स्मार्ट फोन कृषि कार्यों औऱ किसानों के जीवन पर सकारात्मक असर डाल रहा है। हाल ही में इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर इंफोर्मेशन टेक्नोलॉजी, हैदराबाद ने फसलों में बीमारी और इंसेक्ट की जांच के लिए तीन स्तरीय फसल चक्र के लिए दर्पण नाम की एक एप्लीकेशन तैयार की है। इसे द आईटी फॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट (आईटीएआरडी) ने तैयार किया है। इस एप्लीकेशन को www.cropdarpan.in नाम से तैयार किया गया है। इसके लिए किसान को इंटरनेट कनेक्शन के साथ एक स्मार्ट मोबाइल फोन की जरूरत होती है। इस एप्लीकेशन के माध्यम से फसल के दूसरे चरण में फसल की वृद्धि के दौरान कीट और जीवाणु और फंगस जनित रोग के प्रकोप और फसलों में पोषक तत्वों की कमी जैसी किसान की चिंताओं को दूर करने के लिए इस डिजाइन को बनाया गया है।
फसल उत्पादन के तीन चरण होते हैं। पहले चरण में किसान यह तय करते है कि खेत में कब और क्या बुवाई करनी है। दूसरे चरण में फसल की वृद्धि के दौरान कीट रोग और पोषक तत्वों की कमी जैसे मुद्दों सामने आते हैं। तीसरा चरण फसल के लिए मिलने वाला मूल्य होता है।
किसानों की मदद के लिए तैयार किये गये एप्लीकेशन के तहत वेब एक्सपर्ट व्यवहारिक रूप में सभी तरह से एक कृषि विशेषज्ञ का काम करता है। जो काम राष्ट्रीय कृषि संस्थान औऱ कृषि संस्थानों के विशेषज्ञ करते हैं। यह फसलों को प्रभावित करने वाले रोगों के लक्षणों को छवि यानि पिक्चर देखकर पहचानने में सक्षम है। साथ ही इनसे निपटने के लिए किसानों को सही उपायो के बारे में दिशानिर्देश भी देने में सक्षम है।
यह सिस्टम काम किस प्रकार करता है:
मोबाइल एप सिस्टम किसान से सवाल पूछेगा । अगर किसान फसल में मौजूद किसी लक्षण के बारे में कन्फर्म करता है तो उस लक्षण से संबधित दूबारा सवाल पूछेगा। इसके बाद समस्या के समाधान के लिए किए जाने वाले उपायों पर आवश्यक सलाह दी जाती है। जो फसल की बीमारी के निदान के सटीक उपाय के बारे में होती है।
आईआईआईटी के अनुसार, कपास की फसल के लिए इस एप्लीकेशन को दो भाषाओं अंग्रेजी और तेलुगू के प्रोटोटाइप में विकसित किया गया है। हालांकि आईआईटी हैदराबाद के श्रीनिवास अन्नपल्ली ने बताया कि इसे इस तरह से डिजाइन किया गया है कि यह सभी फसलों के लिए स्केलेबल है और इसे सभी भारतीय भाषाओं में भी अपनाया जा सकता है। यह संस्थान हिन्दी भाषा के लिए काम कर रहा है। यह कार्य पी. कृष्णा रेड्डी के निर्देशन में हो रहा है। इस टीम में अरविंद गादमसेट्टी, रेवंत पार्वथनेनी और साईदीप चेन्नुपति शामिल हैं। इस टीम के सदस्य श्रीनिवास अन्नपल्ली भी है। प्रोफेसर कृष्णा रेड्डी कहते हैं कि इस मोबाइल ऐप को लेकर किसान अपनी फसल की सुरक्षा बेहतर तरह से कर सकता है।
हैदराबाद स्थित यह संस्थान आईटी के माध्यम से कृषि आधारित सेवाओं को विकसित करने में बहुत योगदान दे रहा है। इसने पहले ईसागु नामक खेत और ग्राम स्तर पर एक कृषि सलाहकार प्रणाली विकसित की थी। इसी तरह एग्रोमेट सर्विसेज में भी सुधार हुआ है। इस तरह स्मार्ट फोन क्रांति के जरिए अगली हरित क्रांति की पहल हो रही है। सूचना के अंतर की खाई को पाटने के लिए उपकरण के रूप में मोबाइल फोन का प्रभाव किसानों के बीच में तेजी से बढ़ रहा है।
यह रिसर्च इंडो-जापान ज्वाइंट रिसर्च लेबोरेट्री के तहत संयुक्त उद्यम के रूप में जलवायु परिवर्तन के अंतर्गत स्थायी फसल उत्पादन के लिए डेटा साइंस आधारित फार्मिंग सपोर्ट सिस्टम प्रोजेक्ट के नाम से हो रही है। इस परियोजना में आईआईटी हैदराबाद और आईआईटी बॉम्बे भी शामिल हैं। तेलंगाना स्टेट एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, हैदराबाद के प्रोफेसर जयशंकर के अलावा यूनिवर्सिटी आफ टोक्यो भी इस प्रोजेक्ट में शामिल है।
(एम. सोमाशेखर, हैदराबाद के स्वतंत्र पत्रकार हैं। वह डेवपलमेंट से संबंधित मुद्दों, साइंस और बिजनेस पर लिखते हैं )