भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने सेंट्रल स्वॉयल सेलिनिटी रिसर्च सेंटर ( सीएसएसआर) लखनऊ द्वारा बनाई गई जैव फार्मुलेशन टेक्नीक हेलो- मिक्स को एक प्रौद्योगकी समौझते के अनुसार इसकी टेक्नीक का ट्रांसफर एग्रीइनोवेट इंडिया नई दिल्ली के माध्यम से श्री बायोऐस्थेटिकस प्रा लिमिटेड हैदराबाद को उत्पादन और मार्केटिंग के लाइसेंस के लिए किया गया है 26 अगस्त 2021 को इस तकनीक का ट्रांसफर सेंट्रल स्वॉयल सेलेनिटी रिसर्च इंस्टीटयूट करनाल डायरेक्टर के उपस्थिति में वीडियो काफ्रेसिंग के माध्यम से जैव फार्मुलेशन तैयार करने वाले सीएसएसआर लखनऊ के कृषि डॉ सजय अरोरा और डॉ यशपाल सिंह द्वारा श्री बायोऐस्थेटिकस प्रा लिमिटेड हैदराबाद डायरेक्टर के. आर के रेड्डी को किया गया।
बीते कई सालों से सीएसएसआर लखनऊ के वैज्ञानिकों ने ऊसर भूमि सुधार के लिए जिप्सम के विकल्प के तौर पर ऊसर सुधार के लिए काम कर रहे थे। क्योकि ऊसर भूमि के लिए बहुत अधिक जिप्सम की जरूरत होती वही बहुत अधिक समय लगता है। इस बात को केन्द्रित करके ऊसर मिट्टी वाले परजीवी जीवाणु और पौधों के बढ़वार में सहायक जीवाणु की खोज करके जैव फार्मुलेशन तैयार किया है । जिसका नाम दिया है हेलो- मिक्स इस जैव फार्मुलेशन में एक निश्चित सख्यां में जीवाणु होते है, जो वतावारण से नाइट्रोजन अवशोषित कर पौधों को पहुंचाते है।जिससे पौधे की बढ़वार होती है। वही दूसरी तरफ यह जीवाणु जमीन में पड़े फास्फोरस को धुलनशील बनाते है जो पौधे के वृद्धि में सहायक होते है। इस जैव फार्मुलेशन के जीवाणु जमीन में पड़े अघुलनशील खनिज तत्व को भी घुलनशील तत्व में बदल कर पौधों को पहुंचाते है
भारत में लगभग 67 लाख हेक्टेयर भुमि लवणगस्त है जिसमें उत्तर प्रदेश में 13.7 लाख हेक्टेयर भूमि ऊसर है । ऊसर मृदा को सामन्यता जिप्सम के जैविक संशोधन से सुधारा जाता है खनिज जिप्सम एंव जैविक खाद की उपलब्धता बहुत ही कम है। भारतीय कृषि में रासायनिक और कीटनाशकों के अंधाधुध इस्तेमाल और मोनो क्रापिग के परिणाम स्वरुप मृदा स्वास्थय में निरन्तर ह्रास होने के कारण उत्पादकता एंव उत्पादन में निरंतर गिरावट आ रही है । लेकिन परजीवी वैक्टिरिया का इस्तेमाल कर ऊसर मृदा का सुधार कर अधिक उपज ली जा सकती है ऐसा कहना सेंट्रल स्वॉयल सेलिनिटी रिसर्च सेंटर ( सीएसएसआर) लखनऊ के कृषि वैज्ञानिक है डॉ संजय अरोडा का जिन्होंने बॉयोफॉर्मूलेशन हेलो- मिक्स की तकनीक बनाई है। उनका कहना है कि लवण पर दूसरे प्रजाति के जीवाणु कम असरदार होती है वही सोडिक मिट्टी पर परजीवी जीव ऊसर भूमि को सुधार कर उपजाऊ बना देते है। जिससे रासायनिक उर्वरकों को इस्तेमाल में कटौती की जा सकती है।उनका कहना है इस जैव फार्मुलेशन के इस्तेमाल से कम लागत में भूमि सुधार कर अच्छी उपज ली जा सकती है ।।
सीएसएसआर लखनऊ का कहना है कि, इसके इस्तेमाल से ऊसर में धान गेहूं, सब्जी फसल और चारा फसलों में 15 से 20 किलोंग्राम नाइट्रोजन 10 से 15 किलोंग्राम फास्फोरस और 2 से 4 किलों जिंक की प्रति हेक्टेयर की बचत होती है। डॉ अरोरा के अनुसार हेलो- मिक्स जैव फार्मुलेसन के इस्तेमाल से धान की फसल से 11 फीसदी और गेहूं की फसल से में 14 फीसदी तक की उपज में बढ़ोतरी देखी गई है।
संस्थान का कहना है कि पिछले 6 साल से उत्तर प्रदेश ऊसर प्रभावित जिले लखनऊ, राय बरेली , सीतापुर इटावा आगरा , सुल्तानपुर प्रतापगढ़. कौशाम्बी,और हरदोई जिलों के 1400 एकड़ जमीन पर किसानों ने इसका इस्तेमाल कर धान गेहूं, सरसो, मटर, सब्जी फसलों में लाभ प्राप्त किया है । संस्थान ने इसका इस्तेमाल पश्चिम बंगाल , गुजरात के किसानों खेतों में किया इससे उनको लाभ मिला है । हेलो-मिक्स जैव फ़ॉर्मूलेशन इस मिली सफलता के बाद इस तकनीक को एग्रीइनोवेट इंडिया नई दिल्ली के माध्यम से श्री बायोऐस्थेटिकस प्रा लिमिटेड हैदराबाद को उत्पादन और मार्केटिंग के लाइसेंस के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने अनुमोदित किया है.।