गुजरात में खाद्य तेल और तिलहन से जुड़े व्यापारियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर खाद्य तेलों के जरूरत से ज्यादा आयात पर चिंता जताई है। गुजरात राज्य खाद्य तेल और तिलहन संघ के अध्यक्ष समीर शाह ने पीएम मोदी को लिखे पत्र में कहा है कि खाद्य तेल आयात हमारी वास्तविक कमी से कहीं अधिक है। संगठन ने सरकार के कई निर्णयों पर निराशा जाहिर करते हुए संकटग्रस्त घरेलू खाद्य तेल उद्योग के लिए राहत पैकेज की मांग की है।
पत्र में लिखा है कि जब नरेंद्र मोदी ने 2014 में देश के प्रधान मंत्री का पद संभाला, तो वह इस मुद्दे पर बहुत गंभीर और निर्णायक थे। सरकार ने खाद्य तेलों के आयात को कम करने के लिए बहुत सख्त कदम उठाए। जिसके परिणामस्वरूप हमारा वार्षिक खाद्य तेल आयात लगभग 15 लाख टन कम हो गया। (लगभग 145 से 146 लाख टन से लगभग 131 लाख टन तक)
पत्र के मुताबिक, वर्ष 2022 में यूक्रेन/रूस युद्ध छिड़ने और इंडोनेशियाई सरकार के कुछ गलत कदमों के कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में खाद्य तेलों की कीमतों में भारी वृद्धि हुई। इससे हमारे देश में भी खाद्य तेलों की दरों में तीव्र वृद्धि देखी गई। इसके कारण सरकार ने खाद्य तेल आयात के लिए मानदंडों और कानूनों में ढील दी। अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में मूल्य वृद्धि एक अस्थायी घटना थी। दो-तीन महीने की अवधि में ही पूरी दुनिया में दरें कम होने लगीं। लेकिन विभिन्न घरेलू खाद्य तेल संघों के बार-बार अनुरोध के बावजूद, केंद्र सरकार ने खाद्य तेलों के आयात पर प्रतिबंध नहीं लगाया।
इसके परिणामस्वरूप हमारे देश की कई रिफाइनर कंपनियों और खाद्य तेलों के लगभग पूरे व्यापारिक प्रतिष्ठानों को भारी नुकसान हुआ। अंतरराष्ट्रीय और घरेलू बाजार में खाद्य तेलों की दरें लगभग 50% कम हो गईं। लेकिन फिर भी केंद्र सरकार ने उच्च आयात नीति जारी रखी। इसलिए हमारे खाद्य तेलों के आयात में वृद्धि हो रही। हमने नवंबर, 2022 से अक्टूबर, 2023 तक खरीफ वर्ष के दौरान अब तक के सर्वाधिक 165 लाख टन खाद्य तेलों का आयात किया।
संकट में सोयाबीन के किसान, एमएसपी से नीचे गिरे दाम
गुजरात खाद्य तेल संघ का कहना है कि किसानों को बढ़ती उत्पादन लागत से बचाने के लिए सरकार ने घरेलू तिलहनों के एमएसपी में तेजी से वृद्धि की। इससे हमारे उत्पाद (घरेलू तिलहनों से उत्पादित खाद्य तेल) सस्ते आयातित खाद्य तेलों के मुकाबले प्रतिस्पर्धी नहीं रह गए और घरेलू खाद्य तेल उत्पादकों को पिछले कुछ वर्षों में भारी नुकसान हुआ है। देश में खाद्य तेलों के व्यापार से जुड़े आयातकों, रिफाइनरों, क्रशिंग इकाइयों और व्यापारियों से लेकर लगभग सभी को पिछले कुछ वर्षों में अत्यधिक नुकसान हुआ है और पूरा उद्योग संकट में है।
संघ का कहना है कि सरकार द्वारा उठाए गए कुछ अन्य दोषपूर्ण कदमों से संकट और गहरा गया है। सोयाबीन केक के आयात से घरेलू तिलहन की पेराई प्रभावित हुई। इसके परिणामस्वरूप सरसों और सोयाबीन के बीज का बहुत बड़ा स्टॉक जमा हो गया है। इसने घरेलू किसानों और उद्योग को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचाया है। इसके अलावा लगभग दो वर्षों से वित्त मंत्रालय ने खाद्य तेलों की पैकिंग इकाइयों द्वारा जमा किए गए जीएसटी इनपुट क्रेडिट का रिफंड देना बंद कर दिया है।
गौरतलब है कि खाद्य तेलों पर जीएसटी 5% है और खाद्य तेल उद्योग में उपयोग की जाने वाली लगभग सभी पैकिंग सामग्री, मशीनरी, स्पेयर पार्ट्स पर 18% जीएसटी लगता है। इसलिए खाद्य तेल उद्योग की लगभग सभी पैकिंग इकाइयों ने भारी मात्रा में अप्रयुक्त जीएसटी इनपुट क्रेडिट जमा कर लिया है। इससे इस उद्योग की कार्यशील पूंजी में भारी कमी आई है।
सरसों का भाव एमएसपी से 900 रुपये तक गिरा, किसानों को सरकारी खरीद का इंतजार
इन सभी कारकों का खाद्य तेल व्यापार उद्योग के कामकाज पर प्रभाव पड़ा है। ऐसी कई इकाइयाँ और प्रतिष्ठान बंद हो गए हैं और कई अन्य आधी क्षमता पर चल रहे हैं। इसके परिणामस्वरूप कई श्रमिकों को अपनी नौकरियाँ खोनी पड़ीं। कई तिलहन उत्पादक किसान अपनी उपज बेचने में सक्षम नहीं हैं जिसके परिणामस्वरूप घरेलू तिलहनों का भारी अप्रयुक्त स्टॉक पड़ा हुआ है।
गुजरात राज्य खाद्य तेल और तिलहन संघ ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अनुरोध किया है कि खाद्य तेल के आयात पर अंकुश लगाने के लिए तत्काल उपाय करें और संकट से जूझ रहे घरेलू तेल उद्योग को ब्याज माफी और कच्चे माल की खरीद के बजाय विभिन्न सरकारी एजेंसियों द्वारा तैयार माल की खरीद जैसी कुछ छूट और राहत दें। संघ ने लोकसभा चुनाव का जिक्र करते हुए भाजपा के चुनाव घोषणापत्र में घरेलू खाद्य तेल उद्योग के लिए राहत पैकेज को भी शामिल करने की भी मांग की है।