फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी की मांग को लेकर किसान आंदोलन कर रहे हैं। एमएसपी के मुद्दे को लेकर देश में बड़ी बहस छिड़ी है। इस बीच, चीनी एक कमोडिटी ऐसी है जिसका न्यूनतम बिक्री मूल्य (एमएसपी) सरकार तय करती है और इससे नीचे कोई भी बिक्री नहीं होती है। इस व्यवस्था को लागू करने के लिए सरकारी खजाने में उतना बोझ नहीं पड़ता, जितना एमएसपी की बहस में कुछ लोग दावा कर रहे हैं।
केंद्र सरकार ने आगामी सत्र 2024-25 के लिए गन्ना का उचित एवं लाभकारी मूल्य (एफआरपी) 25 रुपये बढ़ाकर 340 रुपये प्रति क्विंटल तय करने का ऐलान किया है। इस घोषणा के बाद शुगर इंडस्ट्री की ओर से चीनी का न्यूनतम बिक्री मूल्य (एमएसपी) बढ़ाने की मांग उठ रही है। शुगर और एथेनॉल इंडस्ट्री के संगठन इस्मा ने चीनी के एमएसपी (न्यूनतम बिक्री मूल्य) में वृद्धि की मांग की है। इस्मा के अनुसार, गन्ने के एफआरपी 340 रुपये प्रति क्विंटल के आधार पर चीनी का एमएसपी 3,900 रुपये प्रति क्विंटल होना चाहिए। इसी प्रकार, एथेनॉल की कीमतों को भी गन्ने के बढ़े एफआरपी और बढ़ती लागत के आधार पर बढ़ाया जाना चाहिए। घरेलू बाजार में चीनी की पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए इस्मा ने सरकार को सीएसीपी की सिफारिश के आधार पर चीनी का एमएसपी तय कर शुगर इंडस्ट्री से हर साल 4-5 मिलियन टन चीनी खरीदने करने का सुझाव दिया है। ताकि उद्योग अचानक नीतिगत परिवर्तन से प्रभावित हुए बिना एथेनॉल ब्लेंडिंग प्रोग्राम को समर्थन करना जारी रख सके।
महाराष्ट्र राज्य सहकारी चीनी फैक्ट्रीज फेडरेशन लिमिटेड ने चीनी का एमएसपी बढ़ाने की मांग करते हुए कहा है कि गन्ने के एफआरपी के अनुरूप अगर चीनी का एमएसपी नहीं बढ़ाया गया तो चीनी मिलों के सामने गंभीर संकट खड़ा हो जाएगा।
सरकार ने 2019 में चीनी का एमएसपी से 3,100 प्रति क्विंटल तय किया था जो तब से इतना ही है। शुगर इंडस्ट्री की ओर से चीनी का न्यूनतम बिक्री मूल्य बढ़ाकर 3600-4000 रुपये प्रति क्विंटल करने की मांग की जा रही है। अगर चीनी का एमएसपी बढ़ता है तो मिलों के पास मौजूद चीनी स्टॉक की वैल्यू बढ़ जाएगी और बैंकों से अतिरिक्त कर्ज मिल सकता है। लेकिन चुनावी साल में सरकार चीनी का एमएसपी बढ़ाने पर बचना चाहेगी।
चीनी का न्यूनतम बिक्री मूल्य तय होने से इससे कम मूल्य पर चीनी की बिक्री नहीं होती है, जिससे चीनी मिलें कीमतों में उतार-चढ़ाव के नुकसान से बच जाती हैं। हालांकि, बहुत कम मौकों पर सरकार को हस्तक्षेप की जरूरत पड़ती है क्योंकि चीनी का बाजार मूल्य एमएसपी से कहीं अधिक रहता है। इस तरह सरकार पर भी अतिरिक्त बोझ नहीं पड़ता है। इसी तरह की व्यवस्था किसान भी अपनी उपज पर चाहते हैं।