भारत 2028 तक 14 अरब डॉलर के वैश्विक बीज बाजार में 1.4 अरब डॉलर की हिस्सेदारी हासिल कर सकता है। हाल ही में वाराणसी में आयोजित राष्ट्रीय बीज कांग्रेस में भारत के वैश्विक बीज बाजार में 10% हिस्सेदारी हासिल करने और उच्च गुणवत्ता वाले बीजों के फसल उत्पादन में योगदान को 15-20% से बढ़ाकर 45% तक ले जाने की संभावना पर जोर दिया गया। विशेषज्ञों ने बीज उत्पादकों के लिए अनुकूल तंत्र को मजबूत करने की आवश्यकता पर बल दिया।
भारत वैश्विक बीज बाजार में एक प्रमुख भागीदार है और सब्जियों, मसालों तथा अनाज एवं दालों के निर्यात में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर रहा है। उच्च उत्पादन वाले और रोग प्रतिरोधी किस्मों के निर्यात को बढ़ावा देने की महत्वत्ता को रेखांकित करते हुए, भारतीय बीज उद्योग महासंघ (एफएसआईआई) के चेयरमैन और सवाना सीड्स के सीईओ एवं प्रबंध निदेशक अजय राणा ने कहा, “भारत के विविध कृषि-जलवायु क्षेत्र इसे पारंपरिक और हाइब्रिड बीज उत्पादन के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र बनाते हैं। निर्यात बाजार को सार्वजनिक-निजी भागीदारी और अनुकूल नीतिगत ढांचे के माध्यम से और मजबूत किया जा सकता है। 'बीज निर्यात प्रोत्साहन योजना' और 'कृषि निर्यात क्षेत्र' की स्थापना जैसी सरकारी पहल इस विकास में अहम भूमिका निभा रही हैं।”
बीज कांग्रेस के दौरान सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के बीच सहयोग की भूमिका पर प्रकाश डाला गया। विशेषज्ञों ने कहा कि जैव प्रौद्योगिकी में प्रगति और सतत कृषि पद्धतियों पर ध्यान केंद्रित करते हुए भारत वैश्विक बीज बाजार में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए अच्छी स्थिति में है। एफएसआईआई के सदस्य और महिको प्राइवेट लिमिटेड के कार्यकारी चेयरमैन, डॉ. राजेंद्र बारवाले ने कहा, “सरकार द्वारा इस वर्ष कृषि के लिए रिकॉर्ड ₹1.52 लाख करोड़ का बजट आवंटन ‘विकसित भारत’ की नींव के रूप में खेती को स्थापित करने की दृष्टि को दर्शाता है और निजी क्षेत्र में विश्वास पैदा करता है।”
डॉ. बारवाले ने यह भी कहा कि प्रगति के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा, “समानता आधारित बीज प्रणालियों के निर्माण के लिए सहयोगात्मक विशेषज्ञता आवश्यक है, जो छोटे किसानों और बड़े कृषि उद्यमियों, दोनों को लाभान्वित करे। स्थिरता और समावेशिता कोई विकल्प नहीं हैं; यह भारत के कृषि भविष्य को सुरक्षित करने के लिए अनिवार्य हैं।”
भारत की अस्थिर मौसम पैटर्न के प्रति संवेदनशीलता जलवायु-प्रतिरोधी फसलों के विकास की तात्कालिकता को उजागर करती है। एनएससी 2024 में, शोधकर्ताओं और उद्योग के नेताओं ने सूखा-प्रतिरोधी और रोग-प्रतिरोधी बीज किस्मों में प्रगति पर चर्चा की, जो खाद्य सुरक्षा को बढ़ाने और पर्यावरण की सुरक्षा का वादा करती हैं। इस आयोजन में नवाचार और सहयोग की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित किया गया, जो भारत की कृषि के सतत और समावेशी भविष्य को आकार देने में सहायक होगी।