केंद्र सरकार चीनी के साथ खांडसारी उद्योग को भी अब नियंत्रण के दायरे में लाने पर विचार कर रही है। इसके लिए शुगर (कंट्रोल) आर्डर 2024 लाया जाएगा जो शुगर (कंट्रोल) आर्डर 1966 और शुगर प्राइस (कंट्रोल) आर्डर 2018 का स्थान लेगा। नये आर्डर को लागू करने की प्रक्रिया के तहत 24 अगस्त को एक ड्राफ्ट आर्डर जारी किया गया है जिस पर संबंधित पक्षों को 23 सितंबर तक राय देनी है। नये आदेश के तहत पहली बार खांडसारी उद्योग को नियंत्रण के दायरे में लाया जा रहा है। इसके लिए चीनी की परिभाषा के तहत ओपन पैन की प्रक्रिया के जरिये बनने वाली खांडसारी शुगर, बूरा और सल्फर खांडसारी को भी शामिल किया गया है।
यह आदेश लागू होता है तो उत्तर प्रदेश जैसे बड़े गन्ना उत्पादक राज्य में नये सिरे से स्थापित हो रहे खांडसारी क्रैशर उद्योग के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं क्योंकि चीनी उद्योग पर लागू होने वाले नियंत्रण उन पर भी लागू हो सकते हैं। ऐसे में आने वाले दिनों में प्रस्तावित आर्डर राजनीतिक मुद्दा बन सकता है।
केंद्रीय खाद्य मंत्रालय के तहत आने वाले डायरेक्ट्रेट ऑफ शुगर के सूत्रों ने रूरल वॉयस को बताया कि अभी तक खांडसारी उद्योग शुगर कंट्रोल आर्डर का हिस्सा नहीं था, लेकिन नये ड्राफ्ट आर्डर में 500 टन प्रतिदिन या उससे की पेराई क्षमता (टीसीडी) वाली खांडसारी इकाइयों को इसके तहत लाने का प्रस्ताव है। इसके चलते सरकार के पास अधिकार होगा कि जो नियंत्रण चीनी मिलों पर लागू हैं वह इन इकाइयों पर भी लागू किए जा सकेंगे। इसमें खांडसारी के भंडारण, परिवहन, बिक्री और मूल्य निर्धारण शामिल हो सकता है।
गन्ने की कीमत के मामले ने फेयर एंड रिम्यूनेरेटिव प्राइस (एफआरपी) का जो प्रावधान चीनी मिलों पर लागू है वह भी खांडसारी इकाइयों पर लागू हो सकता है। हालांकि, फिलहाल शुगरकेन कंट्रोल आर्डर, 1966 में कोई बदलाव नहीं किया जा रहा है इसलिए गन्ना आरक्षित क्षेत्र जैसे प्रावधान इन इकाइयों पर फिलहाल लागू होने की संभावना नहीं है। किसी भी क्षमता के पावर क्रैशर को स्थापित करने के लिए उसके ऊपर चीनी मिल से 7.5 किलोमीटर की दूरी होने का प्रावधान अभी भी लागू है। जबकि दो चीनी मिलों के बीच 15 किलोमीटर की दूरी का प्रावधान है।
चीनी उद्योग पर बढ़ेगा नियंत्रण
ड्राफ्ट शुगर (कंट्रोल) ऑर्डर 2024 के मसौदे में कहा गया है कि गन्ने से चीनी और इसके किसी भी सह-उत्पाद का उत्पादन केवल तभी किया जा सकता है जब इसके लिए लाइसेंस जारी किया गया हो और उसकी शर्तों का पालन किया जाए। फिलहाल, खांडसारी उद्योग को सरकार से लाइसेंस लेना जरूरी नहीं है। लेकिन शुगर (कंट्रोल) ऑर्डर 2024 लागू होने के बाद चीनी और सह-उत्पाद बनाने वाले क्रैशर्स को भी लाइसेंस लेना पड़ सकता है।
शुगर (कंट्रोल) ऑर्डर 2024 के जरिए केंद्र सरकार चीनी उद्योग पर नियंत्रण और रेगुलेशन का दायरा बढ़ाने का प्रयास कर रही है जिसका सबसे अधिक असर असंगठित क्षेत्र की खांडसारी इकाइयों पर पड़ेगा। यह आदेश चीनी के अलावा इसके सह-उत्पादों जैसे शीरा, एथेनॉल और बायोगैस आदि के उत्पादन के साथ-साथ इनकी बिक्री, भंडारण, पैकेजिंग और परिवहन पर भी लागू होगा।
