शुद्ध फल-सब्जियां शहरों के लिए तो दुर्लभ हैं ही अब आने वाले समय में गांवों के लिए भी ये मुश्किल हो जाएंगी, क्योंकि खेती लायक ज़मीन पर आबादी का दबाव लगातार बढ़ता जा रहा है। इस समस्या से निपटने का एक उपाय है हाइड्रोपोनिक यानी जलीय खेती। सेंटर फॉर प्रोटेक्शन कल्टीवेसन टेक्नोलॉजी आईआरएआई पूसा के प्रिंसिपल साइंटिस्ट डॉ मुर्तजा हसन ने रूरल वॉयस के साथ चर्चा में हाइड्रोपोनिक खेती के बारे में जानकारी दी। इस शो को आप ऊपर दिए गए वीडियो लिंक पर क्लिक करके देख सकते हैं।
डॉ मुर्तजा हसन ने बताया कि हाइड्रोपोनिक खेती बिना मिट्टी के की जाती है। इस तकनीक में पौधे के लिए जरूरी पोषक तत्व पानी के माध्यम से दिए जाते हैं जो घुलनशील होते हैं। मिट्टी के स्थान पर अन्य एग्रीगेट जैसे कोकोपीट निष्क्रिय मीडिया का इस्तेमाल किया जाता है। इस तकनीक में पौधों को एक मल्टी लेयर फ्रेम के सहारे टिके पाइप में उगाया जाता है। इनकी जड़ें पाइप के अंदर पोषक तत्वों से भरे पानी में छोड़ दी जाती हैं। इस फार्मिंग की खास बात यह है कि इस तकनीक के जरिए ट्रेडिशनल खेती की तुलना में 20 से 25 गुना ज्यादा पैदावार मिलती है।
इसमें पोषक तत्व घुले पानी को पौधों तक एक पाइप के द्वारा पहुंचाया जाता है। नियमित अंतराल पर पौधों को पानी देने के लिए एक हाइड्रोपोनिक पंप लगाया जाता है। स्थान की उपलब्धता और अन्य प्राथमिकताओं के अनुसार अन्य मॉड्यूल जैसे ज़िग-ज़ैग, रेन टावर मॉड्यूल आदि के साथ भी काम कर सकते हैं। ये खेती बहुमंज़िली इमारतों में, घरों के अंदर, छतों पर यानी शहरों में आसानी से की जा सकती है। जहां खेती योग्य ज़मीन नहीं है, वहां भी लोग इस विधि से फल और सब्जियां उगा रहे हैं।
डॉ हसन के अनुसार हाइड्रोपोनिक तकनीक में पंप के जरिए इन तक काफी कम मात्रा में पानी पहुंचाया जाता है। इस पानी में पोषक तत्व पहले ही मिला दिए जाते हैं। अगर कमरे में खेती करते हैं तो एलइडी बल्बों से कमरे में रौशनी की जाती है। इस प्रणाली में मिट्टी की जरूरत नहीं होती। इस तरह से उगाई गई सब्जियां और फल, खुले खेतों में ली गई उपज की तुलना में ज्यादा पोषक और ताजा होते हैं। एक अंदाज़ा है कि एक साल में 1000 स्क्वॉयर फीट में 35 से 40 टन तक फल और सब्ज़ियां उगाई जा सकती हैं। अगर ये खेती छत पर की जाती है, तो इसके लिए तापमान को नियंत्रित करना होता है। हाइड्रोपोनिक तकनीक में कम कार्बन उत्सर्जन के साथ 80-90 प्रतिशत जल की बचत होती है। पारम्परिक खेती में जितनी पानी की जरूरत होती है उतने ही पानी में हाइड्रोपोनिक तकनीक से 30 गुना अधिक फसल उगा सकते हैं।
डॉ हसन के अनुसार जब वर्टिकल फार्मिग और हाइड्रोपोनिक खेती को मिलाया जाता है तब इसके परिणाम अधिक प्रभावी होते हैं और लागत भी कम हो सकती है। इसके लिए शेड नेट, पॉलीहाउस, नेटहाउस में खेती की जा सकती है। 1000 वर्ग मीटर की संरचना के लिए लगभग एक लाख रुपए का खर्च आता है। यह तकनीक पत्ते वाली सब्जियां, ककड़ी, टमाटर, शिमला मिर्च, मिर्च और फ्रेंच बीन्स जैसी बेल की फसल उगाने के लिए काफी बेहतर और फायदेमंद होती है।
ग्रेटर नोएडा के युवा किसान आदित्य भल्ला जिन्होंने लगभग चार साल पहले से हाइड्रोपोनिक खेती अपनाई, उन्होंने इसके फायदे बताते हुए कहा कि 550 वर्ग मीटर एरिया से 45 दिन में 1000 किलो से लेकर 1500 किलो सब्जियों का उत्पादन लिया सकता है। भल्ला ने बताया कि, वह कलर्ड शिमला मिर्च, खीरा, पाचकोई उगाकर उसे पैकेट में पैक करके बेचते और लाभ कमाते हैं।