कम बारिश और सूखी जमीन वाले इलाकों में पैदावार बढ़ाने और इन इलाकों के किसानों की आमदनी बढ़ाने में नई प्लाज्मा तकनीक मददगार साबित हो सकती है। इसी मकसद से हैदराबाद स्थित इंटरनेशनल क्रॉप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर द सेमी-एरीड ट्रॉपिक्स (आईसीआरआईएसएटी) और अमेरिका की वाटरटेक ने मुंबई स्थित प्लाज्मा वाटर सॉल्यूशंस इंडिया से समझौता (एमओयू) किया है। प्लाज्मा-युक्त पानी रोगों से मुक्त होता है। इसमें ऑक्सीजन और नाइट्रोजन की कुछ प्रतिक्रियाशील प्रजातियां होती हैं जो बीजों और पौधों की प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ाती हैं।
खेती में प्लाजमा-युक्त पानी के इस्तेमाल से केमिकल के उपयोग में कमी लाने के साथ-साथ फसलों की पैदावार बढ़ाने और उसकी गुणवत्ता बेहतर करने में मदद मिलती है। यह न सिर्फ पर्यावरण की दृष्टि से बल्कि उपभोक्ताओं के लिहाज से भी फायदेमंद है। एक संयुक्त बयान में कहा गया है कि नई प्लाज्मा तकनीक शुष्क भूमि के लाखों किसानों के लिए आशा की किरण है। इसके इस्तेमाल से कृषि उत्पादन में 20 फीसदी तक की वृद्धि दर्ज की गई है। यह पूरे भारत और उप-सहारा अफ्रीका में घटती पैदावार से पीड़ित लाखों किसानों के लिए नई उम्मीद है। प्लाज्मा-युक्त पानी का इस्तेमाल बीजों के उपचार, फसल संरक्षण और सिंचाई तक में किया जा सकता है।
बयान में कहा गया है कि ज्वार, बाजरा, कपास, खरबूजा और बागवानी वाले फसलों में इसके इस्तेमाल के परिणाम परिवर्तनकारी रहे हैं। किसानों और उत्पादकों की साझेदारी से इस मिशन को आईसीआरआईएसएटी जीन बैंक के साथ जर्मप्लाज्म व जेनेटिक स्टडीज और आईसीआरआईएसएटी की परीक्षण क्षमताओं का उपयोग करके फसल जीवन चक्र के विभिन्न चरणों में विभिन्न प्लाज्मा अनुप्रयोगों के साथ प्रौद्योगिकी परीक्षणों और रियल-वर्ल्ड फील्ड प्रूफ ऑफ कॉन्सेप्ट (पीओसी) से सक्षम बनाया जाएगा। प्लाज्मा वाटर्स तकनीक में हवा, पानी और बिजली के इस्तेमाल से प्लाज्मा युक्त वाटरटीएम इन-सीटू में बदला जाता है और प्लाज्मा चैंबर के जरिये उसे किसी भी स्रोत से निरंतर प्रवाह कराया जाता है। प्लाज्मा-युक्त पानी रोगमुक्त होता है। इसमें कुछ प्रतिक्रियाशील ऑक्सीजन और नाइट्रोजन प्रजातियां होती हैं जो बीजों और पौधों में प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ाती हैं। अमेरिका में बड़े पैमाने पर इसका परीक्षण किया गया है जो सफल रहा है। परीक्षण में पता चला है कि प्लाज्मा-युक्त पानी पौधों में बेहतर और तेज विकास, जड़ों को गहरा बनाने, रोग प्रतिरोध और तनाव सहनशीलता के स्तर को सक्षम बनाता है।
प्लाज्मा वाटर सॉल्यूशंस के अध्यक्ष और सीईओ रॉबर्ट हार्ड्ट ने इस एमओयू पर खुशी जताते हुए कहा, “हम दुनिया में दूसरी स्थायी हरित क्रांति लाने और भावी पीढ़ियों के लिए खाद्य सुरक्षा में सार्थक योगदान देने के अपने दृष्टिकोण को साकार करने के लिए आईसीआरआईएसएटी के साथ एक उल्लेखनीय यात्रा शुरू कर रहे हैं। चिली के हमारे संस्थापक अल्फ्रेडो ज़ोलेज़ी ने इस दृष्टि के साथ वर्षों पहले जो अभियान शुरू किया था वह सार्थक रूप ले रहा है। आईसीआरआईएसएटी जैसे समान विचारधारा वाले संगठनों द्वारा इसे अच्छी तरह से प्राप्त और समर्थित किया जा रहा है। हमारी योजना संयुक्त रूप से पहले भारत और फिर बाकी दुनिया के विभिन्न शुष्क भूमि वाले फसलों में अवसरों का पता लगाने की है। हम भारत, एशिया और अफ्रीका में अपने कार्यक्रमों में आईसीआरआईएसएटी का समर्थन करने के लिए अपनी तकनीक का उपयोग करने के विभिन्न तरीकों का अध्ययन करेंगे और इस क्षेत्र में किसानों के लिए लाभकारी मूल्य प्रस्तावों के निर्माण में इस ज्ञान को स्थानांतरित करेंगे।"
आईसीआरआईएसएटी के महानिदेशक डॉ. जैकलिन ह्यूजेस ने कहा कि प्लाज्मा वाटर्स और उनकी तकनीक के साथ सहयोग आईसीआरआईएसएटी और उसके भागीदारों द्वारा शुष्क भूमि को बदलने के लिए परीक्षण किए जा रहे नए नवाचारों का उदाहरण है। उन्होंने कहा, “इस नई तकनीक में बाजरा और अन्य शुष्क भूमि की फसलों की खेती में काफी सुधार करने की क्षमता है, खासकर भारत और उप-सहारा अफ्रीका के क्षेत्रों में जहां घटती पैदावार चिंता का कारण है। शुष्क भूमि के संदर्भ में और अधिक परीक्षण किए जाने की आवश्यकता है। मैं खाद्य सुरक्षा में सुधार के लिए प्लाज्मा वाटर्स की प्रतिबद्धता की सराहना करता हूं और कृषि उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए हमारे सहयोग की आशा करता हूं।”
प्लाजमा वाटर्स इंडिया की प्रबंध निदेशक प्रज्ञा कालिया ने कहा, “मानसून पर 60 फीसदी से अधिक किसान निर्भर हैं, जबकि 1-2 एकड़ जोत वाले 90 फीसदी से अधिक छोटे और सीमांत किसान हैं। इनमें से अधिकांश नवीनतम तकनीक का इस्तेमाल नहीं कर पाते हैं। हम इन्हें अपनी रणनीति के केंद्र में रखते हुए बिजनेस मॉडल तैयार करने का इरादा रखते हैं।"