प्रस्तावित शुगर कंट्रोल ऑर्डर के जरिए केंद्र सरकार चीनी उत्पादन के साथ-साथ चीनी और उसके सह-उत्पादों की बिक्री, भंडारण, ढुलाई और दाम निर्धारण पर नियंत्रण बढ़ाना चाहती है। इसे लेकर चीनी उद्योग की भी अपनी चिंताएं हैं। मसौदे में कहा गया है कि कोई भी उत्पादक या डीलर केंद्र द्वारा लिखित निर्देश के बिना चीनी और इसके सह-उत्पादों की बिक्री या डिलिवरी नहीं कर सकेगा। किसी को भी परमिट के बिना चीनी और इसके सह-उत्पादों के ट्रांसपोर्ट की अनुमति नहीं होगी।
खांडसारी इकइयों के लिए चुनौती
देश के सबसे अधिक गन्ना उत्पादन उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले में पिछले कुछ बरसों ने नये उद्यमियों ने टेक्नोलॉजी और निवेश के जरिये नई खांडसारी इकाइयां स्थापित की हैं। जिसे एक नये ट्रेंड के रूप में देखा जा रहा है। जिले के फुगाना में ऐसी एक गुड़ व खांडसारी यूनिट स्थापित करने वाले यशपाल मलिक ने रूरल वॉयस का बताया कि नया शुगर (कंट्रोल) ऑर्डर खांडसारी उद्योग के ऊपर सरकारी शिकंजा कस देगा जिसके चलते ग्रामीण क्षेत्रों में लाखों लोगों को रोजगार देने वाले कुटीर व लघु उद्योग का अस्तित्व संकट में पड़ जाएगा। इस आदेश का कड़ा विरोध होगा और खांडसारी उद्योग संगठित होकर सरकार को अपना विरोध दर्ज कराएगा। हम खांडसारी इकाइयों के प्रतिनिधि संयुक्त रूप से सरकार के सामने अपना पक्ष रखेंगे जिसके लिए पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश की खांडसारी इकाइयों के प्रतिनिधि एकजुट हो रहे हैं।
चीनी उद्योग की चिंताएं
वहीं चीनी उद्योग के सूत्रों ने रूरल वॉयस को बताया कि प्रस्तावित आर्डर में एथेनॉल समेत सभी सह उत्पादों से होने वाली आय को भी शामिल किया जाएगा। ऐसे में किसानों को बेहतर दाम की संभावना बनेगी। हालांकि उन्होंने कहा कि प्रस्तावित नियंत्रण आदेश के मौजूदा प्रावधानों को देखते हुए हमें लग रहा है कि सरकार चीनी उद्योग को और अधिक नियंत्रित करना चाहती है। ड्राफ्ट आर्डर पर उद्योग संगठन संयुक्त रूप से अपनी राय देंगे। इसके लिए 14 सितंबर को पुणे में संबंधित संगठनों के प्रतिनिधियों की बैठक हो रही है जिसमें उद्योग की राय को तैयार किया जाएगा।
इस बैठक में निजी क्षेत्र की चीनी मिलों के संगठन इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा), सहकारी चीनी मिलों के संगठन नेशनल फेडरेशन ऑफ कोआपरेटिव शुगर फैक्टरीज लिमिटेड (एनएफसीएसएफ), ऑल इंडिया शुगर ट्रेडर्स एसोसिएशन (आईएस्टा) और अन्य संबंधित संगठनों के प्रतिनिधि शामिल होंगे। नये आर्डर में चीनी की ट्रेडिंग करने वाले संस्थानों को भी नियंत्रण के तहत लाने का प्रस्ताव है।
उदारीकरण से यू-टर्न
करीब तीन दशक तक उदारीकरण की नीति पर चलने के बाद केंद्र सरकार अब लग रहा है कि चीनी उद्योग पर नियंत्रण बढ़ाने की तरफ कदम बढ़ा रही है। जबकि दूसरी तरफ सरकार स्वरोजगार को बढ़ावा देने और इज ऑफ डूइंग बिजनेस का दावा करती है। ऐसे में शुगर (कंट्रोल) ऑर्डर 2024 एक विरोधाभासी कदम साबित हो सकता है। प्रस्तावित आदेश एक दशक पहले रंगराजन कमेटी की सिफारिशों के आधार पर शुरू हुए चीनी उद्योग को नियंत्रण मुक्त करने के सिलसिले के भी खिलाफ है।