गोविंदपुर थांडा (तेलंगाना)।
सामान्य किस्म के टोंड दूध में 11.5% सॉलिड होता है। इसमें भी 3% फैट और 8.5% एसएनएफ (सॉलिड-नॉट-फैट) रहता है। फुल क्रीम दूध में सॉलिड की मात्रा 15% (6% फैट, 9% एसएनएफ) होती है। लेकिन ‘असली’ आइसक्रीम के लिए दूध में सॉलिड की मात्रा काफी ज्यादा 21% होती है। इसमें 10% फैट और 11% एसएनएफ रहता है। इस तरह आइसक्रीम और कुछ नहीं बल्कि कंसेंट्रेटेड दूध होता है। बच्चों को इसे खिलाने के लिए जोर-जबरदस्ती नहीं करनी पड़ती है। इसलिए आपको आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि देश में असली आइसक्रीम बनाने वाली कंपनियां, जो फ्रोजन डेजर्ट में वनस्पति तेलों की जगह मिल्क फैट का प्रयोग करती हैं, वे वास्तव में डेयरी कंपनियां हैं। आइसक्रीम सबसे अधिक वैल्यू एडेड और संभवतः सबसे स्वादिष्ट दुग्ध उत्पाद है।
हैटसन एग्रो प्लांट के बाहर का दृश्य।
निजी क्षेत्र की सबसे बड़ी डेयरी कंपनी हैटसन एग्रो प्रॉडक्ट लिमिटेड ने देश का पहला और सबसे एडवांस टेक्नोलॉजी आधारित आइसक्रीम प्लांट स्थापित किया है। इसकी उत्पादन क्षमता प्रतिदिन दो लाख लीटर आइसक्रीम की है। यह प्लांट तेलंगाना के संगारेड्डी जिले की जहीराबाद तालुका के गोविंदपुर थांडा गांव में है। इसे लगाने में 600 करोड़ रुपए का खर्च आया है। हैटसन एग्रो प्रॉडक्ट का 31 मार्च 2024 को खत्म हुए वित्त वर्ष में राजस्व 7246.97 करोड़ रुपए था। इसके दो और आइसक्रीम प्लांट हैं। दोनों तमिलनाडु में हैं- एक सलेम जिले के करुमापुरम में और दूसरा चेन्नई के पास नल्लूर में। उनकी क्षमता क्रमशः 90 हजार लीटर और 40 हजार लीटर रोजाना की है। रूरल वर्ल्ड से बातचीत में हैटसन एग्रो के चेयरमैन आर.जी. चंद्रमोगन कहते हैं, “यह न सिर्फ हमारा सबसे बड़ा बल्कि तकनीकी रूप से सबसे एडवांस आइसक्रीम प्लांट है।” कुल 119 एकड़ के परिसर में यह प्लांट 20 एकड़ में फैला है। इस परिसर में 30 एकड़ में आम के बगीचे और 5 एकड़ में गन्ने के खेत के साथ काफी हरित क्षेत्र है।
चंद्रमोगन कहते हैं, “हमारे सलेम प्लांट में रोजाना 70 हजार लीटर आइसक्रीम बनाने के लिए 900 कर्मचारी काम करते हैं, लेकिन इस प्लांट में प्रतिदिन दो लाख लीटर आइसक्रीम का उत्पादन होता है और कर्मचारियों की संख्या सिर्फ 500 है।” 74 साल के चंद्रमोगन ने 1970 में पहली फैक्ट्री लगाई थी। वह चेन्नई के रोयापुरम में 125 वर्ग फुट में थी। उसमें 5 लीटर का बैच फ्रीजर था, जिसमें एक दिन में सिर्फ 10 हजार आइस कैंडी बनाए जा सकते थे।
तेलंगाना के गोविंदपुर थांडा स्थित अपने प्लांट में हैटसन एग्रो के चेयरमैन आर.जी. चंद्रमोगन।
आज हैटसन एग्रो गुजरात कोऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन (अमूल) के बाद देश की दूसरी सबसे बड़ी आइसक्रीम बनाने वाली कंपनी है। यह अरुण नाम से आइसक्रीम बनाती है जो काफी लोकप्रिय है। इबाको नाम से एक प्रीमियम प्रोडक्ट भी है। इन ब्रांड की बिक्री दक्षिण भारत के अलावा महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा और पश्चिम बंगाल में होती है।
इस प्लांट में दुनिया की नवीनतम तकनीक और मशीनों का इस्तेमाल किया गया है। यहां उत्पादन की लगभग सारी प्रक्रिया और यहां तक कि पैकिंग भी मशीनों और रोबोट के जरिए की जाती है। आइसक्रीम बॉक्स के कोल्ड स्टोर में पहुंचने से पहले उनको बास्केट में रखने के लिए ही कर्मचारी हाथ लगाते हैं। संयंत्र में आइसक्रीम उत्पादन करने वाली मशीनों को लंबे कनवेयर बेल्ट से जोड़ा किया गया है। इन्हें देखकर लगता है जैसे किसी बड़े स्टील प्लांट के फ्लोर के देख रहे हैं।
