गेहूं मैत्री' देशों की करनी होगी पहचान

गेहूं का आयात बढ़ाने के लिए भारत को उन प्रमुख भागीदार देशों की पहचान करनी होगी, जिन्हें लगातार गेहूं आयात की आवश्यकता होगी। इन देशों को 'गेहूं मैत्री' देश माना जा सकता है, जिन्हें न्यूनतम मात्रा में नियमित गेहूं की आपूर्ति की गारंटी मिलती रहेगी। एक बार 'गेहूं मैत्री' देशों की मांग पूरी हो जाने के बाद, भारत धीरे-धीरे गेहूं आयात की आवश्यकता वाले अन्य देशों तक अपनी पहुंच का विस्तार कर सकता है।