उर्वरकों के संतुलित इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए फर्टिलाइजर इंडस्ट्री ने उर्वरकों के दाम पोषण के आधार पर तय करने की मांग की है। इस हिसाब से गैर-यूरिया उर्वरकों में डीएपी की कीमतें सबसे ज्यादा होनी चाहिए क्योंकि इसकी न्यूट्रिशनल वैल्यू सबसे ज्यादा है। इसके बाद अन्य उर्वरकों के दाम होने चाहिए।
फर्टिलाइजर एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एफएआई) के 4 दिसंबर को होने वाले वार्षिक सम्मेलन के बारे में आयोजित प्रेस वार्ता में एफएआई के चेयरमैन एन. सुरेश कृष्णन ने गैर-यूरिया उर्वरकों की कीमतों को उनकी न्यूट्रिशनल वैल्यू के आधार पर तय करने पर जोर दिया। उनके मुताबिक, सबसे ज्यादा दाम डीएपी का होना चाहिए क्योंकि इसकी न्यूट्रिशनल वैल्यू अधिक है। इसके बाद एमओपी, एनपी/एनपीके और अन्य उर्वरकों के दाम उनमें पोषण के आधार पर निर्धारित होने चाहिए। इससे उर्वरकों के संतुलित उपयोग को बढ़ावा मिलेगा।
फर्टिलाइजर इंडस्ट्री की तरफ से डीएपी के दाम अधिक रखने का सुझाव ऐसे समय आया है जब देश के विभिन्न इलाकों से डीएपी की किल्लत की खबरें आ रही हैं। हालांकि, एफएआई के चेयरमैन ने देश में डीएपी की पर्याप्त उपलब्धता का दावा करते हुए कहा कि अक्टूबर और नवंबर में डीएपी का आयात बढ़ने से स्थिति में सुधार आया है। साथ ही अन्य एनपीके उर्वरकों की खपत भी बढ़ी है।
फिलहाल डीएपी का दाम 1350 रुपये प्रति बैग, म्यूरेट ऑफ पोटाश (एमओपी) का दाम 1500 से 1600 रुपये प्रति बैग, एनपी (20:20) का दाम 1200-1300 रुपये प्रति बैग और एनपीके (12:32:16) का दाम 1470 रुपये प्रति बैग है।
डीएपी के उत्पादन, आयात और बिक्री में कमी
एफएआई के आंकड़ों के मुताबिक, इस साल अप्रैल से अक्टूबर के बीच देश के डीएपी उत्पादन में 7.4 फीसदी की गिरावट आई जबकि डीएपी का आयात पिछले साल के मुकाबले 29.8 फीसदी कम हुआ। इस दौरान डीएपी की बिक्री में 25.4 फीसदी की गिरावट आई जबकि एमओपी की बिक्री 24.7 फीसदी तथा एनपीके की बिक्री 23.5 फीसदी बढ़ गई है। इन आंकड़ों से जाहिर है कि डीएपी की बिक्री में गिरावट के साथ एनपी/एनपीके उर्वरकों का इस्तेमाल बढ़ा है। इसे फर्टिलाइजर उद्योग अच्छा संकेत मान रहा है।
डीएपी आयात में कमी की वजह
एफएआई चेयरमैन ने डीएपी आयात में कमी के पीछे चीन से डीएपी आयात कम होने, भू-राजनीतिक तनाव और लाल सागर के रास्ते परिवहन में दिक्कतों को वजह बताया। इसके अलावा ग्लोबल मार्केट में डीएपी उत्पादन की सीमित क्षमताओं और कीमतों में उतार-चढ़ाव के कारण भी आयात प्रभावित हुआ।
गौरतलब है कि भारत फॉस्फेटिक उर्वरकों की करीब 90 फीसदी खपत को आयात के जरिए पूरा करता है। देश में हर साल करीब 100 लाख टन डीएपी की खपत होती है जिसमें से लगभग 60 लाख टन डीएपी का आयात होता है।
रबी बुवाई सीजन लंबा चलेगा
कृष्णन का कहना है कि नंवबर में डीएपी की बिक्री बढ़ी है। साथ ही नवंबर में कम ठंड पड़ने के कारण रबी बुवाई सीजन लंबा खिंचेगा, जिससे डीएपी की मांग को पूरा करने में मदद मिलेगी। सितंबर में केंद्र सरकार की ओर से पीएंडके उर्वरकों की नई सब्सिडी दरें घोषित होने के बाद देश में डीएपी आयात बढ़ा है जिससे डीएपी की उपलब्धता में सुधार आएगा।
देश में यूरिया के दाम सरकारी नियंत्रण में हैं जबकि डीएपी, एनपीके समेत 28 पीएंडके उर्वरक नियंत्रणमुक्त हैं जिन पर सरकार की ओर से फर्टिलाइजर कंपनियों को न्यूट्रिएंट बेस्ड सब्सिडी स्कीम (एनबीएस) के तहत सब्सिडी दी जाती है।