तेलंगाना में हुए एक नए अध्ययन में सामने आया कि मानसून के सटीक पूर्वानुमान किसानों को बेहतर निर्णय लेने में मददगार साबित होते हैं और इससे उन्हें जलवायु परिवर्तन के अनुकूल ढलने में मदद मिलती है।
तेलंगाना के दो जिलों मेडक और महबूबनगर में यह अध्ययन यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो के एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट द्वारा कराया गया। अध्ययन से पता चलता है कि जब किसानों को मानसून के बारे में सटीक पूर्वानुमान उपलब्ध कराए जाते हैं तब वे खेती के संबंध में बेहतर निर्णय ले पाते हैं। इस प्रकार मौसम के बेहतर पूर्वानुमानों से किसानों को जलवायु परिवर्तन के अनुकूल ढलने में मदद मिल सकती है।
भारत सहित दुनिया के तमाम देश मौसम पूर्वानुमान में सुधार कर अपनी अर्थव्यवस्था को जलवायु परिवर्तन के नुकसान से बचा सकते हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम में बहुत ज्यादा बदलाव हो रहे हैं, जिससे कृषि पर निर्भर दुनिया के अधिकांश गरीबों की आजीविका खतरे में पड़ रही है। भारत में हुए एक नए अध्ययन से पता चलता है कि किसानों को सटीक मौसम पूर्वानुमान किसानों को यह तय करने में मदद कर सकता है कि किस फसल की कितनी बुआई करनी है या इस मौसम बुआई करनी भी है अथवा नहीं।
इस अध्ययन की सह लेखिका फाओना बर्लिग हैरिस स्कूल ऑफ पब्लिक पॉलिसी में सहायक प्रोफेसर और शिकागो विश्वविद्यालय के भारत कार्यालय में एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट की डिप्टी फैकल्टी डायरेक्टर हैं। वे कहती हैं, "किसान मौसम के अनुमानों के मुताबिक फसल की बुआई संबंधी फैसले करते हैं। दुनिया के कई हिस्सों में ऐसा मानसून के अनुमानों के आधार पर किया जाता है। लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण मानसून और अन्य मौसम पैटर्न की भविष्यवाणी करना कठिन होता जा रहा है। हमारे अध्ययन में पाया गया है कि नए पूर्वानुमान बदलते जलवायु परिवर्तन के बावजूद सटीक मानसून भविष्यवाणी करने में सक्षम हैं। किसान इन पूर्वानुमानों पर ध्यान देते हैं और इसके मुताबिक बुआई संबंधी अपने फैसलों को बदलने में सक्षम होते हैं। इस प्रकार ऐसे पूर्वानुमान कृषि क्षेत्र के लिए बदलते मौसम का सामना करने वाले महत्वपूर्ण जलवायु अनुकूलन उपकरण बन जाते हैं।"
बर्लिग और इस अध्ययन में शामिल शिकागो विश्वविद्यालय के उनके सह-लेखकों अमीर जीना, एरिन केली, ग्रेगरी लेन और हर्षिल सहाय ने भारत के तेलंगाना राज्य के 250 गांवों के किसानों के बीच यह अध्ययन किया। इसमें उन्होंने देखा कि मानसून सीजन शुरू होने से पहले (कम-से-कम 4-6 सप्ताह पहले) अत्यधिक सटीक पूर्वानुमान उपलब्ध कराए जाने पर इन किसानों ने खेती से जुड़े फैसलों में क्या-क्या बदलाव किए। किसानों की नजर में पूर्वानुमानों की विश्वसनीयता बढ़ाने के लिए, शोधकर्ताओं ने हैदराबाद स्थित अंतर्राष्ट्रीय अर्ध-शुष्क उष्णकटिबंधीय फसल अनुसंधान संस्थान (आईसीआरआईएसएटी) के साथ साझेदारी की।
तेलंगाना के मेदक और महबूबनगर जिलों में शोधकर्ताओं ने पाया कि मानसून के पहुंचने संबंधी किसानों की भविष्यवाणियों में बहुत ज्यादा भिन्नताएं थीं। ज्यादा आशावादी किसानों का मानना था कि ज्यादा निराशावादी किसानों की तुलना में मानसून लगभग 2.5 सप्ताह पहले आएगा। फिर, उन्हें ज्यादा सटीक पूर्वानुमान बताया गया तो नई जानकारी ने उनकी समझ और खेती के तरीके को बदल दिया।
अत्यधिक आशावादी किसानों के लिए पूर्वानुमान "बुरी खबर" लेकर आया क्योंकि इसने बुवाई सीजन उम्मीद से छोटा रहने की भविष्यवाणी की। ऐसे किसानों ने अपने निवेश और खर्च में कटौती की। जमीन के लगभग एक चौथाई हिस्से पर खेती नहीं की और लगभग एक तिहाई कम उर्वरक खरीदा। हालांकि पहले के मुकाबले कम खेती के कारण इन किसानों की उपज, बिक्री और मुनाफे पर असर पड़ा, लेकिन इन किसानों ने आमदनी के अन्य तरीके भी खोजने शुरू कर दिए। पूर्वानुमान प्राप्त करने वाले सात में से चार किसानों ने नया गैर-कृषि व्यवसाय शुरू किया और एक समूह के रूप में उन्होंने अपना कर्ज आधा कर लिया जिससे प्रति किसान करीब 46 हजार रुपये से अधिक की शुद्ध बचत हुई और उनका व्यवसाय से होने वाला मुनाफा लगभग दोगुना हो गया। दूसरे शब्दों में, लाभहीन खेती करने के बजाय वे अपनी गतिविधियों में विविधता लाने में सक्षम हुए और पूर्वानुमान की जानकारी से इन किसानों की स्थिति बेहतर हुई।
अत्यधिक निराशावादी किसानों के लिए पूर्वानुमान "अच्छी खबर" लेकर आया कि खेती का मौसम उम्मीद से अधिक लंबा रहेगा। इन किसानों ने अपने निवेश और खर्च में वृद्धि की। उन्होंने 15 प्रतिशत ज्यादा जमीन पर खेती की और उनके द्वारा नई और नकदी फसलों की खेती करने की संभावना बढ़ गई। इससे कृषि उत्पादन में 22 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई।
हैरिस स्कूल ऑफ पब्लिक पॉलिसी के सहायक प्रोफेसर और इस अध्ययन के सह-लेखक ग्रेगरी लेन कहते हैं, "हमने यह पाया है कि ज्यादा सटीक पूर्वानुमान के आधार पर किसान अपने निवेश में वृद्धि करते हैं और समृद्ध किसानों से अर्थव्यवस्था बेहतर होती है। देशों के पास मौसम पूर्वानुमानों को बेहतर कर अपने किसानों और उनकी आर्थिक स्थिति को जलवायु परिवर्तन की अनिश्चितता से बचाने में मदद करने का बड़ा मौका है।"
शोधकर्ताओं ने इस बात की भी जांच-पड़ताल की कि पूर्वानुमान की जानकारी के बजाय किसानों को बीमा देने, जिसे भारत सरकार द्वारा अत्यधिक प्रचारित किया जाता है, से उनके खेती के तौर-तरीकों में क्या बदलाव आएगा।