जे पी सिंह
आए दिन देश के गन्ना किसानो का सामना ऐसी समस्याओं से होता रहता हैं जिसके कारण खेती पर खर्च बढ़ता जा रहा है जबकि उपज और कमाई का दायरा सिमटता जा रहा है । ऐसे में किसान आखिर करे तो क्या करें ? क्या किसान पुरानी पद्धतियो से गन्ने की खेती से उचित लाभ ले पायेगे ? यह एक गंभीर प्रश्न है, क्योंकि अपने देश मे गन्ना किसानों के लिए मुख्य समस्या है गन्ने की समय से बुवाई ना हो पाना । अधिक लागत और कम उत्पादन के चलते गन्ना की खेती का क्षेत्रफल घट रहा है । इन सब समस्यों से निजात पाने के लिए पुरानी तकनीक को दर किनार कर नई तकनीकों से खेती करनी होगी । उत्तर भारत में गन्ने की सबसे अधिक बुआई बसंतकाल में होती है। यानी मार्च का महीना, कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार ये समय, गन्ने की बुआई के लिए बेहद अनुकूल होता है । लेकिन अधिकतर किसान गन्ने की बुवाई गेहूं की कटाई के बाद अप्रैल और मई के महीने में गन्ने की बुवाई करते हैं जिससे गन्ने की बढ़वार के लिए कम समय मिलता है जिसके कारण उपज कम मिलती है। मगर किसान एस. एस. आई मेथड यानि बड चिप टेक्नीक से गन्ने की खेती करता है तो कम बीज दर में समय से बुवाई कर ज्यादा लाभ कमा सकता है ।
गन्ना की बड चिप नर्सरी तकनीक
श्रीराम लिमिटेड शुगर यूनिट, लोनी ,ज़िला हरदोई, उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त महाप्रबंधक (गन्ना) अतिउल्लाह सिद्दिकी बताते हैं कि गन्ना किसानों को मेहनत शुरू से करनी होती है ,जिसमें पहली प्रक्रिया होती है खेतों में बीज डालना.इसमें ज्यादातर किसान गन्ने की तीन आंख या दो आंख के बीज बोते है । ज़ाहिर है इससे किसानों के गन्ने का ज्यादातर हिस्सा इसमें खर्च होता है । परिणाम स्वरूप लागत बढ़ती है और अच्छे उत्पादन की भी गारंटी भी नहीं है । सिद्दिकी के अनुसार बड चिप टेक्नीक में पहले गन्ने की नर्सरी उगाते है । इसके लिए सबसे पहले मशीन से गन्ने का बड यानी आंख निकालते हैं । इसके बाद बड को उपचारित कर इस उपचारित बड को प्लास्टिक ट्रे के बने खानो में रखते हैं । इस ट्रे के खानों को वर्मी कम्पोस्ट या कोकोपिट से भरते है । अगर वर्मी कम्पोस्ट और कोको पिट उपलब्ध नही हैं तो सड़ी हुई पत्तियों का इस्तेमाल करते हैं ।इसके बाद बड की बुवाई करने के बाद समय समय पर फब्बारे से हल्की सिंचाई करते हैं और जब गन्ना नर्सरी की पौध चार से पांच सप्ताह की हो जाती है , तब ट्रे से नर्सरी पौध को सावधानी पूर्वक निकाल कर खेत में उचित दूरी पर रोपण करते है ।
पुरानी विधि से कैसे है बेहतर बड चिप तकनीक
इस विधि में तीन आंख वाली गुल्लियों की तुलना मे इसमें अन्तर देखा जाय तो पुरानी विधि में 25 से 30 कुन्तल गन्ना बीज की जरूरत पड़ती है । जबकि बड चिप विधि में एक एकड़ खेत में 80 से 100 किलों गन्ना बीज की जरुरत है । दूसरी तरफ अगर गेहूं की कटाई के बाद गन्ने की बुवाई करनी है तो इस विधि से नर्सरी उगाकर गन्ने की देर से बुवाई होने वाले नुकसान से बचा जा सकता है। सिद्दीकी का कहना है कि बड चिप तकनीक से गन्ना एक निश्चित दूरी पर रोपण किया जाता है जिसमें किसान गन्ने के बीच मे अन्तरासस्य फसले जैसे दलहनी, तिलहनी, सब्जी और नगदी फसले आसानी से उगाकर अतिरक्त लाभ ले सकता है ।
गन्ना किसानों लाभ के साथ बिजनेस का अवसर
मध्य प्रदेश के बुरहानपुर के रहने वाले युवा किसान शुभम पाठक गन्ने की इस नई तकनीक से नर्सरी पौध तैयार कर दूसरे किसानों के लिए गन्ने की खेती को आसान बना दिया है और अपने लिए एक बिज़नेस बना लिया है । इसी का नतीजा है कि इस फसल के ज़रिए ना केवल वह मुनाफा कमा रहे हैं बल्कि दूसरे किसानों को सहायता भी पहुंचा रहे है ।सुभाष पाठक बताते है कि बड चिप मशीन के ज़रिए मिनटों में आप कई एकड़ खेत के लिए बीज तैयार सकते हैं ।. इस तकनीक से गन्ने की एक पौध तैयार करने में महज एक रुपये बीस पैसे की लागत आती है ,और दो रुपए तीस पैसे में वो एक पौधा किसानों को बेच देते हैं । इससे उन्हे लगभग 8 से10 लाख रुपया का मुनाफा होता है। वह कहते हैं किसानों इस तकनीक से पूरानी तकनीक के तुलना मे एक एकड़ में लगभग 8 से 10 हजार रुपये की बचत होती है ,दूसरी तरफ किसानों स्वस्थ गन्ना और अधिक उपज मिलती हैं जिससे प्रति एकड़ गन्ने की खेती से ज्यादा लाभ मिलता है।