हैटसन एग्रो के प्लांट में कन्वेयर बेल्ट का इस्तेमाल होता है।
मिल्क पाउडर और बटर से लेकर एनहाइड्रस फैट, कोकोआ, फ्लेवर, चीनी, इमल्सिफायर और स्टेबलाइजर- ये सब कच्चे माल कम तापमान पर स्टोर में रखे जाते हैं। यहां पाश्चराइजेशन, होमोजेनाइजेशन और एजिंग की प्रक्रिया पूरी तरह ऑटोमेटेड है। इसके बाद शून्य से 5 डिग्री कम तापमान पर आइसक्रीम बनाई जाती है। स्पीड की बात करें तो एक मशीन एक घंटे में पांच रुपये वाले 43000 पीस बनाती है। एक और मशीन भी है जिसकी गति 12000 कप की है। यह सारा काम ऑटोमेटिक होता है। आइसक्रीम बनने के बाद उसे फ्रीजिंग टनल में भेजा जाता है जहां उसके तापमान में कमी की जाती है। उसके बाद कन्वेयर बेल्ट के जरिए विभिन्न प्रोडक्ट कोल्ड स्टोर में जाते हैं।
चंद्रमोगन बताते हैं कि कंपनी के इस संयंत्र में आइसक्रीम कोन बनाने वाली मशीन भी स्थापित की गई है। आइसक्रीम कोन की बिक्री तेजी से बढ़ रही है और हम कोन की गुणवत्ता बेहतर करने के लिए अपने संयंत्र में ही उनका उत्पादन कर रहे हैं। इस संयंत्र में कोन का उत्पादन कर यहीं पर उसमें आइसक्रीम फिलिंग कर प्रोडक्ट तैयार किये जा रहे हैं। इस संयंत्र में 15 हजार प्रति घंटा की दर पर कोन का उत्पादन होगा। इसके लिए कोन बेकिंग मशीन स्थापित की जा रही है। इस संयंत्र की क्षमता प्रति घंटा 27 हजार फिलिंग की है।
हैटसन एग्रो के प्लांट में लगाई गई आयायित मशीनरी।
चंद्रमोगन बताते हैं कि यह एक विश्व स्तरीय फैक्ट्री है। यहां जो नवीनतम टेक्नोलॉजी और मशीनरी का इस्तेमाल किया गया है वह भारत में और कहीं नहीं है। इस प्लांट में अनेक तरह के आइसक्रीम प्रोडक्ट बड़ी मात्रा में बनाए जा सकते हैं। इस प्लांट की क्षमता प्रतिदिन 2 लाख लीटर आइसक्रीम बनाने की है। इस प्लांट के लिए मशीनरी डेनमार्क की ग्राम इक्विपमेंट से मंगाई गई है। कोन बेकिंग की मशीनरी जर्मनी की वॉल्टर की है।
चंद्रमोगन का मानना है कि सरकार को आइसक्रीम को एलीट कंज्यूमर के बजाय आम लोगों के मिल्क प्रोडक्ट के तौर पर देखना चाहिए। यह स्वास्थ्यवर्धक के साथ स्वादिष्ट भी होता है। दूध पर तो कोई वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) नहीं लगता, लेकिन मिल्क पाउडर पर पांच प्रतिशत, मिल्क फैट (घी, मक्खन इत्यादि) पर 12% और आइसक्रीम पर 18% जीएसटी लगता है। इस तरह का कर ढांचा कृषि उपज के मूल्य संवर्धन के विचार के विपरीत है। आइसक्रीम बच्चों को दूध देने का एक बेहतर माध्यम बन सकता है। इस पर जीएसटी कम करके सरकार को इसे प्रमोट करना चाहिए।
चंद्रमोगन ने आइसक्रीम बनाने से शुरुआत की थी। उनकी कंपनी 1995 में पूरी तरह से डेयरी कंपनी बन गई जब उन्होंने आरोक्य ब्रांड के तहत दूध बेचना शुरू किया। आज हैटसन एग्रो भारत की निजी डेयरी कंपनियों में अलग स्थान रखती है। यह न सिर्फ अपने इलाके के सभी 4.5 लाख किसानों से पूरा दूध (35 लाख लीटर प्रतिदिन) खरीदती है, बल्कि कंपनी का 90% से अधिक रेवेन्यू ब्रांडेड कंज्यूमर प्रोडक्ट से आता है। इनमें आरोक्य पाउच दूध, हैटसन दही, अरुण और इबाको आइसक्रीम, हैप तथा हाविया चॉकलेट और पशुओं का चारा शामिल हैं। इस तरह हैटसन एग्रो एक वास्तव में बिजनेस-टू-फार्मर और बिजनेस-टू-कंज्यूमर कंपनी बन गई है। निजी क्षेत्र में डेयरी का बिजनेस करने वाले चंद्रमोगन पहले व्यक्ति हैं जिन्हें इंडियन डेयरी एसोसिएशन ने लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया है।